नई दिल्ली,8 जुलाई (युआईटीवी)- बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान को लेकर अब मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर ) ने इस अभियान के खिलाफ सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर की है,जिसमें मतदाताओं के अधिकारों पर खतरा जताया गया है। वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिका पर जल्द सुनवाई की माँग करते हुए इसे लाखों लोगों के संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मुद्दा बताया।
एडीआर की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया है कि चुनाव आयोग द्वारा चलाया जा रहा यह विशेष अभियान समाज के सबसे कमजोर वर्गों को प्रभावित कर सकता है। कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दलील दी कि अगर यह प्रक्रिया जल्द नहीं रोकी गई तो हजारों-लाखों लोगों का नाम मतदाता सूची से हट सकता है,जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गहरा असर पड़ेगा।
सिब्बल ने कोर्ट से अपील की कि इस मामले की सुनवाई तुरंत की जाए,क्योंकि चुनाव आयोग ने इस अभियान के लिए सिर्फ एक महीने की समयसीमा तय की है,जो संवेदनशील है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया,लेकिन 10 जुलाई (गुरुवार) को मामले की विस्तृत सुनवाई करने पर सहमति जताई है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा है कि वे अपनी याचिका की प्रतियाँ चुनाव आयोग और अन्य संबंधित पक्षों को सौंपें, ताकि सभी पक्ष सुनवाई में उपस्थित रह सकें।
एडीआर के अलावा इस अभियान के खिलाफ कुल चार याचिकाएँ दाखिल की गई हैं। प्रमुख याचिकाकर्ताओं में आरजेडी सांसद मनोज झा,पीयूसीएल (पीयूसीएल – पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज),राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव व टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा शामिल हैं।
इन सभी ने एक स्वर में मतदाता सूची में किसी भी प्रकार की अनावश्यक छेड़छाड़ पर आपत्ति जताई है और न्यायालय से दखल की माँग की है।
बिहार में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान की घोषणा की है। इस अभियान के तहत 11 दस्तावेजों की एक सूची जारी की गई है, जिनमें से किसी एक को पहचान और पते के प्रमाण के रूप में देना अनिवार्य किया गया है। बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) स्थानीय स्तर पर घर-घर जाकर लोगों से फॉर्म भरवाने और दस्तावेज एकत्र करने का कार्य कर रहे हैं।फॉर्म न भरने वालों का नाम सूची से हटाया जा सकता है,इस आशंका को लेकर राजनीतिक और सामाजिक संगठनों में चिंता व्याप्त है।
भारत निर्वाचन आयोग और बिहार की सूचना एवं जनसंपर्क विभाग (पीआईबी) ने मतदाताओं को अभियान के प्रति जागरूक करने के लिए सोशल मीडिया और स्थानीय कार्यक्रमों का सहारा लिया है। पीआईबी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा,”अगर वोट देना है तो फॉर्म भरना होगा।”
यह संदेश विशेष रूप से उन लोगों के लिए है,जो सूची में नाम जुड़वाना चाहते हैं या फिर अपने विवरण में संशोधन करवाना चाहते हैं।
बिहार में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। ऐसे में मतदाता सूची का पुनरीक्षण अभियान राजनीतिक रूप से अत्यंत संवेदनशील बन गया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि इस अभियान की आड़ में चुनिंदा समुदायों या क्षेत्रों के मतदाताओं को निशाना बनाया जा सकता है। जबकि चुनाव आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप है।
अब सभी की नजरें 10 जुलाई को होने वाली सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं। यदि कोर्ट अंतरिम राहत देता है,तो आयोग को अभियान पर रोक लगानी पड़ सकती है। वहीं अगर कोर्ट आयोग की प्रक्रिया को वैध मानता है,तो विशेष पुनरीक्षण की प्रक्रिया यथावत जारी रहेगी।
यह मामला न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण बन गया है,क्योंकि यह लोकतंत्र की बुनियादी इकाई मतदाता की पहचान और अधिकार से जुड़ा हुआ है। अदालत का फैसला आने वाले दिनों में राजनीतिक समीकरणों और चुनावी प्रक्रिया दोनों को प्रभावित कर सकता है।