सीएम फडणवीस ने 'सिंदूर ब्रिज' का उद्घाटन किया (तस्वीर क्रेडिट@CMOMaharashtra)

‘सिंदूर ब्रिज’ का उद्घाटन: गुलामी की निशानी को मिटाकर आत्मगौरव की नई पहचान

मुंबई,10 जुलाई (युआईटीवी)- मुंबई में बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक ऐतिहासिक पहल के तहत ‘सिंदूर ब्रिज’ का उद्घाटन किया। यह ब्रिज पहले ‘कार्नैक ब्रिज’ के नाम से जाना जाता था,जो अब एक नए नाम और नई पहचान के साथ मुंबई के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों को जोड़ने का काम करेगा। इस उद्घाटन कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा भी शामिल हुए।

मुख्यमंत्री फडणवीस ने उद्घाटन के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि यह ब्रिज केवल एक बुनियादी ढाँचे का निर्माण नहीं है,बल्कि यह भारत के आत्मगौरव और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि पुराने कार्नैक ब्रिज की हालत बेहद जर्जर हो चुकी थी,जिससे वह खतरनाक साबित हो रहा था। इस कारण उसे तोड़कर उसकी जगह नया ब्रिज बनाया गया है।

सीएम फडणवीस ने स्पष्ट रूप से बताया कि इस ब्रिज का नाम बदलना सिर्फ एक औपचारिक निर्णय नहीं है,बल्कि यह एक वैचारिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से प्रेरित कदम है। उन्होंने कहा कि पहले यह ब्रिज ब्रिटिश गवर्नर जेम्स रिवेट कार्नैक के नाम पर था,जो 1839 से 1841 तक बंबई प्रांत के गवर्नर रहे थे। उनका इतिहास भारत विरोधी रहा है। फडणवीस ने बताया कि कार्नैक ने अपने कार्यकाल में सतारा के प्रताप सिंह राजे और नागपुर के उद्धव राजे जैसे मराठा राजाओं के खिलाफ षड्यंत्र रचकर उन्हें अपदस्थ करने का काम किया। इतना ही नहीं,उनके कार्यकाल में कई देशभक्तों की हत्या भी हुई थी।

मुख्यमंत्री ने कहा, “ऐसे अत्याचारी गवर्नर के नाम को अब हमें ढोने की जरूरत नहीं है। हमें ऐसे प्रतीकों को मिटाकर अपने आत्मसम्मान की प्रतीक चीजों को स्थान देना है।” इस विचार के साथ ही यह पुल अब ‘सिंदूर ब्रिज’ के नाम से जाना जाएगा।

सिंदूर ब्रिज का नामकरण एक आधुनिक भारतीय सैन्य अभियान,ऑपरेशन सिंदूर,से प्रेरित है। फडणवीस ने बताया कि यह नाम उन वीर सैनिकों को समर्पित है,जिन्होंने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को खत्म कर भारत की सामरिक शक्ति का लोहा मनवाया। ऑपरेशन सिंदूर भारतवासियों के आत्मगौरव का प्रतीक बन गया है। मुख्यमंत्री ने कहा, “हमारे देश के नागरिकों के मन में ऑपरेशन सिंदूर एक गर्व का भाव उत्पन्न करता है। यह हमारे देश की आत्मनिर्भर सैन्य नीति और आक्रामक कूटनीति का प्रतीक है।”

सीएम फडणवीस ने इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस दृष्टिकोण का भी उल्लेख किया,जिसमें वह कहते हैं कि “स्वतंत्रता के अमृतकाल में भारत को गुलामी की मानसिकता और प्रतीकों से मुक्त करना चाहिए।” उन्होंने कहा, “पीएम मोदी ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि हमें अपने गौरवशाली अतीत और आत्म-चिन्हों को तरजीह देनी चाहिए। सिंदूर ब्रिज इसी कड़ी का एक हिस्सा है।”

इस संदर्भ में यह निर्णय भारत की नई सोच को दर्शाता है,एक ऐसी सोच जो अपनी जड़ों से जुड़कर आधुनिकता की ओर बढ़ने को प्राथमिकता देती है।

ब्रिज के निर्माण की तकनीकी विशेषताओं की बात करें तो यह ब्रिज दक्षिण मुंबई के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों को जोड़ता है। यह इलाका यातायात की दृष्टि से अत्यंत व्यस्त और महत्वपूर्ण है। पुराने कार्नैक ब्रिज के टूटने के बाद लंबे समय से यहाँ यातायात बाधित था। अब नए ब्रिज के चालू होने से मुंबईवासियों को राहत मिलेगी और आवाजाही में आसानी होगी।

ब्रिज को आधुनिक तकनीक और इंजीनियरिंग से तैयार किया गया है,जिससे यह न केवल मजबूत और सुरक्षित है,बल्कि आने वाले कई वर्षों तक यातायात के दबाव को झेलने में सक्षम होगा।

सिंदूर ब्रिज का उद्घाटन केवल एक बुनियादी ढाँचे का कार्य नहीं है,बल्कि यह स्वतंत्र भारत की मानसिकता में आए बदलाव का प्रतीक है। यह निर्णय बताता है कि अब देश केवल भौतिक विकास ही नहीं कर रहा,बल्कि अपने इतिहास,संस्कृति और राष्ट्रीय पहचान की पुनर्खोज में भी आगे बढ़ रहा है।

ब्रिटिश उपनिवेशकाल की जो भी निशानियाँ आज तक भारत की सड़कों,इमारतों या संस्थानों में मौजूद रही हैं,उन्हें धीरे-धीरे हटाकर उनकी जगह भारतीय गौरव और वीरता के प्रतीक स्थापित किए जा रहे हैं। सिंदूर ब्रिज इस दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

इस पुल के उद्घाटन के साथ ही महाराष्ट्र सरकार ने यह संदेश दे दिया है कि अब भारत अपने इतिहास को खुद लिखेगा,गुलामी की नहीं,बल्कि गौरवशाली परंपराओं की रोशनी में।