अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (तस्वीर क्रेडिट@Mahsar_khan)

ट्रंप ने हार्वर्ड के 2 बिलियन डॉलर से अधिक के अनुदान पर लगाया रोक,हार्वर्ड ने ट्रम्प प्रशासन पर दायर किया मुकदमा

नई दिल्ली,22 अप्रैल (युआईटीवी)- अमेरिका की राजनीति और शिक्षा जगत के बीच एक बड़ा टकराव सामने आया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और विश्वप्रसिद्ध हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच का विवाद अब एक तीव्र कानूनी लड़ाई में बदल गया है। मामला सरकारी फंडिंग को लेकर शुरू हुआ था,लेकिन अब यह अकादमिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और कैंपस राजनीति को लेकर एक बड़ी बहस बन चुका है।

विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई जब ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को दी जाने वाली 2.2 बिलियन डॉलर (लगभग 18 हजार करोड़ रुपये) की फंडिंग पर रोक लगा दी। इसके साथ ही सरकार ने एक और 1 बिलियन डॉलर की फंडिंग रोकने की धमकी भी दी। इस कार्रवाई के पीछे तर्क यह दिया गया कि हार्वर्ड समेत कुछ अन्य यूनिवर्सिटी अपने परिसरों में यहूदी-विरोधी प्रदर्शनों को रोकने में नाकाम रही हैं।

ट्रंप प्रशासन का आरोप है कि हार्वर्ड सहित कुछ प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों को बढ़ावा दे रहे हैं,जिनमें इजरायल के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है। यह प्रदर्शन खासतौर पर गाजा पट्टी पर इजरायल के हमलों के बाद तेज़ हुए। सरकार का कहना है कि ऐसे प्रदर्शनों से यहूदी छात्रों की सुरक्षा खतरे में पड़ती है और यह अमेरिकी मूल्यों के खिलाफ है।

इस फंडिंग रोकने की कार्रवाई के खिलाफ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने करारा जवाब देते हुए सरकार पर मुकदमा दर्ज कर दिया है। यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष एलन गार्बर ने स्पष्ट कहा कि वे अकादमिक स्वतंत्रता और संस्थान की स्वायत्तता के लिए कोई समझौता नहीं करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि ट्रंप प्रशासन हार्वर्ड पर दबाव बना रहा है कि वह अपने एडमिशन और हायरिंग प्रक्रिया में बदलाव करे और यूनिवर्सिटी की विचारधारा पर सरकारी सुपरविजन को माने।

गार्बर ने आगे कहा कि हार्वर्ड के ऊपर एक के बाद एक सरकारी जाँच शुरू की गई हैं,जो यूनिवर्सिटी की छवि और संचालन पर सीधा हमला है। उन्होंने इसे “शैक्षणिक स्वतंत्रता पर राजनीतिक हमला” बताया और यह भी कहा कि एक यूनिवर्सिटी को अपने छात्रों और शिक्षकों की वैचारिक स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए।

डोनाल्ड ट्रंप ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रूथ’ पर प्रतिक्रिया देते हुए हार्वर्ड पर निशाना साधा। उन्होंने लिखा, “हार्वर्ड अब पढ़ने के लिए अच्छी जगह नहीं रही और यह अब दुनिया की बेहतरीन यूनिवर्सिटीज़ की सूची में शामिल नहीं हो सकती।”

उनका यह बयान शिक्षा जगत में चर्चा का विषय बन गया है। ट्रंप पहले भी अमेरिका की कई प्रतिष्ठित संस्थाओं जैसे कोलंबिया यूनिवर्सिटी पर इसी तरह की कार्रवाई कर चुके हैं। इन संस्थानों पर भी यही आरोप लगाया गया कि वे फिलिस्तीन समर्थक गतिविधियों को रोकने में विफल रहे हैं।

यह विवाद अमेरिका में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल को भी जन्म दे रहा है। एक ओर विश्वविद्यालय प्रशासन कह रहा है कि छात्रों को अपनी राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए,वहीं ट्रंप प्रशासन इसे देश की यहूदी आबादी के लिए खतरा बता रहा है।

सरकार का तर्क है कि इजरायल-विरोधी बयानबाज़ी और प्रदर्शन एंटी-सेमिटिक यानी यहूदी विरोधी भावना को बढ़ावा देते हैं,जिससे अमेरिका में सामाजिक ताना-बाना बिगड़ सकता है।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थाओं में गिनी जाती है। यूनिवर्सिटी की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, 2024-2025 शैक्षणिक वर्ष में इसके कुल नामांकन का 27.2% हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का है। ऐसे में अगर सरकार द्वारा फंडिंग में कटौती होती है,तो इसका सीधा असर हार्वर्ड की वैश्विक प्रतिष्ठा और शोध कार्यों पर पड़ेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस तरह की कार्रवाई आगे भी जारी रहती है, तो इससे अमेरिकी विश्वविद्यालयों की स्वतंत्रता,नवाचार क्षमता और वैश्विक आकर्षण को गंभीर चोट पहुँच सकती है।

डोनाल्ड ट्रंप और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच का यह टकराव महज एक संस्थान बनाम सरकार का मामला नहीं है,बल्कि यह एक वैचारिक लड़ाई का प्रतीक बन चुका है। यह लड़ाई अमेरिकी लोकतंत्र के मूलभूत मूल्यों अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अकादमिक स्वायत्तता और विचारों के खुले आदान-प्रदान को लेकर लड़ी जा रही है।

अब सभी की निगाहें अदालत पर हैं कि वह इस विवाद में सरकार के आदेशों के पक्ष में खड़ी होती है या विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता के पक्ष में।