मार्क कार्नी (तस्वीर क्रेडिट@kaankit)

ट्रंप की धमकी के बाद कनाडा ने झुकाया सर,कनाडा ने अमेरिकी कंपनियों पर डिजिटल टैक्स लगाने के फैसले को किया रद्द

ओटावा,30 जून (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर से वैश्विक राजनीति में अपनी ताकत और दबदबे का परिचय देते हुए सामने आए हैं। दुनिया के अलग-अलग देशों के साथ अपने हितों के अनुसार सौदेबाज़ी करना ट्रंप की खास रणनीति रही है। इस बार निशाने पर था अमेरिका का करीबी और पड़ोसी देश कनाडा,जिसने अमेरिका की बड़ी टेक कंपनियों पर डिजिटल सर्विस टैक्स (डीएसटी) लगाने की तैयारी कर ली थी,लेकिन ट्रंप की एक तीखी प्रतिक्रिया और धमकी के बाद, कनाडा ने झुकते हुए यह फैसला वापस ले लिया और व्यापार वार्ता फिर से बहाल हो गई।

कनाडा सरकार ने एक नया डिजिटल टैक्स प्रस्तावित किया था,जिसका उद्देश्य अमेरिका की टेक दिग्गज कंपनियों जैसे गूगल,मेटा,अमेज़न और एप्पल से टैक्स वसूलना था। यह डिजिटल सर्विस टैक्स सोमवार से लागू होने वाला था,लेकिन ट्रंप प्रशासन ने इसे अमेरिका पर सीधा हमला मानते हुए सख्त रुख अपना लिया। ट्रंप ने शुक्रवार को घोषणा की कि जब तक कनाडा इस टैक्स योजना को रद्द नहीं करता, तब तक अमेरिका कनाडा के साथ व्यापार वार्ता को निलंबित कर देगा।

इस बयान के आने के बाद अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समुदाय में हलचल मच गई,क्योंकि अमेरिका और कनाडा के बीच व्यापारिक रिश्ते पहले से ही विभिन्न शुल्क और नियमों को लेकर तनावपूर्ण चल रहे थे।

ट्रंप की धमकी का असर जल्द ही नजर आने लगा। कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने शनिवार को एक आधिकारिक बयान में कहा कि डिजिटल टैक्स लगाने की योजना को फिलहाल रद्द कर दिया गया है और इसके बाद अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता फिर से शुरू हो गई है।

कार्नी ने अपने बयान में कहा, “यह फैसला हमारे राष्ट्रहित में है। हम अमेरिका के साथ व्यापार समझौते की उम्मीद रखते हैं और डिजिटल टैक्स को स्थगित करना इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”

कार्नी और ट्रंप के बीच हुई सीधी बातचीत के बाद दोनों देशों ने व्यापार वार्ता को फिर से शुरू करने पर सहमति जताई। इस बातचीत के लिए 21 जुलाई 2025 की समयसीमा निर्धारित की गई है,जिसे हाल ही में आयोजित जी7 शिखर सम्मेलन में तय किया गया था।

कनाडा और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव का एक बड़ा कारण ट्रंप द्वारा स्टील और एल्युमीनियम पर लगाया गया भारी टैरिफ भी है। अमेरिका ने स्टील और एल्युमीनियम पर 50% तक का शुल्क,मोटर वाहन और उनके पार्ट्स पर 25% शुल्क तथा अन्य सामानों पर 10% बेस टैरिफ लगाया है,जिससे कनाडा जैसे पड़ोसी देशों के लिए अमेरिकी बाज़ार में सामान भेजना महंगा और मुश्किल हो गया है।

कनाडा लगातार इन शुल्कों में छूट की माँग कर रहा है,ताकि उसके उत्पादकों और निर्यातकों को राहत मिल सके। इन माँगों पर बातचीत करने के लिए ही दोनों देश नवीन व्यापार समझौते की प्रक्रिया में लगे हुए थे,जिसे ट्रंप ने डिजिटल टैक्स के कारण रोक दिया था।

ट्रंप की नीति स्पष्ट है—यदि कोई देश अमेरिकी कंपनियों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करेगा,तो अमेरिका जवाबी कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटेगा। डिजिटल टैक्स को लेकर ट्रंप की यह आक्रामकता यह बताती है कि अमेरिका अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है,चाहे वह धमकी हो,व्यापारिक समझौते का स्थगन हो या फिर आयात शुल्क बढ़ाना।

इस नीति का असर न केवल कनाडा,बल्कि दुनिया के अन्य देशों पर भी पड़ेगा,जो अमेरिका की डिजिटल कंपनियों पर टैक्स लगाने की योजना बना रहे हैं। कई यूरोपीय देश जैसे फ्रांस,जर्मनी और इटली भी इसी तरह के टैक्स की योजना बना चुके हैं,लेकिन अब उन्हें ट्रंप की धमकी के मद्देनजर सोच-समझकर कदम उठाना पड़ सकता है।

कनाडा ने ट्रंप की धमकी के बाद जिस तरह से नीतिगत लचीलापन दिखाया,वह एक परिपक्व राजनयिक निर्णय माना जा सकता है। कनाडा जानता है कि अमेरिकी बाज़ार उसके लिए सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। ऐसे में अमेरिका से रिश्ते बिगाड़ना उसके आर्थिक हितों के खिलाफ होता। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने आर्थिक समझौतों को प्राथमिकता दी और डिजिटल टैक्स जैसे विवादित मुद्दे को फिलहाल स्थगित कर दिया।

कनाडा-अमेरिका डिजिटल टैक्स विवाद एक बार फिर यह दर्शाता है कि डोनाल्ड ट्रंप अंतर्राष्ट्रीय मंच पर धमकी और दबाव की राजनीति के महारथी हैं। वे अपनी ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत हर वह कदम उठाने को तैयार रहते हैं,जो अमेरिकी हितों की रक्षा करता हो। चाहे वह आयात शुल्क हो या व्यापार वार्ता का स्थगन—ट्रंप किसी भी मुद्दे को सौदेबाज़ी के हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं।

कनाडा के झुकने से ट्रंप को कूटनीतिक सफलता मिली है,लेकिन यह भविष्य के लिए एक चेतावनी भी है कि अगर विश्व के अन्य देश अमेरिकी नीतियों के खिलाफ कदम उठाते हैं,तो उन्हें भी ऐसे ही आक्रामक रुख का सामना करना पड़ सकता है।

यह घटना न केवल अमेरिकी दबदबे की पुष्टि करती है,बल्कि वैश्विक आर्थिक संतुलन को भी एक बार फिर से अमेरिका के पक्ष में झुका देती है।