प्रधानमंत्री मोदी और डोनाल्ड ट्रंप

ट्रंप की टैरिफ नीति से भारत पर मंडराया संकट,एक अगस्त की डेडलाइन से पहले दोस्ती की परीक्षा में अमेरिका,20 से 25% तक टैरिफ लगाने के दिए संकेत

नई दिल्ली,30 जुलाई (युआईटीवी)- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ व्यापार नीति एक बार फिर भारत के लिए संकट का कारण बनती दिख रही है। अमेरिकी प्रशासन द्वारा एक अगस्त से नए टैरिफ लागू करने की योजना को लेकर वैश्विक व्यापारिक हलकों में बेचैनी है। विशेष रूप से उन देशों पर जिनके साथ अमेरिका की कोई औपचारिक व्यापार संधि नहीं हुई है,भारी शुल्क लगाए जाने की संभावना जताई जा रही है। इन देशों में भारत भी शामिल है। अब जब टैरिफ लागू होने में कुछ घंटे ही बचे हैं,सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के साथ अपनी मित्रता निभाएँगे या फिर व्यापारिक दबावों में आकर भारत पर भी सख्ती करेंगे।

डोनाल्ड ट्रंप के बयानों से यह स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि भारत के प्रति उनकी व्यापार नीति व्यक्तिगत संबंधों से ज्यादा रणनीतिक हितों पर आधारित है। एयर फोर्स वन में स्कॉटलैंड की यात्रा से लौटते हुए ट्रंप ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि भारत एक अच्छा दोस्त है,लेकिन उसने दुनिया के लगभग सभी देशों की तुलना में अधिक टैरिफ लगाया है और यह स्वीकार्य नहीं है। ट्रंप ने यह भी कहा कि भारत पर 20 से 25 फीसदी तक की टैरिफ दर लागू हो सकती है,हालाँकि,उन्होंने यह जोड़ा कि यह अंतिम निर्णय नहीं है क्योंकि दोनों देश एक अगस्त की डेडलाइन से पहले व्यापार समझौते को लेकर बातचीत कर रहे हैं।

इस घोषणा का असर तुरंत दिखाई दिया। भारतीय रुपये में गिरावट का सिलसिला तीसरे दिन भी जारी रहा और डॉलर के मुकाबले रुपया 0.5 फीसदी गिरकर 87.24 पर आ गया। बीएसई सेंसेक्स भी शुरूआती बढ़त गंवाकर स्थिर हो गया,जिससे यह साफ है कि बाजार भी ट्रंप की संभावित टैरिफ नीति को लेकर आशंकित है।

भारत के लिए 20 फीसदी या उससे अधिक की टैरिफ दर बेहद नुकसानदायक साबित हो सकती है। भारत,इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों की तुलना में बेहतर व्यापारिक शर्तों की उम्मीद कर रहा है,जहाँ 19 फीसदी टैरिफ लागू किए गए हैं। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार,दोनों देशों के बीच एक ऐसे समझौते की दिशा में प्रयास हो रहे हैं,जिससे प्रस्तावित टैरिफ दरों को 20 फीसदी से नीचे लाया जा सके। हालाँकि,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला प्रशासन अमेरिकी माँगों के हर बिंदु पर सहमत नहीं है। विशेष रूप से एग्रीकल्चर और डेयरी क्षेत्रों को खोलने की माँग का भारत ने विरोध किया है।

इस पूरे घटनाक्रम में एक बड़ा पेंच यह है कि भारत और अमेरिका के बीच अब तक व्यापार वार्ता के पाँच दौर हो चुके हैं,लेकिन कोई ठोस समझौता नहीं हो पाया है। भारत ने ट्रंप प्रशासन को यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किन सीमाओं तक समझौता कर सकता है। उदाहरण के लिए,ऑटो कंपोनेंट्स और फार्मास्यूटिकल्स जैसे कुछ उत्पादों पर भारत शून्य टैरिफ लगाने को तैयार है,लेकिन कृषि जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र को वह खुला नहीं करना चाहता। इसकी प्रमुख वजह यह है कि भारत में लाखों लोगों की आजीविका कृषि पर निर्भर है और किसान वर्ग मोदी सरकार का एक अहम वोट बैंक भी है।

हालाँकि,अमेरिका के पास भारत पर दबाव बनाने के लिए अब ‘सेकंडरी टैरिफ’ का हथियार भी है,जिसका ट्रंप सार्वजनिक रूप से उल्लेख कर चुके हैं। यदि रूस-यूक्रेन युद्ध की समाप्ति नहीं होती है,तो ट्रंप ने भारत,चीन और अन्य देशों पर रूसी तेल खरीदने के कारण अतिरिक्त टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है। इस धमकी को भारत ने न सिर्फ गंभीरता से लिया है,बल्कि अमेरिकी रुख को लेकर अपनी नाराजगी भी व्यक्त की है,खासकर उस वक्त जब ट्रंप ने दावा किया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच अप्रैल में हुए संघर्षविराम की वजह उनकी व्यापारिक धमकियाँ थीं।

अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीर ने भी संकेत दिए हैं कि भारत के साथ व्यापार समझौते के लिए अभी और बातचीत की जरूरत है। उन्होंने माना कि अमेरिका यह जानना चाहता है कि भारत अमेरिकी निर्यात के लिए अपने बाजार को कितना खोलने को तैयार है। इस बीच,रॉयटर्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 20 से 25 फीसदी तक के टैरिफ के लिए मानसिक रूप से तैयार है,लेकिन उम्मीद अभी भी बनी हुई है कि कोई बीच का रास्ता निकले।

भारत को इस बात की भी चिंता है कि अगर ट्रंप प्रशासन एकतरफा रूप से टैरिफ बढ़ाता है,तो इसका व्यापक असर न केवल व्यापारिक संबंधों पर बल्कि रणनीतिक साझेदारी पर भी पड़ेगा। भारत और अमेरिका पिछले कुछ वर्षों में रक्षा,प्रौद्योगिकी, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग को गहरा कर चुके हैं। ऐसे में व्यापार के मुद्दे पर टकराव दोनों देशों के हित में नहीं होगा।

अब जबकि एक अगस्त की डेडलाइन बहुत करीब है,भारत और अमेरिका दोनों की निगाहें अंतिम दौर की बातचीत पर टिकी हैं। भारत यह आशा कर रहा है कि ट्रंप प्रशासन एक रणनीतिक साझेदार के रूप में भारत के महत्व को समझेगा और टैरिफ में छूट या कम-से-कम नरमी का रुख अपनाएगा। वहीं,अमेरिका यह देखना चाहता है कि भारत उसके निर्यात को लेकर कितनी लचीलापन दिखा सकता है।

इस पूरे घटनाक्रम ने एक बात स्पष्ट कर दी है कि भारत-अमेरिका व्यापार संबंध अब दोस्ताना बयानों से नहीं बल्कि ठोस समझौतों की कसौटी पर कसे जाएँगे। ट्रंप की टैरिफ नीति भारत के लिए एक चुनौती है,लेकिन यह संकट दोनों देशों के लिए एक अवसर भी बन सकता है कि बशर्ते दोनों पक्ष पारस्परिक सम्मान और संतुलन की भावना से बातचीत को अंजाम तक पहुँचाए।