बीजिंग,14 जुलाई (युआईटीवी)- भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर तीन दिवसीय आधिकारिक दौरे पर सोमवार को चीन पहुँचे। यह यात्रा ऐसे समय पर हो रही है,जब भारत-चीन के बीच राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है और दोनों देशों के बीच सीमाई तनाव के कारण लंबे समय से ठंडे पड़े संबंधों में पुनः गर्माहट लाने की कोशिशें की जा रही हैं। जयशंकर की यह यात्रा खास मायने रखती है क्योंकि जून 2020 में लद्दाख के गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद यह उनकी पहली चीन यात्रा है।
बीजिंग पहुँचते ही जयशंकर ने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात की। इस बैठक में उन्होंने भारत-चीन संबंधों को सामान्य करने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि दोनों देशों के बीच यदि संवाद और सहयोग बढ़ता है,तो इससे “पारस्परिक रूप से लाभकारी” परिणाम सामने आ सकते हैं। जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत और चीन जैसी दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और पड़ोसी देशों के बीच खुले विचार-विमर्श और संवाद का होना न सिर्फ द्विपक्षीय स्तर पर,बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।
उन्होंने बातचीत में यह संदेश भी दिया कि सीमा पर शांति और स्थिरता,दोनों देशों के बीच सामान्य रिश्तों की पूर्वशर्त है। यह एक स्पष्ट संकेत है कि भारत अभी भी सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों के मूल में मानता है।
जयशंकर ने बीजिंग में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के महासचिव नूरलान येरमेकबायेव से भी मुलाकात की। उन्होंने एससीओ की वर्तमान भूमिका और भविष्य में इसके कामकाज को अधिक प्रभावी और आधुनिक बनाने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर चर्चा की। विदेश मंत्री ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर साझा किया, “आज बीजिंग में एससीओ महासचिव नूरलान येरमेकबायेव से मिलकर खुशी हुई। एससीओ के योगदान और महत्व के साथ-साथ इसके कामकाज को आधुनिक बनाने के प्रयासों पर भी चर्चा हुई।”
उन्होंने चीन की मौजूदा एससीओ अध्यक्षता के लिए भारत का समर्थन भी दोहराया और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग के महत्व को रेखांकित किया।
जयशंकर ने एक बड़ी घोषणा करते हुए कहा कि कैलाश मानसरोवर यात्रा को पुनः आरंभ किया गया है। यह यात्रा कोविड-19 महामारी और भारत-चीन सीमा तनाव के चलते पिछले पाँच वर्षों से बंद थी। उन्होंने इसे एक सकारात्मक सांस्कृतिक और धार्मिक कदम बताया जो न सिर्फ यात्रियों के लिए बल्कि भारत-चीन संबंधों के लिए भी एक प्रतीकात्मक संकेत है।
उन्होंने कहा, “कैलाश मानसरोवर यात्रा का दोबारा शुरू होना भारत में बहुत सराहा जा रहा है। यह हमारे संबंधों की पुनः सामान्यता की दिशा में एक आवश्यक और शुभ संकेत है।”
जयशंकर ने बैठक की शुरुआत में पिछले साल अक्टूबर में रूस के कजान शहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि उस मुलाकात के बाद से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में सुधार देखने को मिला है। जयशंकर को विश्वास है कि उनकी मौजूदा यात्रा भी इसी सकारात्मक दिशा को आगे बढ़ाएगी।
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुए जयशंकर ने कहा, “आज की वैश्विक स्थिति बहुत जटिल है।” ऐसे में भारत और चीन जैसे पड़ोसी देशों और प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के बीच खुला और सतत संवाद समय की माँग है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संवाद और विश्वास की बहाली ही आगे बढ़ने का रास्ता है।
यह ध्यान देने योग्य है कि जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद यह एस.जयशंकर की पहली आधिकारिक चीन यात्रा है। उस घटना ने दोनों देशों के रिश्तों में गहरा अविश्वास पैदा कर दिया था। हालाँकि,इसके बाद दोनों देशों के विदेश मंत्री कई बार बहुपक्षीय मंचों पर मिले हैं,लेकिन बीजिंग की यह यात्रा उच्च स्तरीय राजनयिक संवाद की दिशा में एक निर्णायक कदम के रूप में देखी जा रही है।
एस. जयशंकर की यह चीन यात्रा संकेत देती है कि दोनों देश अब संबंधों को सुधारने और सामान्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ने को तैयार हैं। सीमाई विवादों और रणनीतिक अविश्वास के बावजूद,सांस्कृतिक,धार्मिक और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग के जरिए संबंधों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। भारत की ओर से कैलाश मानसरोवर यात्रा को दोबारा शुरू करना,चीन की एससीओ अध्यक्षता का समर्थन करना और खुली बातचीत पर जोर देना इसी कूटनीतिक पहल का हिस्सा है।
यदि इस यात्रा के दौरान सकारात्मक वातावरण बना रहा,तो आने वाले महीनों में भारत-चीन संबंधों में ठोस सुधार की संभावना बन सकती है,जो न सिर्फ दोनों देशों बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए लाभकारी होगा।