नई दिल्ली,29 जुलाई (युआईटीवी)- बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की, जिसमें 65 लाख मतदाताओं के संभावित रूप से मतदाता सूची से बाहर हो जाने की आशंका पर गहरी चिंता जताई गई। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि इस प्रक्रिया के तहत बड़ी संख्या में मतदाताओं को सामूहिक रूप से सूची से बाहर किया जाता है,तो शीर्ष अदालत इसमें हस्तक्षेप करने से पीछे नहीं हटेगी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की दो सदस्यीय पीठ ने यह बयान एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिया। इस मामले को लेकर कोर्ट ने 12 और 13 अगस्त को विस्तृत सुनवाई के लिए अगली तारीख तय की है।
मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण पेश हुए। उन्होंने कोर्ट को बताया कि चुनाव आयोग की ओर से जारी किए गए ड्राफ्ट मतदाता सूची से करीब 65 लाख लोगों को हटाने की प्रक्रिया अपनाई गई है। प्रशांत भूषण के अनुसार,इन लोगों को सूची में बनाए रखने के लिए निर्धारित फॉर्म भरने की आवश्यकता थी,लेकिन जिन्होंने यह फॉर्म नहीं भरा,उन्हें ड्राफ्ट सूची से बाहर कर दिया गया।
उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग का दावा है कि बाहर किए गए लोगों में से अधिकांश या तो अब जीवित नहीं हैं या वे स्थायी रूप से अन्य स्थानों पर स्थानांतरित हो गए हैं,लेकिन यह संख्या इतनी अधिक है कि इसमें किसी प्रकार की प्रशासनिक त्रुटि या पक्षपात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। भूषण के अनुसार,इन लोगों को दोबारा सूची में शामिल होने के लिए फिर से आवेदन करना होगा,जो कि एक जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया है।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उससे अपेक्षा की जाती है कि वह पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ कार्य करे। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि यदि बड़ी संख्या में नागरिकों को जानबूझकर या लापरवाही से मतदाता सूची से बाहर किया गया है,तो यह गंभीर मामला है और अदालत इस पर गौर करेगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों को अदालत के संज्ञान में लाया जाना चाहिए,ताकि समय रहते न्याय सुनिश्चित किया जा सके।
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अदालत को जानकारी दी कि अभी तक केवल ड्राफ्ट सूची ही प्रकाशित हुई है। अंतिम मतदाता सूची 15 सितंबर के आसपास जारी की जाएगी। उन्होंने कहा कि मतदाता अपने नाम हटाए जाने के खिलाफ आपत्ति दर्ज कराने के लिए स्वतंत्र हैं और आयोग उन्हें सुनवाई का पूरा अवसर दे रहा है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि किसी भी वैध मतदाता को बिना उचित प्रक्रिया के सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।
द्विवेदी ने अदालत को यह भी बताया कि इस विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से की जा रही है और इसमें किसी प्रकार का पूर्वग्रह या भेदभाव नहीं बरता गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल मामले की अगली सुनवाई के लिए 12 और 13 अगस्त की तिथि तय की है और यह संकेत दिया कि तब तक स्थिति की गहन समीक्षा की जाएगी।
यह मामला इसलिए भी संवेदनशील है,क्योंकि बिहार की राजनीतिक और सामाजिक संरचना में हर नागरिक का मताधिकार महत्वपूर्ण है। अगर इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं को सूची से बाहर कर दिया जाता है,तो यह राज्य के चुनावी परिदृश्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
चुनाव आयोग के खिलाफ इस तरह की आशंकाएँ पहले भी समय-समय पर उठती रही हैं,लेकिन इस बार मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है,जिससे इस पर उच्चतम स्तर पर निगरानी सुनिश्चित हो रही है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अंतिम मतदाता सूची जारी होने से पहले चुनाव आयोग इन चिंताओं का समाधान कैसे करता है और सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या रुख अपनाता है।