नई दिल्ली,2 मई (युआईटीवी)- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने घोषणा की है कि आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जातिगत आँकड़े शामिल किए जाएँगे। यह एक महत्वपूर्ण नीतिगत उलटफेर है,जिसने गहन राजनीतिक बहस छेड़ दी है और टिप्पणीकारों द्वारा इसे “मंडल 2.0” करार दिया जा रहा है।
सूचना मंत्री अश्विनी वैष्णव ने अगली जनगणना में जाति विवरण शामिल किए जाने की पुष्टि की है,जो 1931 के बाद पहली व्यापक जाति गणना है,साथ ही अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आँकड़ों को भी इसमें शामिल किया जाएगा। इस कदम से व्यापक सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक निहितार्थ होने की उम्मीद है,खासकर देश की आरक्षण नीतियों के संबंध में।
यह फैसला बिहार में होने वाले महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले आया है, जहाँ जातिगत समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा के इस कदम का उद्देश्य विपक्ष द्वारा जाति जनगणना के लिए किए जा रहे दबाव का मुकाबला करना और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के बीच समर्थन को मजबूत करना है।
कांग्रेस समेत विपक्षी दल लंबे समय से जाति जनगणना की वकालत करते रहे हैं और तर्क देते रहे हैं कि सामाजिक न्याय कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए यह ज़रूरी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि सरकार का फ़ैसला विपक्ष के दबाव को दर्शाता है।
जातिगत आँकड़ों को शामिल करने से देश में सरकारी नौकरियों,कॉलेज में दाखिले और कुछ जातियों,खास तौर पर ओबीसी के लिए निर्वाचित पदों को आरक्षित करने वाले कोटे को समायोजित करने की माँग फिर से उठ सकती है। वर्तमान में,भारत की नीति कोटा को 50% तक सीमित करती है,जिसमें 27% ओबीसी के लिए आरक्षित है। विस्तृत जातिगत डेटा इन सीमाओं पर फिर से विचार करने के लिए आह्वान कर सकता है।
भाजपा के इस फैसले को जाति आधारित आँकड़ों की बढ़ती माँग को पूरा करने और ओबीसी के बीच अपने समर्थन आधार को कम होने से रोकने के लिए एक रणनीतिक बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। जाति जनगणना को अपनाकर,पार्टी विपक्ष के बयानों का मुकाबला करना और सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करना चाहती है।