नई दिल्ली,17 मई (युआईटीवी)- भारत में विमानन सेवाओं से जुड़ी तुर्की की ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एक बड़े विवाद के केंद्र में आ गई है। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के हवाले से कंपनी की सुरक्षा मंजूरी को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है। इस फैसले के विरोध में सेलेबी ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
यह विवाद सिर्फ एक कंपनी तक सीमित नहीं है,बल्कि यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी निवेश,न्यायिक संतुलन और कूटनीतिक संबंधों से गहराई से जुड़ा हुआ मुद्दा बन गया है।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि बीसीएएस (नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो) के महानिदेशक की शक्तियों का उपयोग करते हुए, राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज की सुरक्षा मंजूरी रद्द की जा रही है। यह आदेश बिना किसी पूर्व सूचना के तत्काल प्रभाव से लागू किया गया।
सरकार के मुताबिक,यह निर्णय उस बढ़ती हुई माँग के बीच लिया गया है,जिसमें तुर्की के व्यवसायों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही जा रही थी। इसका कारण है तुर्की का पाकिस्तान को दिया जा रहा समर्थन,जिसे भारत में आतंकवाद का मददगार माना जाता है।
एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि सेलेबी का आंशिक स्वामित्व तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन की बेटी सुमेये एर्दोगन के पास बताया गया है। सुमेये की शादी सेल्कुक बेराकटार से हुई है,जो उस कंपनी के मालिक हैं,जो बेराकटार सैन्य ड्रोन बनाती है। वही ड्रोन जिसे पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया है।
यह केवल सरकारी नीति नहीं,बल्कि एक ऐसा मामला बन गया है,जिसमें एक राजनीतिक परिवार सीधे तौर पर शामिल है। यही बात इस मुद्दे को और भी संवेदनशील बनाती है और सरकार के निर्णय को एक राष्ट्रहित का फैसला ठहराती है।
सेलेबी ने इस आदेश को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। अपनी याचिका में कंपनी ने इसे मनमाना,कानूनविरुद्ध और ‘अस्पष्ट राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं’ पर आधारित बताया है।
कंपनी ने तर्क दिया कि सरकार ने उन्हें कोई पूर्व सूचना या नोटिस नहीं दिया,आदेश में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि कंपनी से किस तरह का खतरा है,राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सिर्फ बयानबाजी की गई,जिससे कानून के तहत कोई ठोस आधार नहीं बनता।
सेलेबी ने यह भी चेताया कि इस निर्णय का असर 3,791 भारतीय कर्मचारियों की नौकरियों पर पड़ेगा। साथ ही निवेशकों के विश्वास को झटका लगेगा और भारत के हवाई अड्डों पर दी जा रही ग्राउंड हैंडलिंग सेवाओं में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
सेलेबी 2008 से भारतीय विमानन क्षेत्र में सक्रिय है। वर्तमान में यह कंपनी मुंबई हवाई अड्डे सहित कई प्रमुख हवाई अड्डों पर यात्री सेवाएँ,कार्गो संचालन,एयरोब्रिज संचालन,उड़ान नियंत्रण और डाक सेवाएँ जैसी करीब 70% ग्राउंड हैंडलिंग सेवाओं का संचालन करती है। कंपनी का दावा है कि इस अचानक लिए गए फैसले से हवाई अड्डों का सामान्य संचालन भी प्रभावित हो सकता है।
नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स ’ (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट के जरिए कहा कि, “हमें पूरे देश से सेलेबी पर प्रतिबंध लगाने के अनुरोध मिले थे। हमने इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए कार्रवाई की है। राष्ट्रीय हित हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।”
सरकार इस निर्णय को एक सख्त लेकिन आवश्यक कदम मान रही है,खासकर तब जब तुर्की जैसे देशों के कुछ व्यवसायों को पाकिस्तान समर्थक बताया जा रहा है।
भारत में कानूनी प्रणाली में यह देखा गया है कि किसी भी निजी कंपनी की सुरक्षा मंजूरी रद्द करने के लिए सरकार को ठोस और अदालती समीक्षा योग्य तर्क देना होता है। अब यह देखना अहम होगा कि दिल्ली हाईकोर्ट इस याचिका पर क्या फैसला देती है।
भारत का तुर्की के साथ पहले से ही तनावपूर्ण रिश्ता है,खासकर कश्मीर मुद्दे और इस्लामिक मंचों पर तुर्की की टिप्पणियों के चलते।पाकिस्तान के समर्थन को लेकर तुर्की की भूमिका पर भारत पहले भी नाराज़गी जता चुका है।
सेलेबी पर कार्रवाई के ज़रिए भारत ने स्पष्ट संदेश दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया जाएगा,चाहे वह आर्थिक नुकसान के रूप में ही क्यों न हो।
सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज पर यह फैसला भारत में एक बड़ा प्रेसिडेंट स्थापित कर सकता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर किसी विदेशी कंपनी की अनुमति रद्द की जा सकती है,भले ही वह वर्षों से परिचालन में हो।
अब यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट के पाले में है। यह मामला भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए भी एक कसौटी बनेगा,क्या ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का तर्क अकेले ही पर्याप्त है या उसे प्रमाणिक रूप से साबित करना आवश्यक है?
एक ओर सरकार देश की सुरक्षा को सर्वोच्च मान रही है,तो दूसरी ओर सेलेबी इसे ‘कानून के विरुद्ध और निवेश विरोधी कदम’ बता रही है। आने वाले दिनों में यह केस भारत में कानून,राष्ट्रहित और व्यापार के बीच संतुलन को लेकर एक महत्वपूर्ण दिशा तय करेगा।