नई दिल्ली,6 मई (युआईटीवी)- केंद्र सरकार द्वारा जातिगत जनगणना को मंजूरी दिए जाने के बाद इस विषय पर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। विपक्ष लंबे समय से इसकी माँग करता रहा है,खासतौर पर कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों द्वारा इसे सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण का प्रमुख माध्यम बताया गया है। इस मुद्दे पर अब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक महत्वपूर्ण चिट्ठी लिखी है,जिसमें उन्होंने तीन ठोस सुझाव दिए हैं और इस पर सभी राजनीतिक दलों के साथ एक बैठक आयोजित करने की माँग की है।
खरगे ने अपनी चिट्ठी में यह याद दिलाया कि उन्होंने 16 अप्रैल 2023 को भी प्रधानमंत्री को इसी मुद्दे पर पत्र लिखा था,जिसमें उन्होंने जातिगत जनगणना की आवश्यकता को रेखांकित किया था। उस चिट्ठी का कोई जवाब नहीं मिलने पर उन्होंने निराशा भी जताई और कहा कि भाजपा नेताओं ने कांग्रेस की इस माँग को लेकर हमले किए,जबकि अब वही लोग इसे गंभीर सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण का मुद्दा मान रहे हैं और इसकी अहमियत को स्वीकार कर रहे हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने जातिगत जनगणना को प्रभावी और सार्थक बनाने के लिए प्रधानमंत्री को तीन प्रमुख सुझाव दिए हैं:
1. प्रश्नावली का डिज़ाइन व्यापक हो:
खरगे ने कहा कि जातिगत जनगणना केवल संख्या गिनने का माध्यम नहीं होनी चाहिए,बल्कि इसे इस तरह डिजाइन किया जाए कि इससे सामाजिक और आर्थिक दोनों तरह के विस्तृत आँकड़े प्राप्त किए जा सकें। उन्होंने उदाहरण देते हुए तेलंगाना मॉडल की ओर इशारा किया,जहाँ हाल ही में किए गए जातिगत सर्वेक्षण में प्रश्नों को समाज की व्यापक परतों को समझने के लिए डिजाइन किया गया था।
2. 50% आरक्षण की सीमा हटे और 9वीं अनुसूची में शामिल हों राज्य कानून:
दूसरे सुझाव में उन्होंने सभी राज्यों द्वारा पारित आरक्षण संबंधी कानूनों को भारतीय संविधान की 9वीं अनुसूची में रखने की बात कही। इसका उद्देश्य ये सुनिश्चित करना है कि आरक्षण नीति पर न्यायिक हस्तक्षेप ना हो सके। साथ ही,उन्होंने यह भी प्रस्ताव दिया कि ओबीसी,एससी और एसटी वर्गों के आरक्षण पर लगी 50% की सीमा को संविधान संशोधन द्वारा हटाया जाए,ताकि सच्चे सामाजिक प्रतिनिधित्व और न्याय को सुनिश्चित किया जा सके।
3. निजी शिक्षण संस्थानों में भी आरक्षण सुनिश्चित हो:
तीसरे सुझाव में खरगे ने संविधान के अनुच्छेद 15(5) का हवाला देते हुए कहा कि निजी शिक्षण संस्थानों में भी आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे कमजोर वर्गों के विद्यार्थियों को समान अवसर और शिक्षा तक पहुँच मिल सकेगी।
खरगे का मानना है कि जातिगत जनगणना केवल आबादी की गिनती का ही मामला नहीं है,बल्कि यह सामाजिक-आर्थिक योजना निर्माण का एक आवश्यक आधार है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यदि प्रश्नावली को सही ढंग से तैयार किया जाए,तो इससे गरीबी,बेरोजगारी,शिक्षा,स्वास्थ्य और अन्य सामाजिक चुनौतियों को गहराई से समझने और उनके समाधान के लिए नीतियाँ तैयार करने में मदद मिलेगी।
उन्होंने तेलंगाना में हुए हालिया सर्वे का उदाहरण देते हुए कहा कि वहाँ की सरकार ने जातिगत जानकारी इकट्ठा करने के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक स्थिति की भी बारीक जानकारी जुटाई,जिससे नीतिगत निर्णयों में पारदर्शिता और प्रभावशीलता आई।
खरगे ने प्रधानमंत्री मोदी से सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाने का अनुरोध भी किया है,ताकि इस विषय पर एक राष्ट्रीय सहमति बन सके और जातिगत जनगणना को अधिक समावेशी और प्रभावी बनाया जा सके। उन्होंने इसे राजनीति से ऊपर उठकर एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी बताया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की यह चिट्ठी केवल एक राजनीतिक पहल नहीं बल्कि सामाजिक न्याय को लेकर गंभीर सुझावों का दस्तावेज़ है। केंद्र सरकार द्वारा जातिगत जनगणना की मंजूरी को एक सही दिशा में उठाया गया कदम बताया जा रहा है,लेकिन कांग्रेस जैसे दल चाहते हैं कि इसे व्यापक,वैज्ञानिक और सामाजिक-आर्थिक नीति निर्माण का आधार बनाया जाए।
अब देखना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी इन सुझावों और सर्वदलीय बैठक की माँग पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं। क्या जातिगत जनगणना केवल एक आँकड़ों की प्रक्रिया होगी या वास्तविक सामाजिक बदलाव की नींव रखेगी,यह तो आने वाले समय में स्पष्ट होगा।