दिल्ली तक पहुंचा उत्तराखंड का लोक पर्व ‘फूलदेई’

नई दिल्ली, 14 मार्च (युआईटीवी/आईएएनएस)- ‘छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार, सौं बारंबार नमस्कार’ इस मंगल गीत के साथ उत्तराखंड में सोमवार 14 मार्च को ‘फूलदेई’ का लोक पर्व मनाया गया। यह लोक पर्व विशेष रुप से फूलों, प्रकृति और बच्चों से जुड़ा है।

दिल्ली में भी कई स्थानों पर उत्तराखण्ड के मूल निवासियों ने अपने आवास पर बच्चों के साथ प्रकृति का आभार प्रकट करने वाला यह पर्व ‘फूलदेई’ मनाया।

चैत्र माह की संक्रांति को उत्तराखण्ड में फूल संक्रांति भी कहा जाता है। फूल संक्रांति के दिन घरों की दहलीज पर बच्चों द्वारा फूल डाले जाते हैं। फूल डालने वाले बच्चे फुलारी कहलाते हैं। इसके लिए बच्चे अपने घर से रंगीन फूल चुनकर लाते हैं और सूर्योदय से पूर्व घरों की देहरी पर डालना शुरू कर दिया।

पूर्वी दिल्ली में रहने वाले उत्तराखंड के डॉ डीसी लखचौरा ने बताया कि घरों की दहलीज पर फूल डालते समय बच्चे पहाड़ी भाषा में मंगल गीत गाते हैं, जिसके शब्द ‘छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार, सौं बारंबार नमस्कार’ हैं। इस गीत का अर्थ होता है, यह देहरी फूलों से सजी रहे, घर खुशियों से भरा रहे सबकी रक्षा हो और अन्न के भंडार सदैव भरे रहें।

डॉ. लखचौरा उत्तराखंड में विशेष रूप से पूरे कुमाऊं क्षेत्र में यह त्यौहार व्यापक स्तर पर फूल संक्रांति के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन घर-मंदिर की चौखट का तिलक करते हुए ‘फूलदेई छम्मा देई’ कहकर मंगलकामना की जाती है। यह सब कुछ घर के बच्चे करते हैं और इन बच्चों को घर के बड़ों से उपहार और पैसे मिलते हैं।

लोक पर्व फफूलदेई प्रकृति के संरक्षण के साथ-साथ वसंत ऋतु के आगमन का संदेश भी देता है। नौकरी, पढ़ाई व दूसरे वजहों से अलग होते परिवारों में प्रकृति संरक्षक से जुड़े इस पर्व को मनाने की परंपरा पिछले कुछ वर्षों में कम हुई है। उत्तराखंड के शहरों में तो यह पर्व अब केवल नाम मात्र की एक परंपरा बन कर रह गया है। पहाड़ों में लंबे समय से स्थानीय बच्चे खेतों से सरसों, फ्योंली व आड़ू-खुमानी के ताजा फूल चुनकर उनसे अपने और अपने परिचितों के घर की दहलीज सजाते आए हैं।

उत्तराखंड से जुड़े प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं पर्यावरण संरक्षक प्रोफेसर सीएस कांडपाल का कहना है कि फूलदेई का यह पर्व प्रकृति के सरंक्षण एवं हमारी संस्कृति का द्योतक है। प्रकृति के इस लोकपर्व एवं प्राचीन संस्कृति को संजोए रखने के लिए सबको प्रयास करने होंगे। बसंत ऋतु का यह पर्व सभी प्रदेशवासियों के जीवन में सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की कामना के साथ मनाया जाता है।

उन्होंने बताया कि कि प्रकृति से जुड़ा फूलदेई का पर्व हमें पर्यावरण संरक्षण एवं प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्यों की भी याद दिलाता है।

बसंत के आगमन का द्योतक यह पर्व उत्तराखंड की प्राचीन लोक संस्कृति एवं परंपराओं से जुड़ा है।

उत्तराखंड के कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी सोमवार को मुख्यमंत्री आवास में बच्चों के साथ उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई मनाया। धामी ने प्रकृति का आभार प्रकट करने वाले फूलदेई पर्व की प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दीं एवं प्रदेश की सुख-समृद्धि की कामना की।

धामी ने कहा कि उन्होंने फूलदेई लोकपर्व पर ईश्वर से कामना की कि वसंत ऋतु का यह पर्व सबके जीवन में सुख समृद्धि एवं खुशहाली लाए। धामी ने इस अवसर पर आए बच्चों को उपहार भेंट किये। धामी ने कहा कि फूलदेई उत्तराखण्ड की संस्कृति एवं परम्पराओं से जुड़ा प्रमुख पर्व है। उन्होंने कहा कि किसी राज्य की संस्कृति एवं परंपराओं की पहचान में लोक पर्वों की अहम भूमिका होती है। हमें अपने लोक पर्वों एवं लोक परम्पराओं को आगे बढ़ाने की दिशा में लगातार प्रयास करने होंगे।

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