अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता टैमी ब्रूस (तस्वीर क्रेडिट@garrywalia_)

यूनेस्को से अमेरिका की वापसी की घोषणा,इजरायल विरोधी नीतियों और फिलिस्तीन की सदस्यता को बताया कारण

संयुक्त राष्ट्र,23 जुलाई (युआईटीवी)- अमेरिका ने एक बार फिर से संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक,वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) से अपनी वापसी की घोषणा कर दी है। मंगलवार को अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने यह घोषणा करते हुए कहा कि यूनेस्को विभाजनकारी सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों को बढ़ावा दे रहा है और सतत विकास पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है। ब्रूस के अनुसार, यह रुख अमेरिका की “अमेरिका फर्स्ट” विदेश नीति के विपरीत है और यूनेस्को में लगातार भागीदारी करना संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रीय हित में नहीं है।

ट्रंप प्रशासन के दौरान यह दूसरा मौका है,जब अमेरिका ने पेरिस स्थित यूनेस्को से खुद को अलग किया है। डोनाल्ड ट्रंप ने पहले भी अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की आलोचना करते हुए कई बार उनसे खुद को अलग करने के कदम उठाए थे। राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में अमेरिका ने दो साल पहले ही यूनेस्को में फिर से वापसी की थी,लेकिन अब एक बार फिर से यह संबंध टूटने की कगार पर है। ब्रूस ने कहा कि इस निर्णय की औपचारिक प्रभावशीलता अगले वर्ष के अंत तक लागू होगी।

अमेरिकी प्रवक्ता ब्रूस ने यूनेस्को की नीतियों को अमेरिकी विदेश नीति के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा, “यूनेस्को का अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए वैश्विक,वैचारिक एजेंडा हमारी अमेरिका प्रथम विदेश नीति के विपरीत है।” उन्होंने विशेष रूप से फिलिस्तीन को सदस्य राज्य के रूप में स्वीकार करने के यूनेस्को के निर्णय को “बेहद समस्याग्रस्त” करार दिया और कहा कि इस निर्णय ने संगठन के भीतर इजरायल विरोधी बयानबाजी को बढ़ावा दिया है।

ट्रंप प्रशासन लंबे समय से यूनेस्को की इजरायल विरोधी नीतियों की आलोचना करता रहा है। अमेरिका का आरोप है कि यूनेस्को में फिलिस्तीन की सदस्यता को बढ़ावा देकर इजरायल को लेकर पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया गया है। ब्रूस ने स्पष्ट किया कि जब तक संगठन इस तरह के रुख को नहीं बदलता,तब तक अमेरिका के लिए इसमें बने रहना मुश्किल है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने इस निर्णय पर गहरा खेद व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “यूनेस्को की स्थापना के बाद से अमेरिका ने इसमें एक प्रमुख भूमिका निभाई है और उसकी वापसी दुखद है।” दुजारिक ने कहा कि यूनेस्को की गतिविधियाँ सांस्कृतिक संरक्षण और वैश्विक शैक्षिक कार्यक्रमों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं और अमेरिका की अनुपस्थिति से इन प्रयासों पर असर पड़ सकता है।

यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्रे अजोले ने भी इस निर्णय को बहुपक्षवाद के सिद्धांतों के विपरीत बताया। उन्होंने कहा कि अमेरिका का बाहर होना सबसे पहले उन अमेरिकी समुदायों को प्रभावित कर सकता है,जो विश्व धरोहर सूची में स्थान पाने, रचनात्मक शहर का दर्जा हासिल करने या यूनेस्को के शैक्षिक कार्यक्रमों में भाग लेने की इच्छा रखते हैं। अजोले ने हालाँकि यह भी कहा कि इस निर्णय की संभावना पहले से थी और संगठन ने इसके लिए तैयारी कर ली थी।

यूनेस्को के बजट में अमेरिका का योगदान लंबे समय से महत्वपूर्ण रहा है। 2023 में अमेरिका ने संगठन को लगभग 28 मिलियन डॉलर का योगदान दिया था,जो उसके कुल बजट का लगभग 22 प्रतिशत था। हालाँकि,हाल के वर्षों में अन्य सदस्य देशों और निजी योगदानकर्ताओं के समर्थन से संगठन ने अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर किया है। अजोले ने बताया कि अब अमेरिकी योगदान घटकर केवल 8 प्रतिशत रह गया है,जिससे संगठन वित्तीय दृष्टि से अपेक्षाकृत सुरक्षित है।

डोनाल्ड ट्रंप का यह कदम उनके प्रशासन की उस नीति के अनुरूप है,जिसमें उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की बार-बार आलोचना की है। ट्रंप ने कार्यभार संभालने के तुरंत बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से भी अमेरिका को अलग कर लिया था। उन्होंने कोविड-19 महामारी के प्रबंधन में डब्ल्यूएचओ की भूमिका की तीखी आलोचना की थी और उस पर महामारी को राजनीतिक रंग देने का आरोप लगाया था।

ट्रंप प्रशासन का मानना है कि कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन अमेरिकी हितों के अनुरूप काम नहीं कर रहे और अमेरिकी योगदान का सही इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने ऐसे संगठनों से खुद को अलग करने की नीति अपनाई।

अमेरिका के यूनेस्को से बाहर होने का सबसे बड़ा प्रभाव उन अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक और शैक्षिक परियोजनाओं पर पड़ सकता है,जिनमें अमेरिका की सक्रिय भागीदारी रही है। अमेरिका यूनेस्को के कई कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण तकनीकी और वित्तीय सहयोग प्रदान करता रहा है,विशेष रूप से विश्व धरोहर स्थलों के संरक्षण और शिक्षा के क्षेत्र में।

अजोले ने कहा कि यूनेस्को इस निर्णय से प्रभावित तो होगा,लेकिन सदस्य देशों के मजबूत समर्थन से उसके कार्यक्रम जारी रहेंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिका के बाहर होने के बावजूद संगठन बहुपक्षीय सहयोग के अपने लक्ष्य पर काम करता रहेगा।

अमेरिका का यूनेस्को से बाहर होना अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का विषय है। जहाँ अमेरिका का मानना है कि यूनेस्को की नीतियाँ उसके राष्ट्रीय हितों के विपरीत हैं,वहीं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इसे बहुपक्षीय सहयोग के लिए एक झटका मान रहा है। यह कदम एक बार फिर दिखाता है कि ट्रंप प्रशासन अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रति अपने रुख में बदलाव नहीं लाया है। आने वाले समय में देखना होगा कि क्या यह निर्णय वैश्विक सांस्कृतिक और शैक्षिक पहलों को प्रभावित करेगा या यूनेस्को बिना अमेरिकी सहयोग के भी अपने कार्यक्रमों को मजबूती से आगे बढ़ा पाएगा।