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भारत-अमेरिका व्यापार समझौता: सकारात्मक वार्ता जारी,लेकिन अभी और बातचीत जरूरी

नई दिल्ली,29 जुलाई (युआईटीवी)- भारत और अमेरिका के बीच बहुप्रतीक्षित द्विपक्षीय व्यापार समझौते को लेकर उम्मीदों का माहौल बना हुआ है,लेकिन अमेरिकी प्रशासन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि समझौते को अंतिम रूप देने से पहले और बातचीत की आवश्यकता है। ऐसे समय में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा तय की गई रेसिप्रोकल टैरिफ छूट की समय सीमा 1 अगस्त को समाप्त होने जा रही है,इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच कूटनीतिक सक्रियता तेज हो गई है।

अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जैमीसन ग्रीर ने सीएनबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि वाशिंगटन नई दिल्ली के साथ व्यापारिक समझौते को लेकर सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रहा है,लेकिन अब भी कई अहम पहलुओं पर स्पष्टता और सहमति की आवश्यकता है। उन्होंने कहा,“हम अपने भारतीय समकक्षों के साथ लगातार बातचीत कर रहे हैं और यह बातचीत बेहद सकारात्मक रही है। भारत ने अपने बाजार के कुछ हिस्सों को खोलने की इच्छा जताई है,जो कि एक उत्साहजनक संकेत है,लेकिन हमें यह देखने की जरूरत है कि वे इस दिशा में कितने महत्वाकांक्षी साबित होते हैं।”

ग्रीर ने आगे कहा कि भारत की पारंपरिक व्यापार नीति घरेलू उद्योग की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के इर्द-गिर्द केंद्रित रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अमेरिका भारत के इस दृष्टिकोण को समझता है और उसी अनुसार वार्ता को आगे ले जाने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने साथ ही यह भी संकेत दिया कि अमेरिका इस समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप देना चाहता है,लेकिन यह भारत की राजनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं पर भी निर्भर करेगा।

इस बीच भारत की ओर से भी व्यापार समझौते को लेकर कई सकारात्मक संकेत सामने आए हैं। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका के साथ 26 प्रतिशत टैरिफ से बचने के लिए एक संभावित व्यापार समझौता किया जा सकता है। उनका यह बयान ऐसे समय आया है,जब अमेरिकी प्रशासन भारत सहित कुछ अन्य देशों को 1 अगस्त तक समझौता न होने की स्थिति में 35 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने की चेतावनी दे चुका है। हालाँकि,भारत को अभी तक इस तरह का कोई आधिकारिक नोटिस नहीं भेजा गया है,जिससे यह संकेत मिलता है कि दोनों देशों के बीच गहरे व्यापारिक हित मौजूद हैं।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस मुद्दे पर सकारात्मक रुख दिखाते हुए कहा कि अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता अच्छी दिशा में आगे बढ़ रही है। उन्होंने यह जरूर जोड़ा कि वह द्विपक्षीय व्यापार की गुणवत्ता पर टिप्पणी नहीं कर सकतीं,लेकिन उन्होंने भरोसा जताया कि भारत और अमेरिका के बीच सहयोग के नए आयाम खुल रहे हैं और यूरोपीय संघ के साथ भी भारत की बातचीत रफ्तार पकड़ रही है।

उधर,राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी लगातार भारत के साथ मजबूत व्यापारिक संबंधों की वकालत करते रहे हैं। इस महीने की शुरुआत में उन्होंने कहा था कि अमेरिका भारत के साथ एक व्यापार समझौते के “बहुत करीब” है और यह समझौता जल्द ही पूरा हो सकता है। ट्रंप ने यह भी कहा था कि भारत अमेरिका से आयात के लिए अपना बाजार खोलने को तैयार है,जो कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा अवसर साबित हो सकता है।

भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में पिछले कुछ वर्षों में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। भारत द्वारा अमेरिकी कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क लगाने से लेकर अमेरिका द्वारा भारत को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेस (जीएसपी) से बाहर करने जैसे फैसलों ने दोनों देशों के संबंधों में असहजता पैदा की थी। हालाँकि,रणनीतिक और रक्षा क्षेत्र में लगातार बढ़ते सहयोग ने इन मतभेदों को काफी हद तक संतुलित किया है।

इस संदर्भ में देखा जाए तो आने वाले दिनों में होने वाली बातचीत न केवल व्यापार के स्तर पर बल्कि दोनों देशों के व्यापक रणनीतिक संबंधों पर भी असर डालेगी। भारत के लिए अमेरिका के साथ व्यापार समझौता जहाँ तकनीकी निवेश और बाजार पहुँच के लिहाज से लाभकारी हो सकता है,वहीं अमेरिका के लिए भारत का बड़ा और तेजी से बढ़ता उपभोक्ता बाजार एक महत्वपूर्ण अवसर है।

विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों को व्यापार वार्ता को केवल आयात-निर्यात के स्तर तक सीमित नहीं रखना चाहिए,बल्कि इसमें तकनीक,सेवा,डिजिटल व्यापार और डेटा सुरक्षा जैसे आधुनिक विषयों को भी सम्मिलित करना चाहिए। यह भी जरूरी है कि समझौते में पारदर्शिता,न्यायसंगत प्रतिस्पर्धा और नीतिगत स्थिरता के तत्वों को भी शामिल किया जाए,ताकि दोनों पक्ष दीर्घकालिक व्यापारिक संबंधों की दिशा में आगे बढ़ सकें।

इस समय जब वैश्विक व्यापारिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं और चीन की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं,भारत और अमेरिका के बीच मजबूत और समावेशी व्यापार समझौता एक वैश्विक संदेश भी हो सकता है। यह केवल आर्थिक साझेदारी का प्रतीक नहीं होगा,बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों और साझा हितों पर आधारित एक रणनीतिक गठबंधन की भी पुष्टि करेगा।

अब देखने वाली बात यह होगी कि 1 अगस्त की समय सीमा के भीतर या उसके आसपास भारत और अमेरिका कितनी दूर तक वार्ता में प्रगति कर पाते हैं और क्या यह बहुप्रतीक्षित व्यापार समझौता हकीकत बन पाता है या नहीं,लेकिन एक बात स्पष्ट है कि दोनो देशों की मंशा सहयोग की है और यह मंशा ही भविष्य के व्यापारिक संबंधों की बुनियाद तय करेगी।