सोल,5 जून (युआईटीवी)- दक्षिण कोरिया में हाल ही में राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने वाले ली जे-म्यांग ने अपने कार्यकाल की शुरुआत एक महत्वपूर्ण और स्पष्ट संदेश के साथ की है । देश की सुस्त अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। पद ग्रहण करने के ठीक बाद, उन्होंने अपने पहले कार्यकारी आदेश के रूप में आर्थिक संकट से निपटने के लिए एक आपातकालीन टास्क फोर्स के गठन का निर्देश दिया। यह कदम न केवल उनके चुनावी वादों की दिशा में एक त्वरित पहल है,बल्कि देश की वर्तमान आर्थिक चुनौतियों से भी सीधे टकराने का संकेत है।
समाचार एजेंसी योनहाप की रिपोर्ट के अनुसार,इस टास्क फोर्स का गठन राष्ट्रपति ली की केंद्रीय आर्थिक नीति की उस घोषणा के अनुरूप है,जिसे उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार दोहराया था। अपने चुनावी अभियान में ली ने वादा किया था कि यदि वे निर्वाचित होते हैं,तो देश की आर्थिक स्थिति को सुधारना और आम जनता की आजीविका में मजबूती लाना उनकी प्रमुख प्राथमिकता होगी।
ली ने चुनाव प्रचार के दौरान एक बड़ी घोषणा करते हुए यह भी कहा था कि वे कम -से-कम 30 ट्रिलियन वॉन (लगभग 21.77 अरब डॉलर) का अतिरिक्त बजट पेश करेंगे। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह नई गठित टास्क फोर्स इस अतिरिक्त बजट के प्रारूप और कार्यान्वयन पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करेगी।
ली प्रशासन के अधीन राष्ट्रपति नीति कार्यालय के नए प्रमुख और डेमोक्रेटिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रमुख ली हान-जो ने एमबीसी रेडियो से बातचीत करते हुए बताया कि इस अतिरिक्त बजट का एक बड़ा हिस्सा छोटे व्यापारियों की मदद के लिए क्षेत्रीय प्रीपेड वाउचर कार्यक्रमों को जारी रखने में इस्तेमाल किया जाएगा।
ये वाउचर कार्यक्रम पिछले वर्षों में छोटे कारोबारियों को राहत देने के लिए शुरू किए गए थे और अब ली प्रशासन इसे और व्यापक बनाना चाहता है,जिससे बाजार में माँग को बढ़ाया जा सके और स्थानीय अर्थव्यवस्था में नई जान फूँकी जा सके।
राष्ट्रपति ली ने सार्वजनिक सुरक्षा के मुद्दों को भी गंभीरता से लिया है। उन्होंने स्थानीय सरकारों के अधिकारियों को शामिल करते हुए एक कार्य-स्तरीय बैठक आयोजित करने का निर्देश दिया है,जो गुरुवार की सुबह आयोजित की जाएगी। इस बैठक का उद्देश्य सार्वजनिक व्यवस्था,नागरिक सुरक्षा और आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र की समीक्षा करना है।
दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था काफी हद तक निर्यात और वैश्विक व्यापार पर निर्भर है। ऐसे में राष्ट्रपति ली की सबसे बड़ी चुनौती अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ताओं को सही दिशा में ले जाना है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अपनाई गई उच्च टैरिफ नीति ने दक्षिण कोरियाई उत्पादों की प्रतिस्पर्धा को प्रभावित किया है,जिससे कोरिया की निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्था को झटका लगा है।
विशेष रूप से अमेरिका द्वारा स्टील और अन्य औद्योगिक उत्पादों पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने की योजना से दक्षिण कोरिया चिंतित है। हालाँकि,अमेरिका ने इन शुल्कों को 90 दिनों के लिए स्थगित किया है,जिसकी समयसीमा 9 जुलाई को समाप्त हो रही है। ऐसे में राष्ट्रपति ली की सरकार के पास सीमित समय है कि वे वॉशिंगटन के साथ एक व्यापक व्यापार समझौता कर सकें।
सियोल और वॉशिंगटन पहले ही सहमत हो चुके हैं कि 90-दिवसीय अवधि समाप्त होने से पहले एक व्यापक पैकेज डील तैयार की जाए,जिसमें टैरिफ,निवेश, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और बाजार पहुँच जैसे मुद्दे शामिल हों।
दक्षिण कोरियाई अर्थव्यवस्था इस समय दो मोर्चों पर संघर्ष कर रही है। पहली तो घरेलू माँग में गिरावट। महामारी और वैश्विक मंदी के प्रभाव से आम लोगों की क्रय शक्ति कमजोर हुई है।
दूसरी अमेरिका की टैरिफ नीति,जो देश के पारंपरिक निर्यात क्षेत्रों को नुकसान पहुँचा रही है।ऐसे में राष्ट्रपति ली के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वे त्वरित और ठोस उपायों से इन दोनों मोर्चों पर नियंत्रण पाएँ।
विशेषज्ञों के अनुसार,ली प्रशासन को निम्नलिखित प्राथमिकताओं पर ध्यान देना होगा:
अतिरिक्त बजट का कुशल उपयोग – ताकि छोटे व्यापारियों, बेरोजगारों और कमजोर वर्गों को राहत मिल सके।
वाणिज्यिक समझौतों में दक्षता – अमेरिका और अन्य देशों के साथ संतुलित व्यापार समझौते।
स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा – खासकर उभरते हुए क्षेत्रों जैसे सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रिक वाहन और ग्रीन एनर्जी में निवेश।
ईएसजी (पर्यावरण, सामाजिक, शासन) फ्रेमवर्क के अंतर्गत पारदर्शी और टिकाऊ विकास रणनीति।
राष्ट्रपति ली जे-म्यांग के सामने कार्यभार ग्रहण करते ही अर्थव्यवस्था को संजीवनी देने की चुनौती खड़ी हो गई है। आपातकालीन टास्क फोर्स का गठन,अतिरिक्त बजट की तैयारी और अमेरिका के साथ व्यापार समझौते की समयसीमा उनके प्रशासन के लिए एक शुरुआती अग्निपरीक्षा हैं।
ली की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वे कितनी कुशलता से घरेलू और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करते हैं और क्या वे जनता की उम्मीदों पर खरे उतर पाते हैं। उनके लिए यह सिर्फ आर्थिक प्रबंधन नहीं,बल्कि राजनीतिक नेतृत्व की भी परीक्षा है,जहाँ दृढ़ निर्णय,त्वरित कार्रवाई और पारदर्शिता ही उनकी सबसे बड़ी पूँजी साबित होंगी।

