तेजस्वी यादव (तस्वीर क्रेडिट@KraantiKumar)

तेजस्वी यादव ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर जाति जनगणना के फैसले का किया स्वागत,जाति जनगणना को सामाजिक न्याय का पहला कदम बताया

पटना, 3 मई (युआईटीवी)- बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक विस्तृत और भावनात्मक पत्र लिखकर जाति जनगणना कराने के हालिया फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल बताते हुए केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि इस जनगणना को केवल आँकड़ों तक सीमित न रखते हुए,इसे व्यवस्थित सुधारों का माध्यम बनाया जाए।

तेजस्वी यादव ने अपने पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा कि वर्षों तक केंद्र सरकार और एनडीए गठबंधन जाति आधारित जनगणना की माँग को खारिज करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस माँग को कभी “विभाजनकारी” तो कभी “अनावश्यक” बताया गया। जब बिहार ने खुद का जाति सर्वेक्षण कराने की पहल की,तब केंद्र के अधिकारी और भाजपा के वरिष्ठ नेता लगातार इसमें बाधाएँ उत्पन्न करते रहे। उन्होंने कहा कि अब जब केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना की घोषणा की है,तो यह फैसला सकारात्मक बदलाव की ओर एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

तेजस्वी यादव ने बिहार में किए गए जाति सर्वेक्षण के आँकड़ों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुए बताया कि इस सर्वेक्षण ने कई पूर्वधारणाओं को तोड़ा है। इसके अनुसार,बिहार की आबादी में ओबीसी और ईबीसी वर्ग लगभग 63% हैं,यानी बहुसंख्यक समाज को लंबे समय से हाशिये पर रखा गया है। उन्होंने आशंका जताई कि राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसा ही परिदृश्य उभर सकता है, जहाँ वंचित समुदाय बहुसंख्यक हों,लेकिन सत्ता के केंद्रों से दूर।

तेजस्वी ने इस पत्र में सामाजिक न्याय को सुदृढ़ करने के लिए आरक्षण नीति की व्यापक समीक्षा की आवश्यकता बताई है। उन्होंने कहा कि 50% आरक्षण की सीमा जो मनमाने ढंग से तय की गई थी,उस पर अब पुनर्विचार होना चाहिए। जब आँकड़े यह दर्शाएँगे कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग कितनी बड़ी संख्या में मौजूद हैं,तो उनके लिए आरक्षण को सीमित करना एक अन्याय होगा।

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि आगामी परिसीमन प्रक्रिया यानी चुनाव क्षेत्रों का नया निर्धारण जाति जनगणना के आँकड़ों के आधार पर होना चाहिए,ताकि राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी समानता के सिद्धांत पर आधारित हो सके। ओबीसी और ईबीसी जैसे वर्गों को निर्णय लेने वाले मंचों पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए।

तेजस्वी ने संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहा कि राज्य का कर्तव्य है कि वह आर्थिक असमानताओं को कम करे और संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करे। उन्होंने लिखा कि जब तक यह जानकारी नहीं होगी कि किन वर्गों के कितने लोग वंचित हैं और उनकी आर्थिक स्थिति क्या है,तब तक लक्षित कल्याण योजनाएँ बनाना असंभव है। जाति जनगणना इस दिशा में नीतिगत हस्तक्षेपों के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करेगी।

पत्र में एक और महत्वपूर्ण पहलू पर तेजस्वी यादव ने प्रकाश डाला – निजी क्षेत्र में सामाजिक न्याय का प्रतिबिंब। उन्होंने कहा कि निजी कंपनियों को सरकारी समर्थन जैसे-सस्ती जमीन,बिजली सब्सिडी,कर छूट और आधारभूत संरचना मिला है,लेकिन वे सामाजिक जिम्मेदारी से अछूते नहीं रह सकते।

तेजस्वी ने सुझाव दिया कि जाति जनगणना से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग निजी क्षेत्र में विविधता और समावेशिता बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए। कंपनियों को अपने संगठनात्मक ढांचे में सामाजिक विविधता का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना चाहिए। यह सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों के साथ न्याय होगा।

तेजस्वी ने पीएम मोदी को यह भी याद दिलाया कि भारत में कई बार रिपोर्टें और आँकड़े तैयार किए गए,लेकिन वे सरकार की अलमारियों में ही धूल खाते रह गए। उन्होंने कहा कि यह मौका अलग होना चाहिए। अब जब सरकार ने ऐतिहासिक निर्णय लिया है,तो इसे सामाजिक बदलाव के उत्प्रेरक के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए,न कि एक और खोई हुई रिपोर्ट के रूप में।

तेजस्वी यादव ने पत्र के अंत में बेहद संवेदनशील शब्दों में लिखा, “इस जनगणना के लिए संघर्ष करने वाले लाखों लोग केवल डेटा की प्रतीक्षा नहीं कर रहे हैं,वे सम्मान और सशक्तिकरण की भी प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह केवल गिनती नहीं है,यह भागीदारी की माँग है।”

उन्होंने यह भी भरोसा दिलाया कि बिहार के प्रतिनिधि के रूप में वे केंद्र सरकार को हरसंभव रचनात्मक सहयोग देने को तैयार हैं,ताकि यह प्रक्रिया केवल प्रतीकात्मक न रह जाए बल्कि वास्तविक परिवर्तन का माध्यम बने।

तेजस्वी यादव का यह पत्र केवल एक राजनीतिक दस्तावेज नहीं है,बल्कि यह उस सामाजिक चेतना की पुकार है,जो वर्षों से हाशिए पर खड़े लोगों को न्याय दिलाने के लिए प्रयासरत है। जाति जनगणना एक अहम कदम है,लेकिन यह तभी सार्थक होगी जब इसके आधार पर नीतिगत,राजनीतिक और आर्थिक सुधार किए जाएँगे। अब देखना यह है कि केंद्र सरकार इस पहल को कितनी गंभीरता से लागू करती है और इसे समावेशी लोकतंत्र की दिशा में किस प्रकार ले जाती है।