नई दिल्ली, 20 मई (युआईटीवी)- ‘ऑपरेशन सिंदूर’,जिसे सरकार ने एक सफल एयर स्ट्राइक अभियान बताया है,अब राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का केंद्र बन गया है। इस सैन्य अभियान पर कांग्रेस द्वारा उठाए गए सवालों के बाद भाजपा ने भी तीखा पलटवार किया है। सोशल मीडिया से लेकर संसद तक दोनों पक्ष आमने-सामने हैं, जहाँ बयानबाज़ी का स्तर राजनीतिक मर्यादा को पार करता दिखाई दे रहा है।
कांग्रेस,खासकर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी,लगातार ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं। राहुल गांधी ने विशेष रूप से विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर के उस बयान को निशाने पर लिया,जिसमें उन्होंने कहा था कि एयर स्ट्राइक की जानकारी पाकिस्तान को अग्रिम रूप से दी गई थी।
राहुल गांधी ने इस बयान पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर सरकार ने पहले ही पाकिस्तान को सूचित कर दिया था,तो यह एक गोपनीय सैन्य ऑपरेशन कैसे हो सकता है? उन्होंने पूछा कि सरकार यह स्पष्ट करे कि इस ऑपरेशन में भारत को कितने नुकसान हुए ? कितने विमान क्षतिग्रस्त हुए? कितने सैनिक हताहत हुए ? और कितने पाकिस्तानी विमान मार गिराए गए?
राहुल गांधी के इन बयानों पर 18 मई को विदेश मंत्रालय की ओर से एक आधिकारिक स्पष्टीकरण जारी किया गया। मंत्रालय ने कहा कि राहुल गांधी ने जयशंकर के बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया है और यह पूरी तरह भ्रामक है।
वास्तविकता यह है कि जयशंकर ने कहा था कि “सैन्य कार्रवाई के बाद कूटनीतिक माध्यमों से जानकारी दी गई थी”,न कि पहले से कोई सूचना साझा की गई थी। विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत की नीति हमेशा अंतर्राष्ट्रीय नियमों और संप्रभुता के सम्मान पर आधारित रही है और ऑपरेशन सिंदूर इसका उदाहरण है।
कांग्रेस के रवैए पर भाजपा नेताओं और पार्टी के आईटी सेल ने तीखा पलटवार किया है। असम के मंत्री अशोक सिंघल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर एक विवादित पोस्ट की,जिसमें उन्होंने राहुल गांधी की तस्वीर को पाकिस्तान आर्मी चीफ असीम मुनीर की तस्वीर के साथ जोड़ दिया। इस तस्वीर के ऊपर लिखा गया – “सीमाओं से अलग एजेंडे पर एक।”
पोस्ट का उद्देश्य यह बताना था कि कांग्रेस और पाकिस्तान की विचारधारा कहीं न कहीं मेल खाती है,खासकर जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा पर सरकार के फैसलों की आलोचना की हो।
भाजपा आईटी सेल के प्रभारी अमित मालवीय ने भी कांग्रेस पर सीधा हमला बोलते हुए कई सिलसिलेवार पोस्ट किए। उन्होंने एक कार्टून शेयर किया,जिसमें एक व्यक्ति पाकिस्तानी जनरल की पीठ पर चढ़कर भारत की सीमा में झांकता हुआ राफेल के बारे में सवाल करता है।
इसके साथ ही उन्होंने सिंघल वाली तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, “यह आश्चर्य की बात नहीं है कि राहुल गांधी पाकिस्तान और उसके हितैषियों की भाषा बोल रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री को ऑपरेशन सिंदूर के लिए बधाई नहीं दी,जो भारत की सैन्य क्षमता और प्रभुत्व को दर्शाता है। वे बार-बार पूछते हैं कि हमने कितने जेट खो दिए, जबकि डीजीएमओ पहले ही इसका जवाब दे चुके हैं।”
उन्होंने कांग्रेस से व्यंग्यात्मक तौर पर पूछा, “क्या अब निशान-ए-पाकिस्तान राहुल गांधी को दिया जाएगा?”
कांग्रेस ने इन आरोपों को बचकाना और देशभक्ति का अपमान बताया है। पार्टी प्रवक्ताओं ने कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में विपक्ष का यह अधिकार है कि वह सरकार से सवाल पूछे,खासकर तब जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य कार्रवाइयों की हो।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि वे सेना के साथ हैं,लेकिन सरकार की पारदर्शिता पर सवाल उठाना कोई अपराध नहीं है। वे यह जानना चाहते हैं कि सरकार की ओर से की गई कार्रवाई के वास्तविक परिणाम क्या थे और क्या वह रणनीतिक रूप से सही निर्णय था।
अमित मालवीय ने अपने एक अन्य पोस्ट में राहुल गांधी को ‘पाकिस्तान की भाषा बोलने वाला’ बताया। उन्होंने डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई के एक बयान का वीडियो पोस्ट किया,जिसमें स्पष्ट रूप से बताया गया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान क्या हुआ।
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी जानबूझकर ऐसे मुद्दों को उठा रहे हैं,जिससे भारत की सैन्य नीति और कूटनीतिक निर्णयों पर संदेह खड़ा हो और पाकिस्तान को फायदा हो।
मालवीय ने यह भी आरोप लगाया कि राहुल गांधी की ‘अज्ञानता महज गलती नहीं, बल्कि खतरनाक स्तर की है’,जो देश की छवि को वैश्विक मंच पर प्रभावित कर सकती है।
जहाँ एक ओर सेना और सरकार ऑपरेशन सिंदूर को एक बड़ी रणनीतिक सफलता मानती है,वहीं दूसरी ओर विपक्ष इस पर अधिक जानकारी और पारदर्शिता की माँग कर रहा है,लेकिन यह बहस अब राष्ट्रीय सुरक्षा से हटकर राजनीतिक कटाक्ष,व्यंग्य और व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप में बदल चुकी है।
यह स्पष्ट है कि ऑपरेशन सिंदूर एक सैन्य अभियान से ज्यादा अब एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। कांग्रेस जहाँ अपने सवालों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बता रही है,वहीं भाजपा इसे राष्ट्रविरोधी रुख करार दे रही है।
आने वाले दिनों में यह बहस और तीखी होने की संभावना है,खासकर जब यह मामला चुनावों के नजदीक जा रहा है और जनता के बीच राष्ट्रवाद और पारदर्शिता के सवालों पर राजनीतिक पार्टियाँ अपनी-अपनी जमीन मजबूत करने में लगी हैं।