वाशिंगटन,24 मई (युआईटीवी)- हार्वर्ड विश्वविद्यालय और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के बीच विवाद एक बार फिर गहरा गया है। प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान हार्वर्ड ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ दूसरी बार संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया है। इस बार का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के नामांकन को लेकर है। मामला न सिर्फ उच्च शिक्षा की स्वतंत्रता से जुड़ा है,बल्कि यह अमेरिका की आव्रजन नीति, शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता और अल्पसंख्यक छात्रों की स्थिति को भी प्रभावित करता है। इस पूरे घटनाक्रम को समझना इसलिए भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि यह अमेरिका में पढ़ाई करने के इच्छुक हजारों विदेशी छात्रों के भविष्य पर सीधा असर डालता है।
यह विवाद तब शुरू हुआ,जब अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग ने घोषणा की कि वह हार्वर्ड विश्वविद्यालय को अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को नामांकित करने से रोकेगा। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि हार्वर्ड ने बार-बार संघीय कानूनों का उल्लंघन किया है। गृह सुरक्षा सचिव क्रिस्टी नोएम ने बयान जारी करते हुए कहा कि अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का नामांकन कोई अधिकार नहीं बल्कि विशेषाधिकार है और चूँकि हार्वर्ड बार-बार सरकारी नियमों का उल्लंघन करता आया है,इसलिए यह विशेषाधिकार उससे छीन लिया गया है।
इस फैसले का मतलब यह था कि हार्वर्ड अब न सिर्फ नए अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को दाखिला नहीं दे पाएगा,बल्कि वर्तमान विदेशी छात्रों को भी या तो किसी और संस्थान में ट्रांसफर करना होगा या फिर उन्हें देश छोड़ना पड़ेगा।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने इसे अपनी स्वतंत्रता पर हमला बताया। विश्वविद्यालय के अध्यक्ष एलन गार्बर ने इस निर्णय को “गैरकानूनी और अनुचित” करार देते हुए कहा कि यह संघीय सरकार द्वारा अकादमिक संस्थानों पर दबाव बनाने का प्रयास है। उन्होंने एक पत्र में लिखा कि सरकार का यह कदम उनकी अकादमिक स्वतंत्रता को कुचलने की एक साजिश है। गार्बर ने कहा कि हार्वर्ड न तो अपने पाठ्यक्रम,न ही अपने छात्रों या संकाय पर सरकार का अवैध नियंत्रण स्वीकार करेगा।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि विश्वविद्यालय ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी है और एक अस्थायी निरोधक आदेश की माँग भी की है,जिससे जब तक अदालत का अंतिम निर्णय न आ जाए,तब तक यह सरकारी आदेश लागू न हो सके।
इस विवाद की जड़ें अप्रैल 2025 की शुरुआत में दिखने लगती हैं। 11 अप्रैल को ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड को एक पत्र भेजा,जिसमें माँग की गई कि विश्वविद्यालय अपने प्रशासनिक ढाँचे में सुधार करे। प्रशासन की माँगों में दो प्रमुख बिंदु-परिसर में यहूदी विरोधी गतिविधियों पर रोक और विविधता पहलों को समाप्त करना,जो विशेष रूप से कुछ अल्पसंख्यक समुदायों को लाभ पहुँचाने के लिए शुरू की गई शामिल थी।
हार्वर्ड ने इन माँगों को 14 अप्रैल को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया। विश्वविद्यालय का कहना था कि ये माँगें न सिर्फ शैक्षणिक स्वायत्तता के विरुद्ध हैं,बल्कि ये संविधान प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन भी हैं।
जैसे ही हार्वर्ड ने प्रशासन की माँगों को ठुकराया,ट्रंप सरकार ने जवाबी कदम उठाते हुए दो महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णय- विश्वविद्यालय को दिए जाने वाले 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बहु-वर्षीय अनुदान को रोक दिया गया और 60 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुबंधों को निलंबन करना शामिल थे।
16 अप्रैल को गृह सुरक्षा सचिव क्रिस्टी नोएम ने एक और माँग रखी कि हार्वर्ड को 30 अप्रैल तक उन विदेशी छात्रों की जानकारी देनी होगी,जो कथित रूप से अवैध या हिंसक गतिविधियों में शामिल हैं। ऐसा न करने पर विश्वविद्यालय को अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को दाखिला देने का अधिकार हमेशा के लिए खोने का खतरा रहेगा।
21 अप्रैल को हार्वर्ड ने आधिकारिक रूप से संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया। इसमें सरकार की कार्रवाई को न सिर्फ गैरकानूनी कहा गया,बल्कि इसे सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर भी बताया गया। हार्वर्ड का कहना है कि यह पूरा घटनाक्रम राजनीतिक प्रतिशोध है,क्योंकि विश्वविद्यालय ने प्रशासन के राजनीतिक एजेंडे के आगे झुकने से इनकार कर दिया।
हार्वर्ड प्रशासन ने अपने कानूनी दस्तावेज़ों में कहा कि ये कदम न सिर्फ छात्रों की शिक्षा को बाधित करते हैं,बल्कि अमेरिका को एक अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र के रूप में भी कमजोर करते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इस तरह की नीतियाँ आगे बढ़ती हैं,तो अमेरिका अपनी वैश्विक अकादमिक साख खो देगा।
यह विवाद सिर्फ हार्वर्ड तक सीमित नहीं है। देशभर के विश्वविद्यालयों,शिक्षकों,छात्रों और शैक्षणिक संस्थानों ने इस पर प्रतिक्रिया दी है। कई शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला अमेरिका में उच्च शिक्षा की स्वतंत्रता और अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की स्थिति पर एक नजीर बन सकता है। अगर हार्वर्ड मुकदमा जीतता है,तो यह बाकी संस्थानों के लिए एक सकारात्मक संकेत होगा कि वे सरकार की नीतियों के विरुद्ध खड़े हो सकते हैं।
दूसरी ओर,यदि ट्रंप प्रशासन को समर्थन मिलता है,तो आने वाले समय में और भी सख्त नियम लागू हो सकते हैं,जिससे न केवल विदेशी छात्रों का प्रवेश प्रभावित होगा, बल्कि अमेरिका में उच्च शिक्षा की छवि पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।
हार्वर्ड और ट्रंप प्रशासन के बीच चल रहा यह टकराव कई परतों वाला है। इसमें शिक्षा,राजनीति,आव्रजन नीति और मानवाधिकार सभी शामिल हैं। यह मामला केवल एक विश्वविद्यालय का नहीं है,बल्कि यह अमेरिका की लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान की मूल आत्मा की परीक्षा है। आने वाले समय में अदालत का निर्णय यह तय करेगा कि क्या अमेरिका अपनी शैक्षणिक संस्थाओं को स्वायत्तता और स्वतंत्रता प्रदान करता है या नहीं।