बिहार में 'बंद' का व्यापक असर (तस्वीर क्रेडिट@rajeshkrinc)

बिहार बंद: महागठबंधन का राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन,सड़कों से लेकर रेलवे ट्रैक तक दिखा असर,राहुल-तेजस्वी भी आंदोलन में होंगे शामिल

पटना,9 जुलाई (युआईटीवी)- बिहार में बुधवार को महागठबंधन द्वारा आहूत ‘बिहार बंद’ का व्यापक असर सुबह-सुबह ही देखने को मिला। राज्य के विभिन्न जिलों में महागठबंधन के कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर उतरकर चक्का जाम कर दिया और जगह-जगह रेल यातायात बाधित किया। इस विरोध का नेतृत्व कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव कर रहे हैं।

‘बिहार बंद’ का आह्वान मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (एसआईआर) के खिलाफ किया गया है,जिसे लेकर विपक्षी दलों का आरोप है कि यह अभियान दलितों,पिछड़ों,अल्पसंख्यकों,आदिवासियों और गरीब-मजदूरों के नाम मतदाता सूची से काटने की साजिश है।

बंद के दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पटना में प्रदर्शन का नेतृत्व करेंगे। वहीं, राजद नेता तेजस्वी यादव ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट कर जनता से बंद में शामिल होने की अपील की। उन्होंने लिखा, “बिहार बंद और चक्का जाम में शामिल होइए और लोकतंत्र को बचाइए। गरीबों,पिछड़ों,दलितों और अल्पसंख्यकों को वोटर लिस्ट से बाहर करने की चुनाव आयोग और भाजपा की साजिश को हम कामयाब नहीं होने देंगे। आज नहीं जागे तो कल वोट देने का अधिकार भी छिन जाएगा।”

इस बंद में कांग्रेस और राजद के अलावा महागठबंधन के अन्य घटक दल भी शामिल हैं,जिन्होंने चुनाव आयोग के इस अभियान के विरोध में एकजुट होकर प्रदर्शन शुरू किया है।

राज्य के कई जिलों से सुबह से ही बंद का असर दिखना शुरू हो गया। भोजपुर जिले के बिहिया में पूर्व विधायक दिनेश यादव ने अपने समर्थकों के साथ प्रदर्शन किया। यहाँ श्रमजीवी एक्सप्रेस और विभूति एक्सप्रेस ट्रेनों को रोककर प्रदर्शनकारियों ने जोरदार नारेबाजी की।

दरभंगा में राजद कार्यकर्ताओं ने ‘नमो भारत’ ट्रेन को रोका और स्टेशन परिसर में प्रदर्शन किया। राजद नेता प्रेमचंद्र उर्फ भोलू यादव ने कहा कि, “केंद्र की भाजपा सरकार चुनाव आयोग पर दबाव बनाकर पुनरीक्षण प्रक्रिया को अपने पक्ष में ढालने का प्रयास कर रही है।”

जहानाबाद में भी राजद की छात्र इकाई ने विरोध प्रदर्शन करते हुए रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों को रोका। प्रदर्शनकारियों ने नेशनल हाईवे-83 को भी जाम कर दिया,जिससे यातायात पूरी तरह ठप हो गया।

महागठबंधन ने चुनाव आयोग के विशेष पुनरीक्षण अभियान को ‘वोटबंदी’ की संज्ञा दी है। विपक्ष का दावा है कि इस अभियान के जरिए गरीब,दलित और पिछड़े वर्गों को मतदान की प्रक्रिया से बाहर किया जा रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा आगामी चुनावों से पहले राजनीतिक ध्रुवीकरण का कारण बन सकता है,क्योंकि यह सीधे तौर पर वोटिंग अधिकारों से जुड़ा हुआ है।

महागठबंधन की ओर से यह भी माँग की जा रही है कि चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को तत्काल रोके और सार्वजनिक रूप से स्पष्ट करे कि किन आधारों पर मतदाता सूची में नाम हटाए जा रहे हैं।

बिहार के विभिन्न जिलों में प्रशासन ने बंद को लेकर अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की है। रेलवे स्टेशनों,हाईवे और संवेदनशील इलाकों में सुरक्षा बढ़ाई गई है। कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हल्की झड़प की खबरें भी सामने आई हैं।

हालाँकि,राज्य सरकार की ओर से अब तक इस विरोध को लेकर कोई औपचारिक बयान नहीं आया है।

‘बिहार बंद’ ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि भारत में वोटिंग अधिकार सिर्फ कानूनी विषय नहीं,बल्कि राजनीतिक संघर्ष का केंद्र भी है। विपक्ष इसे गरीबों और वंचितों के अधिकार की लड़ाई बता रहा है,जबकि सत्तारूढ़ दल इसे प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा मान रहा है।

बंद के असर और समर्थन से यह साफ है कि यह मुद्दा आने वाले समय में और भी गंभीर राजनीतिक बहस का कारण बनेगा। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जैसे बड़े नेताओं के सड़क पर उतरने से साफ है कि विपक्ष इसे किसी भी सूरत में दबने नहीं देना चाहता।

अब यह देखना बाकी है कि चुनाव आयोग इस जनविरोध पर क्या रुख अपनाता है और क्या पुनरीक्षण अभियान पर कोई पुनर्विचार होता है या नहीं,लेकिन एक बात तो तय है कि बिहार की राजनीति में ‘वोटर सूची’ अब सिर्फ एक दस्तावेज नहीं,बल्कि एक सांस्कृतिक और राजनीतिक लड़ाई का प्रतीक बन चुकी है।