इस्लामाबाद/नई दिल्ली,15 मई (युआईटीवी)- हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ 1960 में हुई ‘सिंधु जल संधि’ को लेकर बड़ा कदम उठाया है। इस फैसले के बाद पाकिस्तान में हड़कंप मच गया है और उसने भारत से संधि को निलंबित करने के फैसले पर पुनर्विचार की अपील की है। पाकिस्तान ने यह भी दावा किया है कि भारत का यह कदम संधि के नियमों के खिलाफ है और इससे पाकिस्तान में गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है।
पाकिस्तान के सरकारी टीवी चैनल ‘समा टीवी’ की रिपोर्ट के अनुसार,पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव सैयद अली मुर्तजा ने भारत के जल संसाधन सचिव को एक औपचारिक पत्र भेजा है। इस पत्र में कहा गया है कि सिंधु जल संधि में कहीं भी इसे निलंबित या एकतरफा रद्द करने का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत ने जो भाषा निलंबन को लेकर इस्तेमाल की है,वह इस संधि में कहीं भी उल्लिखित नहीं है।
पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय ने भारत से आग्रह किया है कि वह इस पर पुनर्विचार करे,क्योंकि इस फैसले से पाकिस्तान में भविष्य में भारी जल संकट उत्पन्न हो सकता है। यह पत्र भारत के विदेश मंत्रालय को भेजा जा चुका है और पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर यह अपील की है कि भारत इस फैसले को वापस ले या कम से कम फिर से विचार करे।
भारत की ओर से इस मुद्दे पर अभी तक औपचारिक बयान नहीं आया है,लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयानों से यह स्पष्ट है कि भारत अब पाकिस्तान के प्रति सख्त नीति अपनाने के मूड में है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था कि, “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।” यह बयान साफ संकेत देता है कि भारत अब पाकिस्तान के साथ पुराने समझौतों को लेकर नई सोच अपना सकता है।
भारत की योजना है कि वह सिंधु जल संधि के तहत मिलने वाले अपने हिस्से के पानी का पूरा उपयोग करे। रिपोर्ट्स के अनुसार,भारत सरकार ने तीनों प्रमुख नदियों—रावी,ब्यास और सतलुज का पानी अब खुद के लिए इस्तेमाल करने की योजना पर तत्काल काम शुरू कर दिया है। इसके अलावा,मध्यकालिक और दीर्घकालिक योजनाओं को भी अंतिम रूप दिया जा रहा है,जिससे भारत को इन नदियों के जल का संपूर्ण लाभ मिल सके।
प्रधानमंत्री मोदी हाल ही में हरियाणा के आदमपुर एयरबेस पहुँचे थे, जहाँ उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में हिस्सा लेने वाले भारतीय जवानों की सराहना की। उन्होंने इसे महज एक सैन्य अभियान नहीं बल्कि भारत की नीति,नीयत और निर्णायक क्षमता की त्रिवेणी बताया। पीएम ने यह भी कहा कि इस ऑपरेशन के दौरान पूरा देश सैनिकों के साथ खड़ा रहा और उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करता रहा।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ को एक रणनीतिक संकेत के तौर पर भी देखा जा रहा है कि भारत अब अपने सैनिकों और नागरिकों पर होने वाले हर हमले का सटीक और निर्णायक जवाब देगा, चाहे वह सीमा पार आतंकवाद हो या कूटनीतिक मोर्चा।
1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। इसके तहत भारत को ब्यास,रावी और सतलुज का अधिकार मिला,जबकि सिंधु,झेलम और चेनाब नदियों पर पाकिस्तान का प्राथमिक अधिकार मान लिया गया। यह संधि पिछले छह दशकों में कई बार भारत-पाक तनाव के बावजूद बनी रही। इसे अक्सर “अविचल संधि” कहा जाता रहा है,क्योंकि युद्धों और संघर्षों के बावजूद दोनों देश इसे मानते रहे हैं।
भारत का हालिया रुख इस बात की ओर इशारा करता है कि वह अब संधियों के पालन को आतंकवाद और सीमा पार घुसपैठ से जोड़कर देखने लगा है। अगर पाकिस्तान अपने व्यवहार में बदलाव नहीं लाता,तो भारत भविष्य में अन्य संधियों और समझौतों पर भी पुनर्विचार कर सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के इस कदम का सीधा असर पाकिस्तान की आर्थिक और कृषि व्यवस्था पर पड़ेगा,क्योंकि वह अपनी सिंचाई जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं नदियों के जल से पूरा करता है। यदि भारत ने अपने हिस्से का पानी रोक लिया तो पाकिस्तान को जल संकट,खेती की हानि और भीषण सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत का सिंधु जल संधि को लेकर कड़ा रुख पाकिस्तान को सीधा संदेश है कि अब भारत केवल शब्दों से नहीं,कार्यों से जवाब देगा। पाकिस्तान की अपील और चिंता यह दर्शाती है कि उसे भारत के इस फैसले की गंभीरता का अहसास हो चुका है। अब देखना यह है कि पाकिस्तान अपने व्यवहार में बदलाव करता है या भारत अपनी नई रणनीति को और आगे ले जाता है।