नई दिल्ली,16 मई (युआईटीवी)- भारत में “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद जिस तरह से तुर्की और अज़रबैजान के भारत-विरोधी रवैये की बातें सामने आई हैं,उसके बाद अब इसका असर देश की शैक्षणिक संस्थाओं और व्यापारिक संबंधों पर भी दिखाई देने लगा है। सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू ) ने तुर्की की यूनिवर्सिटीज़ के साथ अपने शैक्षणिक समझौते रद्द किए और अब दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय ने भी तुर्की से अपने सभी शैक्षणिक रिश्ते “राष्ट्रीय सुरक्षा” का हवाला देते हुए तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिए हैं।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने स्पष्ट रूप से बयान जारी करते हुए कहा है कि वह राष्ट्र के साथ खड़ा है और किसी भी ऐसी विदेशी संस्था के साथ कोई संबंध नहीं रखेगा,जो भारत की संप्रभुता,सुरक्षा और हितों के खिलाफ खड़ी हो। विश्वविद्यालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर यह घोषणा की कि तुर्की गणराज्य से संबद्ध किसी भी संस्था के साथ किया गया कोई भी करार अब अगले आदेश तक अमान्य रहेगा।
हालाँकि,जामिया ने यह भी स्पष्ट किया कि वह अन्य देशों के शिक्षण संस्थानों के साथ अपने वैश्विक शैक्षणिक संवाद को बनाए रखेगा और अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक सहयोग को बढ़ावा देता रहेगा।
इससे पहले बुधवार को जेएनयू ने भी सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए तुर्की की यूनिवर्सिटीज़ के साथ हुए सभी शैक्षणिक करारों को समाप्त करने का निर्णय लिया था। जेएनयू प्रशासन ने कहा था कि देश की संप्रभुता और सुरक्षा सर्वोपरि है और ऐसे किसी भी देश या संस्था के साथ रिश्ता रखना उचित नहीं है,जो भारत के खिलाफ खड़ा हो।
यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है,जब ऑपरेशन सिंदूर के बाद तुर्की की भारत-विरोधी भूमिका पर कई सवाल उठे हैं,विशेषकर उसके पाकिस्तान और अज़रबैजान के साथ सामरिक समीकरणों को देखते हुए।
Due to national security considerations, any Memorandum of Understanding (MoU) between Jamia Millia Islamia, New Delhi, and any institution affiliated with the Government of the Republic of Türkiye stands suspended with immediate effect, until further orders.
Jamia Millia…
— Jamia Millia Islamia (NAAC A++ Grade Central Univ) (@jmiu_official) May 15, 2025
शैक्षणिक संस्थानों के साथ-साथ अब देश के व्यापारिक संगठन भी तुर्की और अज़रबैजान के खिलाफ कड़ा कदम उठाने की तैयारी में हैं। कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट ) ने शुक्रवार को नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय व्यापारी सम्मेलन बुलाई है,जिसमें देश के विभिन्न राज्यों के व्यापारी नेता भाग लेंगे। इस बैठक में तुर्की और अज़रबैजान से आयात-निर्यात बंद करने को लेकर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
कैट ने साफ कहा है कि जो देश भारत के खिलाफ खड़े हैं,उनके साथ व्यापारिक संबंध बनाए रखना देशभक्ति के खिलाफ है। संगठन ने कहा कि अब समय आ गया है,जब देश के व्यापारी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एकजुट होकर राष्ट्र के साथ खड़े हों और ऐसे देशों को आर्थिक स्तर पर सबक सिखाएँ।
कैट ने यह भी संकेत दिया है कि तुर्की के सामानों का बहिष्कार किया जा सकता है। घरेलू बाजार में तुर्की से आयातित वस्तुएँ जैसे सजावटी सामान,किचन आइटम्स,इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स,परफ्यूम्स और कपड़े आमतौर पर उपलब्ध होते हैं।यदि इनका बहिष्कार होता है,तो तुर्की के निर्यात पर बड़ा असर पड़ सकता है।
कैट की बैठक में यह भी चर्चा की जाएगी कि कैसे देश भर में “तिरंगा यात्रा” का आयोजन कर भारतीय सेना के पराक्रम और त्याग को सम्मान दिया जाए। इसके साथ ही,ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ भी बड़ा कदम उठाए जाने की संभावना है, जो भारतीय व्यापारियों को नुकसान पहुँचा रही हैं।
“ऑपरेशन सिंदूर” के बाद भारत में राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हुए कई संस्थानों और संगठनों ने तुर्की और अज़रबैजान के साथ अपने रिश्ते पर पुनर्विचार शुरू कर दिया है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों द्वारा तुर्की से समझौते रद्द करना यह संकेत देता है कि अब भारत की नीति स्पष्ट है – राष्ट्र के खिलाफ खड़े किसी भी देश के साथ सहयोग नहीं।
व्यापारिक मोर्चे पर भी यदि तुर्की और अज़रबैजान के साथ व्यापारिक संबंध तोड़े जाते हैं,तो यह एक बड़ा संदेश होगा कि भारत अब आर्थिक,कूटनीतिक और शैक्षणिक स्तर पर भी अपने हितों के खिलाफ खड़े देशों को बर्दाश्त नहीं करेगा।
यह घटनाक्रम यह भी दर्शाता है कि भारत में राष्ट्रवाद सिर्फ एक भावना नहीं,बल्कि नीति निर्धारण का एक सक्रिय आधार बन चुका है। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या और भी संस्थान या राज्य सरकारें इस दिशा में कदम उठाती हैं और क्या केंद्र सरकार इसे एक व्यापक नीति के रूप में अपनाती है।