न्यूयॉर्क,20 मार्च (युआईटीवी)- अमेरिका में एक भारतीय शोधकर्ता बदर खान सूरी को आव्रजन अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया है और उनके वकील के अनुसार, सूरी को निर्वासित किया जा सकता है। यह घटना हाल ही में सामने आई है,जब सूरी को वर्जिनिया राज्य के वाशिंगटन उपनगर में उनके घर के बाहर ‘‘नकाबपोश’’ अधिकारियों द्वारा हिरासत में लिया गया। अधिकारियों ने उन्हें सूचित किया कि उनका छात्र वीजा रद्द कर दिया गया है। यह घटना अमेरिकी प्रशासन द्वारा फिलिस्तीन समर्थक गतिविधियों के कारण भारतीय शोधकर्ताओं के खिलाफ उठाए गए कठोर कदमों का हिस्सा प्रतीत होती है।
बदर खान सूरी, जो दिल्ली के जामिया मिलिया विश्वविद्यालय से पीएचडी कर चुके हैं, जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में पोस्ट-डॉक्टरल फेलो के रूप में कार्यरत थे। वे वहाँ दक्षिण एशिया में बहुसंख्यकवाद और अल्पसंख्यक अधिकारों पर एक पाठ्यक्रम पढ़ा रहे थे। सूरी की शादी एक अमेरिकी नागरिक,मफाज अहमद यूसुफ से हुई है, जो एक महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवार से संबंधित हैं। पोलिटिको के हवाले से, अहमद यूसुफ को ‘‘हमास नेतृत्व का वरिष्ठ राजनीतिक सलाहकार’’ बताया गया है। इस संदर्भ में सूरी के खिलाफ उठाए गए कदमों को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।
सूरी के वकील हसन अहमद ने पोलिटिको को बताया कि सूरी के खिलाफ वर्जीनिया में एक संघीय अदालत में बंदी प्रत्यक्षीकरण अपील दायर की गई है। इस मामले में यह भी दावा किया जा रहा है कि सूरी को उनके निजी और वैवाहिक संबंधों के कारण निशाना बनाया गया है। सूरी एक ऐसे भारतीय नागरिक हैं,जिन्हें कथित रूप से फिलिस्तीन समर्थक कारणों में शामिल होने के चलते निर्वासित किया जा सकता है। इससे पहले,इस महीने की शुरुआत में,न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में पीएचडी की छात्रा रंजनी श्रीनिवासन को भी ऐसी ही परिस्थितियों में आरोपित किया गया था और उसे कनाडा भागना पड़ा था। उसे ‘‘हमास का समर्थन करने वाली गतिविधियों में शामिल होने’’ का आरोप लगाया गया था।
वर्तमान में, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का प्रशासन इस मामले पर सार्वजनिक रूप से कोई स्पष्टता नहीं दे सका है। पोलिटिको के अनुसार,अहमद ने अदालत में अपनी याचिका में यह तर्क दिया है कि सूरी को उनकी पत्नी की फिलिस्तीनी विरासत के कारण निशाना बनाया जा रहा है और यह भी संदेह व्यक्त किया गया है कि वे दोनों इजरायल के विरोधी हो सकते हैं। उनके वकील का कहना है कि सूरी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने कभी विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया है या नहीं।
सूरी के कार्य और शैक्षिक योगदान की बात करें तो,जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय के एक कैथोलिक संस्थान ने यह बताया कि वे विदेश सेवा स्कूल में मुस्लिम-ईसाई समझ को बढ़ावा देने के लिए अलवालीद बिन तलाल केंद्र में कार्यरत थे। यहाँ वे एक ऐसी परियोजना पर काम कर रहे थे,जो धार्मिक रूप से विविध समाजों के बीच सहयोग में बाधा डालने वाले संभावित कारणों और उन बाधाओं को दूर करने के उपायों पर विचार करती है। सूरी ने भारत,पाकिस्तान और ईरान के बलूचिस्तान जैसे संघर्ष क्षेत्रों में भी व्यापक यात्राएँ की हैं और वहाँ के सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं का अध्ययन किया है।
इस समय,सूरी उन नवीनतम अकादमिक व्यक्तियों में से एक हैं,जिन्हें ट्रंप प्रशासन द्वारा हमास समर्थक माने जाने वाले परिसरों में फिलिस्तीन समर्थक गतिविधियों या भावनाओं पर कार्रवाई में घसीटा गया है। विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इस कार्रवाई का बचाव करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि ‘‘वीजा पर संयुक्त राज्य अमेरिका आना एक विशेषाधिकार है,न कि अधिकार। यदि आप आतंकवादियों का समर्थन करने के लिए यहाँ हैं,तो ट्रंप प्रशासन आपके वीजा को अस्वीकार करने या रद्द करने के लिए दृढ़ है।’’ यह बयान यह दर्शाता है कि अमेरिकी प्रशासन ने आतंकवादी संगठनों के समर्थन से जुड़ी गतिविधियों को लेकर सख्त रुख अपनाया है।
इस मामले में कुछ अन्य घटनाएँ भी सामने आई हैं,जो इस प्रकार के कदमों को और स्पष्ट करती हैं। कोलंबिया विश्वविद्यालय के हाल ही में स्नातक महमूद खलील को इस महीने गिरफ्तार किया गया था और वह ग्रीन कार्ड के बावजूद लुइसियाना की हिरासत सुविधा में हैं। एक न्यायाधीश ने उनकी अपील के परिणाम का इंतजार करते हुए उनके निर्वासन पर रोक लगा दी है। इसी प्रकार,कोलंबिया विश्वविद्यालय की एक और छात्रा,लेका कोर्डयिा,जो फिलिस्तीनी मूल की हैं,को उनके छात्र वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद अमेरिका में अवैध रूप से रहने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। ब्राउन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और डॉक्टर राशा अलावीह को भी अमेरिका में दोबारा प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई,क्योंकि वह लेबनान गई थीं और कथित तौर पर हिजबुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह के अंतिम संस्कार में शामिल हुई थीं।
इन घटनाओं ने अमेरिका में फिलिस्तीन समर्थक और इस्लामिक गतिविधियों के खिलाफ बढ़ती कार्रवाई को उजागर किया है। अमेरिकी प्रशासन इन गतिविधियों को आतंकवादी संगठन के समर्थन से जोड़कर उन पर कड़ी निगरानी रखता है। ऐसे मामलों में,शोधकर्ताओं और छात्रों को अपनी कार्यशैली और विचारधारा के चलते गंभीर कानूनी दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है,खासकर यदि उनका संबंध किसी विवादास्पद राजनीतिक या धार्मिक समूह से जुड़ा हो।
बदर खान सूरी के मामले ने अमेरिकी आव्रजन और सुरक्षा नीतियों के तहत शोधकर्ताओं और शैक्षिक संस्थानों पर बढ़ती निगरानी और दबाव को उजागर किया है। यह घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि अमेरिका में फिलिस्तीन समर्थक गतिविधियों के प्रति प्रशासन की सख्त नीति और इससे जुड़ी कानूनी कार्रवाइयाँ बढ़ रही हैं और ऐसे मामलों में विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं के लिए कानूनी संकट उत्पन्न हो सकता है।