अंकारा,13 मई (युआईटीवी)- रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को अब दो वर्ष से अधिक हो गए हैं और लाखों लोगों की जानें, घर और सपने इस संघर्ष की भेंट चढ़ चुके हैं। इसी पृष्ठभूमि में एक बार फिर तुर्की ने खुद को शांति का सेतु बनाने की कोशिश की है। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से फोन पर बातचीत कर इस दिशा में नई उम्मीदें जगाई हैं।
तुर्की राष्ट्रपति कार्यालय से जारी आधिकारिक बयान के अनुसार,एर्दोगन और जेलेंस्की के बीच हुई इस बातचीत का मुख्य उद्देश्य रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए शांति वार्ता को प्रोत्साहित करना और समर्थन देना था। एर्दोगन ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि यदि इस युद्ध को समाप्त करना है,तो इसके लिए सबसे पहला कदम युद्धविराम होना चाहिए।
उन्होंने दोहराया कि तुर्की,जो अतीत में भी ऐसी वार्ताओं का हिस्सा रहा है,एक बार फिर दोनों देशों के प्रतिनिधियों की इस्तांबुल में मेजबानी करने के लिए पूरी तरह तैयार है। 2022 में भी रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत का एक दौर इस्तांबुल में हुआ था,लेकिन वह बिना किसी ठोस नतीजे के समाप्त हो गया था।
तुर्की के राष्ट्रपति की यह बातचीत रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से हुई चर्चा के ठीक एक दिन बाद हुई,जिससे यह संकेत मिलता है कि तुर्की एक बार फिर युद्धरत पक्षों के बीच पुल बनने के प्रयास में जुट गया है।
सोमवार की कैबिनेट बैठक के बाद अपने संबोधन में एर्दोगन ने कहा,
“तुर्की आज वैश्विक शांति और कूटनीति के एक अहम स्तंभ के रूप में उभरा है। हम मध्यस्थता,मानवीय सहायता और संघर्ष समाधान में अपनी भूमिका को पूरी गंभीरता से निभा रहे हैं।”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि तुर्की का मकसद केवल युद्ध को रोकना नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थायी समाधान निकालना है,जो दोनों देशों के लिए स्वीकार्य हो।
तुर्की के विदेश मंत्री हकान फिदान ने भी राष्ट्रपति के बयान को दोहराते हुए कहा कि तुर्की रूस-यूक्रेन वार्ता को सुविधाजनक बनाने और उसका मेजबान बनने को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने बताया कि दोनों पक्षों के बीच संभावित बैठक के प्रारूप पर चर्चा जारी है।
फिदान ने यह भी कहा कि, “यूक्रेन चाहता है कि पहले युद्धविराम हो,फिर बातचीत शुरू की जाए,जबकि रूस वार्ता के दौरान युद्धविराम की बात करता है। हम दोनों पक्षों से आग्रह करते हैं कि वे एक साथ आएं और किसी समझौते तक पहुँचने की कोशिश करें।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि अमेरिका जैसे बड़े देशों का समर्थन दोनों पक्ष पाने की कोशिश कर रहे हैं,लेकिन तुर्की की स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है कि “हमें शांति चाहिए और वह जितनी जल्दी आए,उतना बेहतर।”
रविवार को क्रेमलिन में पत्रकारों से बातचीत करते हुए राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि रूस 15 मई को इस्तांबुल में शांति वार्ता फिर से शुरू करने को तैयार है। उन्होंने कहा कि रूस,इस संघर्ष के “मूल कारणों” को समझने और समाधान निकालने की दिशा में गंभीर वार्ता चाहता है।
इसके जवाब में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने भी इस संकेत का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह अच्छा है कि रूस अब शांति की दिशा में सोचने लगा है, लेकिन उन्होंने यह दोहराया कि बातचीत शुरू होने से पहले युद्धविराम की घोषणा जरूरी है।
यहाँ गौर करने की बात यह है कि यूक्रेन,अब तक की बातचीतों में रूस पर भरोसा करने से हिचकता रहा है,क्योंकि 2022 की इस्तांबुल वार्ता भी किसी परिणाम पर नहीं पहुँच पाई थी।
इस युद्ध के चलते यूरोप की अर्थव्यवस्था,वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति,खाद्य सुरक्षा और मानवाधिकारों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। लाखों लोग बेघर हुए,हजारों मारे गए और पूरी दुनिया ने इसके दुष्परिणाम झेले। ऐसे में एक मजबूत और तटस्थ मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाला देश ही इस गतिरोध को तोड़ सकता है।
तुर्की,जो नाटो का सदस्य होते हुए भी रूस के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने में सफल रहा है,इस भूमिका के लिए उपयुक्त माना जा रहा है। एर्दोगन की छवि एक ऐसे नेता की है,जो कूटनीतिक संतुलन बनाने में सक्षम हैं।
अगर पुतिन और जेलेंस्की दोनों की ओर से सकारात्मक संकेत जारी रहते हैं,तो मई में इस्तांबुल में शांति वार्ता का एक नया दौर शुरू हो सकता है। तुर्की की कोशिश यही है कि वह दोनों पक्षों को एक टेबल पर लाए और एक ऐसा मसौदा तैयार करवाए जो केवल युद्ध को रोकने के लिए नहीं,बल्कि स्थायी शांति की दिशा में पहला कदम हो।
हालाँकि,यह काम आसान नहीं होगा। यूक्रेन चाहता है कि रूस पीछे हटे,जबकि रूस यूक्रेन से कुछ क्षेत्रीय रियायतों की माँग करता रहा है। ऐसे में दोनों की माँगें अब भी सामंजस्य से दूर नजर आती हैं।
तुर्की का यह कदम सिर्फ यूक्रेन और रूस के लिए ही नहीं,बल्कि पूरी दुनिया के लिए मायने रखता है। तुर्की अगर शांति वार्ता की मेजबानी कर सफल होता है,तो यह उसकी कूटनीतिक सफलता होगी। यह वैश्विक राजनीति में तुर्की के प्रभाव को भी मजबूत करेगा और तुर्की को एक “शांति निर्माता” देश के रूप में स्थापित कर सकता है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले हफ्तों में क्या रूस और यूक्रेन वास्तव में इस्तांबुल में आमने-सामने बैठते हैं और क्या इस बार कोई ठोस समाधान निकलता है या यह कोशिश भी 2022 की तरह अधूरी रह जाएगी।