प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

जैन-हिंदू धर्म में है साम्यता,इसके अनेक सिद्धांत को प्रधानमंत्री मोदी भी मानते हैं : रवीन्द्रकीर्ति स्वामी

अयोध्या,25 जनवरी (युआईटीवी)- जैन-हिंदू धर्म में साम्यता है और इसके अनेक सिद्धांत को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी मानते हैं,इस बात को अयोध्या स्थित भगवान ऋषभदेव दिगंबर जैन मंदिर,बड़ी मूर्ति के पीठाधीश और अध्यक्ष स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी ने कही है। उनका कहना है कि जैन तीर्थंकरों के अनुव्रत,महाव्रत और पंचशील विचारों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मानते हैं। क्योंकि उन्होंने कई बार अपने भाषणों में सत्य,अहिंसा, ब्रह्मचर्य,बारअस्तेय और अपरिग्रह पालन करने की बात कही है। जिसका अर्थ है कि जैन धर्म और हिंदू धर्म में साम्यता है। रवीन्द्रकीर्ति स्वामी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि एक पुराना रिश्ता अयोध्या और इक्क्ष्वाकुवंश के मध्य है। भगवान श्रीराम का जन्म यहाँ हुआ था,यह बात तो सब जानते हैं,लेकिन इसी वंश और स्थान से जैन धर्म में पाँच तीर्थंकारों ऋषभदेव,अजीत नाथ,अभिनंदन दास,सुमतिनाथ,अनंतनाथ का भी संबंध है।

उन्होंने बताया कि अयोध्या में जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव,दूसरे तीर्थंकर अजीत नाथ,चौथे तीर्थंकर अभिनंदन दास,पाँचवे तीर्थंकर सुमतिनाथ और 14 वें तीर्थंकर अनंतनाथ का भी जन्म हुआ था। जैन पुराण के मुताबिक जैन धर्म के नाभीराय के पुत्र ऋषभदेव के 101 पुत्र थे। उनके सबसे बड़े पुत्र का नाम भरत था और उनके नाम पर ही यह भू-भाग भारत कहलाया।

उन्होंने अयोध्या के महत्ता पर कहा कि अयोध्या का जितना महत्व सनातन में है,उतना ही महत्व जैन धर्म में भी है। क्योंकि जैन धर्म के पाँच तीर्थंकारों का जन्म अयोध्या में हुआ था तथा ऋषभदेव अयोध्या के पहले राजा भी थे।

रवीन्द्रकीर्ति स्वामी ने सनातन के श्रीराम और जैन तीर्थंकारों में समानता की चर्चा करते हुए कहा कि श्रीराम और जैन तीर्थंकारों में इनके इक्क्ष्वाकुवंशीय क्षत्रिय होने की भी सम्यता है। जैन धर्म के 63 शलाका पुरुषों में श्रीराम की गिनती की जाती है। भगवान श्रीराम की गणना बालभद्र की श्रेणी में किया जाता है,जिनका जन्म अयोध्या में ही नौ लाख वर्ष पूर्व हुआ था।

उन्होंने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि सनातनी श्रीराम और 99 करोड़ जैन मुनियों ने मांगी तुंगी (महाराष्ट्र) से मोक्ष प्राप्त किया। जैन पुराणों के अनुसार,श्रीराम के पदचिह्न मांगी तुंगी में हैं,जिनकी पूजा का विधान है। इस धर्म में ग्रंथों की रचनाएँ भी जैन तीर्थंकारों और मुनियों की तरह हुई हैं। परम पुराण की रचना केवल श्रीराम के वर्णन के लिए हुई है। प्राकृत भाषा के पौमचरी की रचना श्रीराम और सीता के वर्णन के लिए हुई है।

उन्होंने आगे कहा कि हम श्रीराम और सीता को जैन ऋषि मानते हैं। भगवान श्रीराम के मांगी तुंगी में मोक्ष प्राप्त करने की मान्यता जैन ग्रंथों में पाया जाता है।

जैन धर्म को सनातन का अंग माना जाय, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि इस सांसारिक दुनिया में तीर्थंकर नहीं आता। पुण्य प्राप्ति के पश्चात ही तीर्थंकर बन सकते हैं। पुनः 24 तीर्थंकर चतुर्थ काल में जन्म लेंगे। जैन धर्म में इन्हीं विचारों को लेकर बलदेव,वासुदेव और प्रतिवासुदेव की चर्चाएँ हैं। लेकिन सनातन और जैन धर्म में सम्यता की बात जरूर है।

जैन और वैदिक को उन्होंने षड्दर्शन बताया है।चूँकि,षड्दर्शन सनातन हैं। भारत में जिन धर्मों का जन्म हुआ है,सब सनातनी हैं। इन सब के बावजूद जैन एक स्वतंत्र धर्म है।

 

 

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