नई दिल्ली, 23 मई (युआईटीवी)- भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर एक अहम और उत्साहजनक खबर सामने आई है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने भारत की ट्रेंड जीडीपी ग्रोथ का अनुमान बढ़ा दिया है। फिच का मानना है कि भारत की लंबी अवधि की आर्थिक वृद्धि पहले से अधिक मजबूत हो सकती है और इसके पीछे सबसे बड़ा कारण श्रम शक्ति भागीदारी दर में हाल के वर्षों में आई तेजी है।
भारत की संभावित जीडीपी वृद्धि दर को वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने अगले पाँच वर्षों के लिए 6.2% से बढ़ाकर 6.4% कर दिया है,जो यह संकेत देता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब स्थिर और टिकाऊ विकास की दिशा में अग्रसर है,जिससे दीर्घकालिक आर्थिक भरोसे में वृद्धि हुई है।
फिच रेटिंग्स के अनुसार, भारत की ट्रेंड ग्रोथ दर अब 6.4% होनी चाहिए, जो पहले 6.2% थी। यह बदलाव श्रम शक्ति भागीदारी दर में तेजी का परिणाम है। यह दर अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की औसत 3.9% वृद्धि दर की तुलना में कहीं अधिक है, जो भारत की मजबूत आर्थिक क्षमता दर्शाती है।
फिच की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में टोटल फैक्टर प्रोडक्टिविटी (टीएफपी) की वृद्धि दर अब धीमी हो सकती है और इसके दीर्घकालिक औसत 1.5% के आसपास स्थिर रहने की संभावना है। टीएफपी वह मीट्रिक है,जो यह मापता है कि किसी अर्थव्यवस्था में पूँजी और श्रम का उपयोग कितनी कुशलता से किया जा रहा है।
हालाँकि,टीएफपी में कमी देखी जा सकती है,लेकिन कुल रोजगार में वृद्धि के कारण भारत की वृद्धि दर में स्थायित्व देखने को मिल रहा है। सरल शब्दों में कहें तो,अब भारत की आर्थिक वृद्धि प्रोडक्टिविटी से अधिक रोजगार की वजह से हो रही है।
फिच ने यह साफ तौर पर उल्लेख किया कि भारत की वृद्धि अब श्रम उत्पादकता से ज्यादा श्रम इनपुट पर निर्भर है। इसका आशय है कि अब ज्यादा लोग, खासकर महिलाएं और युवा, रोजगार में भाग ले रहे हैं। यह बढ़ती भागीदारी देश की खपत, उत्पादन और निवेश को मजबूती देती है, जिससे आर्थिक विकास को स्थायी गति मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
रिपोर्ट के अनुसार,फिच ने भागीदारी दर में वृद्धि को ऊपर की ओर संशोधित किया है,जबकि पूँजी गहनता यानी प्रति कर्मचारी मशीनों/तकनीकी निवेश में अपेक्षाकृत धीमी प्रगति को कम करके आंका गया है। जहाँ भारत के लिए फिच ने अनुमान बढ़ाया है,वहीं चीन के लिए अनुमान घटाकर 4.6% से 4.3% कर दिया गया है। इसका प्रमुख कारण चीन में पूँजी निवेश की रफ्तार में गिरावट,श्रम शक्ति भागीदारी में तेज गिरावट, आबादी के बुजुर्ग होने की दर में वृद्धि और युवा श्रमिकों की कमी शामिल है।
भारत के मुकाबले चीन की आर्थिक संभावनाएँ अब कमजोर दिख रही हैं,जो एक भू-आर्थिक परिप्रेक्ष्य से भारत को वैश्विक निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बना सकती हैं।
फिच की रिपोर्ट से कुछ ही दिन पहले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी कहा था कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है। आईएमएफके अनुसार, “भारत अगले दो वर्षों तक 6% से अधिक की वृद्धि दर वाला एकमात्र बड़ा देश रहेगा।”
जब आईएमएफ ने 120 से अधिक देशों के विकास अनुमान घटाए हैं,तब भारत का अनुमान स्थिर या बेहतर बना रहना इसकी आंतरिक आर्थिक शक्ति और सुधारों का प्रमाण है।
फिच की संशोधित रिपोर्ट भारत के लिए एक मनौवैज्ञानिक और नीति निर्माताओं के लिए सकारात्मक संकेत है। इससे स्पष्ट है कि भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश अब आर्थिक बढ़त में बदलने लगा है, श्रमिकों की बढ़ती संख्या खपत और बचत में इजाफा कर रही है और निवेशक भारत को एक मजबूत और विश्वसनीय आर्थिक गंतव्य के रूप में देख सकते हैं।
हालाँकि,कुछ चुनौतियाँ जैसे कि प्रोडक्टिविटी सुधार,पूँजी निवेश में तेजी और शिक्षा/स्वास्थ्य क्षेत्र की मजबूती अभी भी जरूरी हैं,लेकिन यह भी स्पष्ट है कि भारत अब एक दीर्घकालिक विकास पथ पर मजबूती से आगे बढ़ रहा है।