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डॉलर के मुकाबले रुपये में तेजी का दौर जारी,अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 3 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुँचा

नई दिल्ली,4 अप्रैल (युआईटीवी)- डॉलर के मुकाबले रुपये में तेजी का दौर लगातार जारी है और शुक्रवार को यह 85 के नीचे गिरकर तीन महीने का सबसे उच्चतम स्तर पर पहुँच गया। कारोबारी सत्र की शुरुआत में डॉलर के मुकाबले रुपया 85.04 पर खुला और शुरुआती कारोबार में ही यह 84.99 पर पहुँच गया,जो कि पिछले सत्र में डॉलर के मुकाबले रुपया की क्लोजिंग 85.44 से 40 पैसे अधिक है। इस तेजी को लेकर विभिन्न कारकों को जिम्मेदार माना जा रहा है,जिनमें प्रमुख रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए रेसिप्रोकल टैरिफ और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट शामिल हैं।

रुपये में तेजी का एक बड़ा कारण अमेरिकी मुद्रा की कमजोरी है,जिसे ट्रंप द्वारा लागू किए गए टैरिफ से जोड़कर देखा जा रहा है। ट्रंप द्वारा टैरिफ के ऐलान के बाद से, डॉलर इंडेक्स में बड़ी गिरावट आई है,जो अमेरिकी मुद्रा की अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले कमजोरी को दर्शाता है। इस इंडेक्स में 101.69 के आसपास की गिरावट देखी गई है,जबकि ऐलान के समय गुरुवार को डॉलर इंडेक्स 104 के आसपास था। इससे अमेरिकी मुद्रा की ताकत में कमी आई है और डॉलर कमजोर हुआ है,जिसका सीधा असर रुपये पर पड़ा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप द्वारा जो टैरिफ लगाए गए है,वह अपेक्षाकृत अधिक हैं,जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मंदी का सामना करना पड़ सकता है। इसके परिणामस्वरूप डॉलर की माँग में कमी आई है,जो रुपये के पक्ष में काम कर रही है। जानकारों के अनुसार,इस स्थिति का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है, जिससे रुपये को सहारा मिल रहा है और वह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रहा है।

रुपये की मजबूती में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट भी एक महत्वपूर्ण योगदान कर रही है। ब्रेंट क्रूड की कीमत 69.64 डॉलर प्रति बैरल के आसपास बनी हुई है। भारत अपनी तेल जरूरतों का 80 प्रतिशत से अधिक कच्चे तेल का आयात करता है और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट होने से भारत को विदेशी मुद्रा की बचत होती है। जब कच्चे तेल की कीमतें गिरती हैं,तो इसका सीधा असर रुपये पर पड़ता है और उसे मजबूती मिलती है। कम कीमतों के कारण भारत की मुद्रा में सुधार होता है,क्योंकि इससे व्यापार घाटा कम होता है और विदेशी मुद्रा का भंडार मजबूत होता है।

एलकेपी सिक्योरिटी में वीपी रिसर्च एनालिस्ट (कमोडिटी और करेंसी) जतिन त्रिवेदी के अनुसार,डॉलर के मुकाबले रुपये में तेज रिकवरी देखी जा रही है। उनके मुताबिक,वैश्विक संकेतों और एफआईआई फ्लो के कारण रुपये को 85 से 85.90 के बीच में स्थिर रहने की संभावना है। यदि विदेशी निवेशकों से पूँजी प्रवाह में वृद्धि होती है और वैश्विक संकेत सकारात्मक रहते हैं,तो रुपये को और मजबूती मिल सकती है।

इस समय भारतीय मुद्रा में जो मजबूती देखी जा रही है,वह भारत की वित्तीय स्थिति को भी स्थिरता प्रदान कर रही है। हालाँकि,रुपये की आगे की दिशा पूरी तरह से वैश्विक घटनाक्रमों पर निर्भर करेगी,विशेषकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था और कच्चे तेल की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव पर।

इस बदलाव का भारतीय व्यापारियों और आयातकों पर भी गहरा असर पड़ सकता है,क्योंकि इससे आयातित सामान की लागत कम हो सकती है और विदेशों में व्यापार करने वाले भारतीय व्यापारियों को अधिक लाभ हो सकता है। साथ ही,विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय बाजारों में निवेश करना अधिक आकर्षक हो सकता है, क्योंकि रुपये की स्थिरता उनके लिए लाभकारी हो सकती है।

डॉलर के मुकाबले रुपये में हो रही यह मजबूती केवल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है,बल्कि इससे भारतीय बाजारों में भी निवेश आकर्षक हो सकते हैं। आगे चलकर,यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या डॉलर और रुपये के बीच का अंतर और बढ़ता है या यह स्थिति स्थिर रहती है।