नीरव मोदी (तस्वीर क्रेडिट@BeingArun28)

भगोड़ा हीरा कारोबारी नीरव मोदी की जमानत याचिका को ब्रिटेन के हाई कोर्ट ने किया खारिज

नई दिल्ली,16 मई (युआईटीवी)- भारत के सबसे बड़े बैंक घोटालों में से एक के मुख्य आरोपी और हीरा कारोबारी नीरव मोदी को एक बार फिर बड़ा झटका लगा है। लंदन स्थित हाई कोर्ट ऑफ जस्टिस के किंग्स बेंच डिवीजन ने नीरव मोदी की दसवीं जमानत याचिका खारिज कर दी है। इस बार उसने याचिका में लंबे समय से जेल में बंद रहने और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को आधार बनाया था,लेकिन अदालत ने उसकी दलीलों को खारिज कर दिया।

नीरव मोदी की यह याचिका यूके की अदालत में दायर की गई थी,जिसमें उसने कहा कि वह वर्ष 2019 से जेल में बंद है और उसे स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ हो रही हैं। ऐसे में उसे जमानत दी जाए,लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि नीरव मोदी द्वारा प्रस्तुत किए गए कारण जमानत के लिए पर्याप्त नहीं हैं। सीबीआई सूत्रों ने लंदन से इसकी पुष्टि की है कि अदालत ने याचिका को अस्वीकार कर दिया है,हालाँकि,फैसले का विस्तृत विवरण आने में कुछ दिन लग सकते हैं।

लंदन में यूके पुलिस ने हीरा कारोबारी नीरव मोदी को भारत सरकार की प्रत्यर्पण याचिका पर 19 मार्च 2019 को गिरफ्तार किया था। पीएनबी घोटाले में सीबीआई और ईडी ने उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी करवाया था। नीरव पर पंजाब नेशनल बैंक से 6,498.20 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का आरोप है,जो अब तक का भारत का सबसे बड़ा बैंकिंग घोटाला माना जाता है।

सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक,साल 2011 से साल 2017 के बीच नीरव मोदी और उसके सहयोगियों ने बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से 1,214 फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी करवाए। ये एलओयू उसकी कंपनियों मेसर्स डायमंड्स आर यू.एस., मेसर्स स्टेलर डायमंड और मेसर्स सोलर एक्सपोर्ट के पक्ष में जारी किए गए थे। इन एलओयू के माध्यम से विदेशी बैंकों से ऋण लिया गया,लेकिन इनका भुगतान नहीं किया गया।

इनमें से 150 एलओयू का भुगतान अब तक नहीं हुआ है,जिससे पीएनबी को 6,498.20 करोड़ रुपये का सीधा नुकसान हुआ। चार्जशीट में कुल घोटाले की राशि 23,780 करोड़ रुपये बताई गई है।

घोटाले की जानकारी सामने आने के बाद नीरव मोदी 1 जनवरी 2018 को भारत से फरार हो गया था,जिसके बाद भारत सरकार ने उसके खिलाफ फरार आर्थिक अपराधी घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की।

5 दिसंबर 2019 को विशेष अदालत ने उसे आधिकारिक रूप से फरार आर्थिक अपराधी घोषित कर दिया। इसके बाद 7 जुलाई 2020 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की याचिका पर अदालत ने उसकी 68 संपत्तियों को जब्त करने की अनुमति दी। जब्त संपत्तियों की कुल कीमत 329.66 करोड़ रुपये आंकी गई, जिनमें लंदन स्थित एक आलीशान बंगला भी शामिल है।

ब्रिटेन की हाई कोर्ट पहले ही भारत सरकार की ओर से दाखिल प्रत्यर्पण याचिका को स्वीकृति दे चुकी है। हालाँकि, नीरव मोदी ने इस आदेश को चुनौती दी है और इस समय यूके में यह मामला गोपनीय कानूनी प्रक्रिया के अधीन है। जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती,प्रत्यर्पण नहीं हो सकता।

इसी कानूनी प्रक्रिया के लंबित होने के आधार पर नीरव मोदी ने अदालत से जमानत की माँग की थी,लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। इससे यह स्पष्ट संकेत मिला है कि ब्रिटिश अदालत नीरव मोदी को कोई विशेष राहत देने के पक्ष में नहीं है।

नीरव मोदी की यह 10वीं जमानत याचिका थी और हर बार उसे झटका ही लगा है। उसने इससे पहले भी कई बार मानसिक स्वास्थ्य,जेल की खराब स्थिति और आत्महत्या की आशंका जैसे आधारों पर जमानत की माँग की थी,लेकिन हर बार अदालत ने उसे उच्च जोखिम वाला अपराधी मानते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया।

नीरव मोदी पर शिकंजा अब और कसता जा रहा है। यूके की अदालतों में लगातार हार झेलने के बाद अब उसके पास कानूनी विकल्प सीमित हो चुके हैं। भारत सरकार और जाँच एजेंसियों के लिए यह एक सकारात्मक संकेत है कि ब्रिटेन का न्याय तंत्र भी गंभीर आर्थिक अपराधों को हल्के में नहीं ले रहा।

यह मामला न केवल भारत में आर्थिक अपराधों के खिलाफ कड़ा संदेश है,बल्कि यह भी दर्शाता है कि विदेश भागने से कानून से बचा नहीं जा सकता। यदि प्रत्यर्पण प्रक्रिया अंतिम चरण में पहुँचती है,तो आने वाले महीनों में नीरव मोदी को भारत वापस लाया जा सकता है।

नीरव मोदी मामले पर देश की जनता की निगाहें टिकी हुई हैं। यह घोटाला केवल एक बैंक को नुकसान पहुँचाने का मामला नहीं,बल्कि देश के आर्थिक तंत्र पर सवाल खड़ा करता है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही उसे भारत लाकर न्यायिक प्रक्रिया के तहत सजा दिलाई जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार भी ऐसे आर्थिक अपराधियों के खिलाफ “नो टॉलरेंस” की नीति पर काम कर रही है।