नई दिल्ली,14 जुलाई (युआईटीवी)- 25 वर्षीय राष्ट्रीय स्तर की टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की दुखद हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। 10 जुलाई, 2025 को गुरुग्राम स्थित उनके घर पर उनके ही पिता दीपक यादव ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। यह भयावह घटना अचानक हुए गुस्से का क्षण नहीं थी, बल्कि,जैसा कि सामने आ रहे विवरण बताते हैं,एक पूर्व-नियोजित अपराध था,जिसके बाद कम से कम दस दिनों तक भावनात्मक पीड़ा और मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ी।
राधिका की करीबी दोस्त,हिमांशिका सिंह राजपूत ने इंस्टाग्राम पर कई भावुक रील्स के ज़रिए इस युवा एथलीट के आखिरी दिनों के बारे में परेशान करने वाली बातें बताईं। उन्होंने बताया कि राधिका पूरी तरह से हताश हो चुकी थीं और अपने पिता से कह रही थीं कि वह इस लगातार मानसिक पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। हिमांशिका के मुताबिक,दीपक यादव ने हत्या से तीन दिन पहले पूरी तैयारी कर ली थी,यह सुनिश्चित करते हुए कि कोई और परिवार का सदस्य या यहाँ तक कि पालतू जानवर भी बीच-बचाव के लिए मौजूद न हो। राधिका,जो कभी ताकत और आज़ादी की प्रतीक थीं,भावनात्मक रूप से टूट चुकी थीं और उन्होंने अपनी किस्मत को नकार दिया था।
राधिका के घर का माहौल,जैसा कि उसकी दोस्त ने बताया,बेहद विषाक्त था। उसके माता-पिता ने कथित तौर पर उसके जीवन पर कड़े नियंत्रण लगाए थे,शॉर्ट्स पहनने, लड़कों से बात करने और यहाँ तक कि उसकी आर्थिक आज़ादी के लिए भी उसकी आलोचना करते थे। हिमांशिका ने बताया कि उसके माता-पिता “उसे स्वतंत्र नहीं देख सकते थे” और जैसे-जैसे वह बड़ी हुई और अपना नाम कमाया,उसके जीवन पर हावी होने और उसे नियंत्रित करने की यह ज़रूरत और भी बदतर होती गई। राधिका टेनिस से होने वाली कमाई से अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही थी,फिर भी उसके पिता इससे अपमानित महसूस करते थे और कथित तौर पर उनका मानना था कि समाज उनकी बेटी की सफलता पर निर्भर रहने के लिए उनका मज़ाक उड़ाता है।
हत्या की वीभत्सता हिंसा की तीव्रता को और भी उजागर करती है। शुरुआती रिपोर्टों में कहा गया था कि दीपक ने राधिका की पीठ में तीन गोलियाँ मारी थीं। हालाँकि, पोस्टमार्टम से पता चला कि उसे चार बार गोली मारी गई थी और गोलियाँ उसकी पीठ और सीने में पाई गईं। यह एफआईआर में दर्ज तथ्यों का खंडन करता है और शुरुआती जाँच की सटीकता पर सवाल उठाता है। इससे आवेगपूर्ण कार्रवाई के बजाय सोची-समझी मंशा का संदेह और भी पुख्ता होता है।
हिमांशिका के खुलासे एक ऐसी युवती की हृदयविदारक तस्वीर पेश करते हैं,जो अपने खेल के प्रति प्रेम और घुटन भरे पारिवारिक जीवन की बेड़ियों के बीच फँसी हुई है। वर्षों तक उसने जो भावनात्मक और शारीरिक शोषण सहा,उसका क्रूर अंत हुआ,इसलिए नहीं कि वह असफल रही,बल्कि इसलिए कि उसने अपनी शर्तों पर जीने का साहस किया। इस मामले ने राष्ट्रीय आक्रोश को जन्म दिया है और परिवारों में पितृसत्ता,नियंत्रण और भावनात्मक शोषण के खतरों पर गंभीर चर्चाओं को जन्म दिया है।
जैसे-जैसे जाँच जारी है,जनता राधिका यादव के लिए न्याय की माँग कर रही है,न केवल कानूनी फैसले के रूप में,बल्कि उन गहरे सामाजिक मुद्दों को भी संबोधित करके जिनके कारण उनकी दुखद मौत हुई। उनकी कहानी इस बात की दर्दनाक याद दिलाती है कि कैसे महत्वाकांक्षा और आज़ादी को कभी-कभी हमारे सबसे करीबी लोग ही ख़तरा मान लेते हैं और कैसे,अगर इस पर लगाम न लगाई जाए,तो ऐसी ज़हरीली मानसिकताएँ अकल्पनीय नतीजों को जन्म दे सकती हैं।