शुभांशु शुक्ला (तस्वीर क्रेडिट@pankajdubey79)

अंतरिक्ष में भारत का गौरव,आईएसएस पहुँचे शुभांशु शुक्ला ने छात्रों संग साझा किए रोचक अनुभव,मस्तिष्क-कंप्यूटर इंटरफेस पर कर रहे हैं रिसर्च

नई दिल्ली,4 जुलाई (युआईटीवी)- भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ चुका है। शुभांशु शुक्ला,जो अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर पहुँचने वाले पहले भारतीय नागरिक बन गए हैं,इस समय एक्सिओम स्पेस मिशन-4 के तहत 14 दिनों के लिए अंतरिक्ष में हैं। गुरुवार को उन्होंने भारतीय छात्रों के साथ एक खास वर्चुअल बातचीत की,जिसमें उन्होंने अपने अंतरिक्ष अनुभव साझा किए और छात्रों के कई जिज्ञासापूर्ण सवालों के दिलचस्प जवाब दिए।

शुभांशु शुक्ला ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि जब वे पहली बार आईएसएस पहुँचे तो उन्हें सबसे अद्भुत बात यह लगी कि वहाँ न तो फर्श है और न ही छत। उन्होंने छात्रों से कहा,”यह वास्तव में मजेदार है,क्योंकि आप कभी छत पर सोते हैं,तो कभी दीवार पर टिके रहते हैं। हर दिशा ऊपर या नीचे जैसी लगती ही नहीं है।”

उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष में भारहीनता (माइक्रोग्रैविटी) के कारण नींद लेते समय खुद को स्लीपिंग बैग से बाँधना जरूरी होता है,ताकि आप सोते-सोते स्टेशन में कहीं तैरते हुए न चले जाएँ।

जब एक छात्र ने पूछा कि अंतरिक्ष में खाने का क्या होता है,तो शुक्ला ने बताया कि सभी भोजन पहले से पैक होते हैं और उनके पोषण तत्वों का विशेष ध्यान रखा जाता है। उन्होंने कहा,”हम लॉन्च से पहले कई तरह के खाने चखते हैं और जो पसंद आता है,वही मिशन के दौरान दिया जाता है।”

उन्होंने बताया कि भारहीनता के कारण पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाती है और तरल पदार्थ शरीर में ऊपर की ओर प्रवाहित होने लगते हैं,जिससे शरीर की आंतरिक प्रक्रियाओं पर असर पड़ता है। हालाँकि,शरीर कुछ ही दिनों में माइक्रोग्रैविटी के वातावरण के अनुसार ढल जाता है।

एक छात्र ने अंतरिक्ष यात्रा के दौरान मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल किया,जिस पर शुक्ला ने कहा कि आज की तकनीक के कारण अंतरिक्ष यात्री अपने परिवार और दोस्तों से जुड़े रह सकते हैं,जिससे मानसिक तनाव काफी हद तक कम हो जाता है। उन्होंने कहा,”हर कुछ दिन में हमें घर से बात करने का समय मिलता है। इससे भावनात्मक जुड़ाव बना रहता है और मनोबल भी बढ़ता है।”

एक छात्र के सवाल पर कि यदि कोई अंतरिक्ष में बीमार हो जाए तो क्या होता है, शुभांशु ने जवाब दिया कि आईएसएस में मेडिकल किट्स और आवश्यक दवाइयाँ मौजूद रहती हैं। इसके अलावा,अंतरिक्ष यात्री बुनियादी प्राथमिक चिकित्सा में प्रशिक्षित होते हैं और ज़रूरत पड़ने पर पृथ्वी से डॉक्टरों से तुरंत संपर्क किया जा सकता है।

एक्सिओम मिशन 4 के तहत शुभांशु को स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट से लॉन्च किया गया था। उन्होंने इस अनुभव को “अद्भुत और गतिशील” बताया। उन्होंने कहा कि जैसे ही रॉकेट लॉन्च हुआ, कुछ ही पलों में भारी कंपन महसूस हुए और उसके बाद एकदम सन्नाटा। फिर सब कुछ भारहीन हो गया।

नासा ने गुरुवार को पुष्टि की कि शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में एक अत्याधुनिक परियोजना पर कार्य कर रहे हैं। वह मस्तिष्क-कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) विकसित कर रहे हैं,जो भविष्य में मन और मशीन के बीच सीधा संपर्क स्थापित कर सकेगा।

यह रिसर्च अंतरिक्ष में मानव प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए किया जा रहा है, खासकर लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के दौरान। शुक्ला इस मिशन में अमेरिका,पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्रियों के साथ हैं।

मिशन एक्सिओम-4 के तहत यह दल आईएसएस पर 60 से अधिक वैज्ञानिक और वाणिज्यिक प्रयोग कर रहा है। इसमें 31 देशों का सहयोग है,जिनमें भारत,अमेरिका, पोलैंड,हंगरी,सऊदी अरब,ब्राजील,नाइजीरिया,यूएई और अन्य यूरोपीय राष्ट्र शामिल हैं।

भारत ने इसरो के माध्यम से 7 वैज्ञानिक प्रयोगों का योगदान दिया है,जिन्हें विशेष रूप से भारतीय वैज्ञानिकों ने इस मिशन के लिए तैयार किया है।

शुभांशु शुक्ला की यह यात्रा भारत के लिए गौरव और प्रेरणा का प्रतीक बन गई है। एक ऐसे समय में जब देश मानव अंतरिक्ष मिशन ‘गगनयान’ की तैयारी कर रहा है, शुभांशु जैसे वैज्ञानिकों की अंतर्राष्ट्रीय उपस्थिति भारत की वैज्ञानिक क्षमता और महत्वाकांक्षाओं को नई ऊँचाई देती है।

बातचीत के अंत में शुभांशु शुक्ला ने छात्रों को संदेश देते हुए कहा,”अगर आप बड़े सपने देख सकते हैं,तो उन्हें हासिल भी कर सकते हैं। विज्ञान,तकनीक और धैर्य से हर सपना साकार हो सकता है।”उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे विज्ञान और अनुसंधान में रुचि लें और कभी हार न मानें।

शुभांशु शुक्ला की यह अंतरिक्ष यात्रा सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नहीं,बल्कि युवा भारत के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर उभरी है। उनकी बातचीत ने यह स्पष्ट किया कि अंतरिक्ष अब सिर्फ वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की सीमा नहीं,बल्कि आम छात्रों और नागरिकों के लिए भी एक वास्तविक सपना बनता जा रहा है।
भारत अब न सिर्फ पृथ्वी पर,बल्कि अंतरिक्ष में भी अपने झंडे बुलंद कर रहा है।