नई दिल्ली,31 जुलाई (युआईटीवी)- दिल्ली की एक अदालत ने हरियाणा के शिकोहपुर में भूमि सौदे से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कांग्रेस नेता रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ नोटिस जारी करने के फैसले को टालते हुए अगली सुनवाई की तारीख 2 अगस्त निर्धारित की है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज की गई अभियोजन शिकायत के आधार पर यह मामला चल रहा है,जिसमें वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी पर हरियाणा के गुरुग्राम जिले में स्थित 3.53 एकड़ जमीन को धोखाधड़ी के जरिए खरीदने का आरोप है।
गुरुवार को राउज एवेन्यू कोर्ट को इस मामले में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाना था,लेकिन तकनीकी और प्रक्रियागत कारणों से अदालत ने फैसला सुनाने की तिथि आगे बढ़ा दी। यह मामला राजनीतिक और कानूनी दोनों ही दृष्टिकोण से अत्यधिक संवेदनशील बन गया है क्योंकि इसमें एक प्रमुख विपक्षी दल से जुड़े व्यक्ति और पूर्व मुख्यमंत्री का नाम सामने आया है।
प्रवर्तन निदेशालय का आरोप है कि स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने शिकोहपुर गाँव की इस जमीन को गलत तरीके से,फर्जी दस्तावेजों और प्रभाव का इस्तेमाल कर प्राप्त किया था। ईडी के अनुसार,जमीन की खरीद प्रक्रिया में न केवल वित्तीय अनियमितताएँ थीं,बल्कि सरकारी नियमों और प्रक्रियाओं को भी दरकिनार किया गया। मामले में ईडी के वकील ने अदालत को बताया कि बिक्री दस्तावेज में 7.5 करोड़ रुपये के भुगतान का उल्लेख किया गया,जबकि वास्तव में यह भुगतान नहीं हुआ था। एजेंसी के अनुसार,यह रकम बाद में दिखाई गई ताकि स्टांप ड्यूटी से बचा जा सके और इस संबंध में प्रमुख गवाहों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं।
मामले में एक और बड़ा आरोप यह है कि रॉबर्ट वाड्रा ने अपने राजनीतिक और व्यक्तिगत प्रभाव का इस्तेमाल कर जमीन पर व्यावसायिक परियोजना के लिए लाइसेंस प्राप्त किया। ईडी का दावा है कि यह व्यावसायिक लाइसेंस मिलने के बाद जमीन की कीमत में काफी बढ़ोतरी हुई और इसके कुछ ही समय बाद वाड्रा ने यह जमीन रियल एस्टेट की दिग्गज कंपनी डीएलएफ को 58 करोड़ रुपये में बेच दी।
इस पूरे लेनदेन को संदिग्ध मानते हुए ईडी ने इसे मनी लॉन्ड्रिंग का मामला बताया है और इसकी गहन जाँच की जा रही है। इसी वर्ष अप्रैल में रॉबर्ट वाड्रा को कई बार ईडी के समक्ष पेश होना पड़ा और उनका बयान भी दर्ज किया गया। जाँच एजेंसी का कहना है कि इस जमीन सौदे में जो भारी मुनाफा हुआ,वह संदिग्ध वित्तीय लेनदेन से जुड़ा हो सकता है।
यह सौदा फरवरी 2008 में हुआ था,जब हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री थे। ईडी के अनुसार,जिस म्यूटेशन प्रक्रिया को आम तौर पर पूरा होने में कई हफ्ते या महीने लगते हैं,वह इस मामले में महज एक दिन में पूरी कर दी गई थी। कुछ ही महीनों बाद वाड्रा को इस जमीन पर हाउसिंग प्रोजेक्ट का परमिट मिल गया,जिससे इसकी कीमत और अधिक बढ़ गई।
इस भूमि सौदे पर पहला बड़ा सवाल अक्टूबर 2012 में उठा,जब उस समय हरियाणा के भूमि रिकॉर्ड एवं पंजीकरण महानिदेशक रहे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने इस डील को रद्द कर दिया। खेमका ने अपने आदेश में स्पष्ट तौर पर बताया कि इस सौदे में प्रक्रियात्मक अनियमितताएँ हुई हैं और जमीन के हस्तांतरण में नियमों का उल्लंघन किया गया है।
हालाँकि,2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा गठित एक आंतरिक समिति ने इस सौदे की जाँच की और रॉबर्ट वाड्रा व डीएलएफ को क्लीन चिट दे दी। यह समिति इस निष्कर्ष पर पहुँची कि कोई आपराधिक मंशा या अनियमितता नहीं पाई गई,लेकिन जब 2014 में हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी,तब इस मामले की फिर से जाँच शुरू की गई और 2018 में हरियाणा पुलिस ने वाड्रा, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।
मामले के राजनीतिक पहलू भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं,जितने कानूनी। कांग्रेस पार्टी इस पूरे प्रकरण को राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रही है,जबकि सत्तारूढ़ बीजेपी इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के रूप में प्रचारित कर रही है। रॉबर्ट वाड्रा कई बार सार्वजनिक मंचों और मीडिया से बातचीत में यह कह चुके हैं कि उनके खिलाफ कार्रवाई पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है और वे किसी भी जाँच से नहीं डरते।
अब जबकि अदालत ने नोटिस जारी करने के अपने फैसले को 2 अगस्त तक टाल दिया है,सभी की निगाहें इस तारीख पर टिक गई हैं। अगर अदालत रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ नोटिस जारी करती है,तो यह मामला नए मोड़ पर जा सकता है और वाड्रा को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
यह मामला न केवल रॉबर्ट वाड्रा की कानूनी स्थिति के लिए अहम है,बल्कि आने वाले समय में इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मची रहेगी। अब देखना यह होगा कि 2 अगस्त को अदालत क्या फैसला सुनाती है और यह मुकदमा किस दिशा में आगे बढ़ता है।