नई दिल्ली,7 अप्रैल (युआईटीवी)- सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर विचार करने के लिए सहमति दे दी है। ये याचिकाएँ विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं और इन पर शीघ्र सुनवाई की माँग की गई थी। इस संदर्भ में, जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपनी दलील प्रस्तुत की। सिब्बल ने कहा कि ये याचिकाएँ संविधान और नागरिकों के अधिकारों से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाती हैं और इन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कपिल सिब्बल की दलील को ध्यान में रखते हुए कहा, “मैं दोपहर में उल्लेख पत्र देखूँगा और फिर निर्णय लूँगा।इस पर सूचीबद्ध करेंगे।” यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के सामने एक महत्वपूर्ण मामला लाता है,जिसमें वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के संवैधानिक वैधता को चुनौती दी जा रही है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को पिछले शुक्रवार को संसद द्वारा पारित किया गया था और इसके पारित होने के तुरंत बाद शीर्ष अदालत में कई याचिकाएँ दायर की गईं। इन याचिकाओं में वक्फ (संशोधन) विधेयक को संविधान के खिलाफ बताया गया है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी इस विधेयक को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की घोषणा की है। कांग्रेस का आरोप है कि यह विधेयक संविधान के मूल ढाँचे पर हमला है और इसके माध्यम से धर्म के आधार पर देश को “ध्रुवीकृत” और “विभाजित” करने का प्रयास किया जा रहा है।
कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने अपनी याचिका में कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार),25 (धर्म के पालन और प्रचार करने की स्वतंत्रता),26 (धार्मिक संप्रदायों को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता),29 (अल्पसंख्यकों के अधिकार) और 300A (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करता है। कांग्रेस सांसद और लोकसभा में पार्टी के सचेतक मोहम्मद जावेद ने यह भी कहा कि इस कानून के माध्यम से धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है और यह मुसलमानों के अधिकारों का उल्लंघन है।
वहीं,जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी इस कानून को चुनौती दी है और इसे “देश के संविधान पर सीधा हमला” बताया है। जमीयत ने अपने बयान में कहा कि यह विधेयक मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता छीनने की एक खतरनाक साजिश है। उन्होंने कहा कि इस संशोधन के परिणामस्वरूप मुस्लिम समुदाय को उनके धार्मिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। इसलिए,जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सर्वोच्च न्यायालय से इस कानून की संवैधानिक वैधता की समीक्षा करने की माँग की है। इसके अलावा,जमीयत की राज्य इकाइयाँ भी अपने-अपने राज्यों के उच्च न्यायालयों में इस कानून को चुनौती देने का विचार कर रही हैं।
इससे पहले,ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख अकबरुद्दीन ओवैसी ने भी इस कानून के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है। ओवैसी का कहना है कि यह कानून मुसलमानों के धार्मिक और संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन करता है। ओवैसी और उनकी पार्टी ने भी इस कानून को संविधान और मुस्लिम समुदाय के अधिकारों के खिलाफ करार दिया है।
केंद्र सरकार ने इस कानून का बचाव करते हुए कहा कि यह कानून मुसलमानों के लाभ के लिए है और इसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन और विकास करना है। केंद्र सरकार का दावा है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता है और न ही यह मुसलमानों को किसी प्रकार का नुकसान पहुँचाता है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि यह विधेयक “सबका साथ,सबका विकास” के दृष्टिकोण से प्रेरित है और इसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के बीच सामाजिक और आर्थिक समावेशिता बढ़ाना है।
इसी बीच,संसद के दोनों सदनों से बजट सत्र में वक्फ (संशोधन) विधेयक,2025 पारित हो चुका है। इसके बाद,राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे अपनी मंजूरी दे दी है। गजट अधिसूचना के जारी होने के साथ ही वक्फ अधिनियम,1995 का नाम बदलकर अब यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट,इम्पावरमेंट,एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट (उम्मीद) अधिनियम,1995 कर दिया गया है। इस संशोधन के तहत,वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने का प्रयास किया गया है।
केंद्र सरकार का कहना है कि यह कानून मुसलमानों के जीवन स्तर को सुधारने और उनके आर्थिक व सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए है। सरकार का यह भी दावा है कि इस विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का अधिकतम उपयोग करना और उन्हें विकास के लिए ठीक तरीके से प्रबंधित करना है। हालाँकि,विरोधी दलों का कहना है कि इस विधेयक में अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन किया गया है और यह संविधान के मौलिक सिद्धांतों के खिलाफ है।
वर्तमान में,यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और शीर्ष अदालत से इस पर निर्णय की प्रतीक्षा की जा रही है। यह मामला भारतीय राजनीति और समाज में भी काफी चर्चा का विषय बन चुका है,क्योंकि यह मसला केवल मुसलमानों के अधिकारों से संबंधित नहीं,बल्कि पूरे भारतीय संविधान की संप्रभुता और धर्मनिरपेक्षता से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस पर गहरा प्रभाव डालेगा और इससे देश में धार्मिक स्वतंत्रता,समानता और न्याय के सिद्धांतों को लेकर एक महत्वपूर्ण चर्चा शुरू हो सकती है।