तेल अवीव,30 जुलाई (युआईटीवी)- इजरायल और ब्रिटेन के बीच कूटनीतिक तनाव एक बार फिर से बढ़ता नजर आ रहा है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर द्वारा फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने की योजना ने मध्य पूर्व में चल रहे जटिल संकट को और गहरा कर दिया है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस प्रस्ताव को न केवल अस्वीकार्य बताया,बल्कि इसे हमास के आतंकवाद को प्रोत्साहित करने वाला कदम करार दिया है।
बुधवार को इजरायली प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक तीखा बयान जारी किया गया। इस बयान में साफ तौर पर कहा गया कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री हमास के भयावह आतंकवाद को इनाम दे रहे हैं और इस तरह के कदम से उन लोगों को दंडित किया जा रहा है,जो आतंकवाद के शिकार हुए हैं। बयान में चेतावनी भरे शब्दों में कहा गया कि आज इजरायल की सीमा पर जो जिहादी खतरा मौजूद है,वही कल ब्रिटेन के लिए खतरा बन सकता है। पोस्ट में आगे लिखा गया कि जिहादी आतंकवादियों को खुश करने की कोई भी नीति कभी सफल नहीं होती और अंततः वह नीति अपनाने वालों को ही विफलता का सामना करना पड़ता है।
इजरायली विदेश मंत्रालय ने भी ब्रिटिश योजना पर सख्त प्रतिक्रिया दी। मंत्रालय ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि ब्रिटेन की सरकार का यह प्रस्ताव न केवल गाजा में चल रहे संघर्षविराम और बंधकों की रिहाई के प्रयासों को कमजोर करेगा,बल्कि इससे हमास जैसे आतंकी संगठनों को गलत संदेश जाएगा कि आतंक के जरिए वे राजनीतिक लाभ पा सकते हैं। मंत्रालय ने यह भी कहा कि यह बदलाव फ्रांस के हालिया निर्णय और ब्रिटेन के आंतरिक राजनीतिक दबावों का परिणाम है,जिसे इजरायल किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करेगा।
इजरायल की ये प्रतिक्रियाएँ उस वक्त आईं,जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने मंगलवार को एक बड़ा बयान जारी किया। इस बयान में उन्होंने साफ तौर पर कहा कि यदि इजरायल गाजा में मानवीय संकट को समाप्त करने,संघर्षविराम लागू करने और दो-राष्ट्र समाधान की दिशा में ठोस प्रतिबद्धता नहीं दिखाता है,तो ब्रिटेन सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र और संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता देगा।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी इस बयान ने कूटनीतिक हलचलों को और तेज कर दिया है। बयान में कहा गया है कि ब्रिटेन फिलिस्तीन को मान्यता देने के लिए इजरायल की कार्रवाई का आकलन करेगा। इसमें यह देखा जाएगा कि क्या इजरायल ने गाजा में मानवीय सहायता बहाल करने की अनुमति दी है,क्या उसने संघर्षविराम की दिशा में कोई ठोस पहल की है और क्या उसने वेस्ट बैंक में नए क्षेत्रों के अधिग्रहण को रोका है या नहीं।
बयान में यह भी स्पष्ट किया गया कि ब्रिटेन की यह नीति किसी भी रूप में हमास के प्रति नरम नहीं है। ब्रिटिश सरकार ने हमास से तत्काल सभी बंधकों को रिहा करने,युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर करने और पूरी तरह से निरस्त्रीकरण की माँग की है। इसके अलावा ब्रिटिश प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह भी शर्त रखी कि हमास को यह स्वीकार करना होगा कि वह भविष्य में गाजा की सरकार का हिस्सा नहीं होगा। यह संदेश हमास के लिए स्पष्ट और कठोर है।
हालाँकि,ब्रिटेन की इस घोषणा को फिलिस्तीनी समर्थक गुटों और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा है। उनका कहना है कि लंबे समय से उपेक्षित फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता को वैश्विक समर्थन मिलना चाहिए और इससे इस क्षेत्र में स्थायी शांति की संभावनाएँ मजबूत होंगी।
दूसरी ओर,इजरायल की चिंता यह है कि फिलिस्तीन को ऐसे समय में मान्यता देना, जब हमास जैसा आतंकी संगठन गाजा में सक्रिय है और इजरायल के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दे रहा है,गलत संदेश देगा। इजरायली सरकार को डर है कि इससे हमास और अन्य चरमपंथी संगठनों को वैश्विक मंच पर वैधता का एहसास होगा और वे भविष्य में भी हथियारबंद संघर्ष का रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित होंगे।
इस घटनाक्रम ने इजरायल और पश्चिमी देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे ‘दो-राष्ट्र समाधान’ के मुद्दे को एक बार फिर से सुर्खियों में ला दिया है। जहाँ एक ओर यूरोपीय देशों का रुख फिलिस्तीन के पक्ष में धीरे-धीरे बदलता नजर आ रहा है,वहीं इजरायल अभी भी इस प्रस्ताव को व्यावहारिक नहीं मानता,खासकर तब जब गाजा पर हमास का नियंत्रण कायम है।
सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से पहले यह मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा विवाद बन सकता है। फिलहाल यह स्पष्ट है कि फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता देने की ब्रिटिश योजना ने इजरायल को कड़े तेवर अपनाने पर मजबूर कर दिया है। ऐसे में आने वाले सप्ताहों में यह देखना बेहद अहम होगा कि क्या यह कूटनीतिक तकरार गहराएगी या फिर किसी मध्यस्थता के जरिए संतुलित समाधान की ओर बढ़ेगी।
फिलहाल,ब्रिटेन और इजरायल के बीच बढ़ती तल्खी ने संकेत दे दिया है कि फिलिस्तीन विवाद एक बार फिर वैश्विक मंच पर गर्म राजनीतिक बहस का केंद्र बनने जा रहा है।