भोपाल,11 जुलाई (युआईटीवी)- मध्यप्रदेश के चर्चित कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय की अग्रिम जमानत याचिका पर अब सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। यह सुनवाई 14 जुलाई को तय की गई है। मालवीय पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भगवान शिव को लेकर बनाए गए एक विवादित कार्टून को लेकर आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। यह कार्टून साल 2021 में कोविड महामारी के दौरान सोशल मीडिया पर साझा किया गया था,जिसे आपत्तिजनक और भावनाएँ भड़काने वाला बताया गया है।
इससे पहले,मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मालवीय की अग्रिम जमानत याचिका को 3 जुलाई 2025 को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट का मानना था कि मालवीय ने संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि कार्टून बनाते समय उन्होंने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया और यह कार्य धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने तथा सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने के उद्देश्य से जानबूझकर किया गया प्रतीत होता है।
हाईकोर्ट के जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने अपने फैसले में कहा कि कार्टून में आरएसएस,प्रधानमंत्री मोदी और भगवान शिव को अपमानजनक रूप में प्रस्तुत किया गया,जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं को लांघता है। कोर्ट ने यह भी माना कि मामले में पूछताछ के लिए हेमंत मालवीय की हिरासत आवश्यक है, इसलिए उन्हें अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।
हालाँकि,यह मामला वर्ष 2021 का है,लेकिन 2025 में मई के महीने में आरएसएस से जुड़े एक सदस्य ने इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई,जिसके बाद मालवीय के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया गया। केस दर्ज होने के बाद ही हेमंत मालवीय ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी,जिसे निचली अदालत और फिर हाईकोर्ट दोनों ने खारिज कर दिया।
अब हेमंत मालवीय ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उनकी ओर से मशहूर वकील वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि विवादित कार्टून एक व्यंग्य के रूप में बनाया गया था और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत देखा जाना चाहिए। उन्होंने हाईकोर्ट पर यह आरोप भी लगाया कि उसने सुप्रीम कोर्ट के मनमानी गिरफ्तारी पर दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया और बिना पर्याप्त कारण बताए जमानत याचिका को खारिज कर दिया।
वहीं,सरकार की ओर से पेश वकील ने इसका जोरदार विरोध किया। उन्होंने कहा कि मालवीय द्वारा बनाए गए कार्टून में संवेदनशील धार्मिक और राजनीतिक संस्थाओं को जानबूझकर अपमानित करने की कोशिश की गई है,जिसे किसी भी हालत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने यह संभावना जताई थी कि भविष्य में भी मालवीय इस तरह की हरकतें दोहरा सकते हैं,इसलिए उन्हें अग्रिम जमानत का लाभ नहीं दिया गया।
अब यह मामला 14 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है। इस सुनवाई से यह तय होगा कि हेमंत मालवीय को गिरफ्तारी से राहत मिलेगी या नहीं। इस केस ने एक बार फिर भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसकी सीमाओं पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। क्या व्यंग्य,कार्टून और आलोचना की अभिव्यक्ति को कानून के तहत आपराधिक कृत्य माना जा सकता है या फिर यह रचनात्मक स्वतंत्रता का हिस्सा है?
हेमंत मालवीय का मामला सिर्फ एक कार्टूनिस्ट की गिरफ्तारी या जमानत का नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी और सामाजिक संवेदनशीलता के बीच संतुलन की परीक्षा भी है। एक ओर जहाँ राज्य की संस्थाएँ धार्मिक भावनाओं की रक्षा और सामाजिक शांति के लिए सख्त रुख अपनाए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर कलाकार,लेखक और कार्टूनिस्ट अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा की माँग कर रहे हैं। अब सुप्रीम कोर्ट क्या रुख अपनाता है,यह पूरे देश की निगाहों का केंद्र बना हुआ है।