नई दिल्ली,11 जुलाई (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई वाले प्रशासन ने विदेश विभाग में बड़े पैमाने पर छंटनी की योजना तैयार कर ली है। इस फैसले को लेकर गुरुवार को अमेरिकी विदेश विभाग के कर्मचारियों को औपचारिक रूप से सूचित किया गया कि छंटनी की प्रक्रिया बहुत जल्द शुरू कर दी जाएगी। इस कदम का मकसद विभाग में नौकरशाही का बोझ कम करना और इसे अधिक कार्यकुशल बनाना बताया गया है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार,इस छंटनी को लेकर डिप्टी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर मैनेजमेंट एंड रिसोर्सेज,माइकल जे. रीगस की ओर से एक संदेश गुरुवार को भेजा गया,जिसमें कहा गया कि अमेरिकी कर्मचारियों को जल्द ही छंटनी की सूचना मिलनी शुरू हो जाएगी। विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने यह भी संकेत दिए कि शुक्रवार सुबह से ही कर्मचारियों को नोटिस दिए जाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
यह फैसला ऐसे समय आया है,जब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक आदेश के तहत निचली अदालत के उस फैसले को पलट दिया था,जिसमें ट्रंप प्रशासन को संघीय एजेंसियों में बड़े पैमाने पर छंटनी करने से रोका गया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के महज दो दिन बाद ही यह छंटनी प्रक्रिया शुरू करने की योजना सामने आई है।
इस छंटनी की नींव मई महीने में रखी गई थी,जब अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने अपने विभाग के लिए पुनर्गठन योजना की घोषणा की थी। उन्होंने विदेश विभाग को “ब्लोटेड” यानी ज़रूरत से ज़्यादा कर्मचारी वाला और “नौकरशाही से जकड़ा हुआ” बताते हुए कहा था कि इस तरह की कटौती से विभाग को अमेरिकी मूल्यों के अनुरूप बनाने में मदद मिलेगी और इससे राजनीतिक पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकेगा।
रिपोर्ट के अनुसार,इस छंटनी से विदेश विभाग के करीब 15% कर्मचारी प्रभावित हो सकते हैं। विदेश विभाग में इस समय लगभग 18,000 कर्मचारी कार्यरत हैं और प्रस्तावित योजना के अनुसार 2,700 से अधिक पदों को समाप्त किया जा सकता है। इनमें से सबसे ज्यादा प्रभाव विदेशों में तैनात 700 प्रशिक्षित राजनयिकों पर पड़ने की आशंका है,जबकि वाशिंगटन स्थित सिविल सर्विस कर्मचारियों की भी भारी संख्या में छंटनी की जाएगी।
हालाँकि,रुबियो की योजना में कहा गया है कि छंटनी का सीधा असर अंतर्राष्ट्रीय दूतावासों या विदेश में चल रहे अभियानों पर नहीं पड़ेगा,लेकिन कर्मचारियों और विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रक्रिया से विदेश नीति के प्रभाव में गिरावट आ सकती है।
इस फैसले की अमेरिकी कांग्रेस,डेमोक्रेटिक पार्टी और वरिष्ठ राजनयिकों की ओर से कड़ी आलोचना की जा रही है। उनका मानना है कि यह छंटनी न केवल अमेरिका की विदेश नीति को कमजोर करेगी,बल्कि वैश्विक मंच पर अमेरिका की नेतृत्वकारी भूमिका को भी नुकसान पहुँचाएगी।
कांग्रेस के कई डेमोक्रेटिक सदस्यों ने विदेश मंत्री रुबियो को एक खुले पत्र के माध्यम से चेतावनी दी है,जिसमें उन्होंने कहा, “मौजूदा समय में जब वैश्विक तनाव बढ़ रहा है, अमेरिका को अपने राजनयिकों की सबसे अधिक आवश्यकता है,ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति और स्थिरता कायम की जा सके।” पत्र में आगे कहा गया कि यह योजना अमेरिका को वैश्विक नेतृत्व के लिए जरूरी संसाधनों से वंचित कर सकती है।
विशेषज्ञों और आलोचकों का कहना है कि यह योजना उन विभागों को निशाना बना रही है,जो मानवाधिकार,लोकतंत्र,शरणार्थी नीति और युद्ध अपराधों से संबंधित कार्यों में शामिल हैं। ऐसे विभागों की भूमिका दुनिया भर में अमेरिका की नैतिक स्थिति और प्रभाव को दर्शाती रही है। इन विभागों में छंटनी का सीधा अर्थ यह हो सकता है कि अमेरिका अब इन मुद्दों पर पूर्व की भांति आक्रामक रुख नहीं अपनाएगा।
हालाँकि,विदेश विभाग की ओर से यह स्पष्ट किया गया है कि यह छंटनी किसी व्यक्ति विशेष को लक्षित नहीं कर रही है,बल्कि यह पदों के पुनर्गठन और समाप्ति पर आधारित है। उदाहरण के तौर पर,तीन अलग-अलग आर्थिक प्रतिबंध कार्यालयों को मिलाकर एक किया जा रहा है,जिससे संसाधनों का बेहतर प्रबंधन हो सके।
ट्रंप प्रशासन के इस कदम को कई लोग राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रेरित मान रहे हैं। उनका कहना है कि ट्रंप की विदेश नीति का फोकस पहले से ही “अमेरिका फर्स्ट” जैसे नारों पर आधारित रहा है,जिसमें अमेरिका की वैश्विक भूमिका को सीमित करने की प्रवृत्ति दिखती है। अब विदेश विभाग की छंटनी उसी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है,जिसका उद्देश्य विदेशी मिशनों की जगह घरेलू प्राथमिकताओं को बढ़ावा देना हो सकता है।
अमेरिकी विदेश विभाग में प्रस्तावित यह भारी छंटनी न केवल राजनीतिक विवादों को जन्म दे रही है,बल्कि यह अमेरिका की वैश्विक भूमिका,विदेश नीति के प्रभाव और कूटनीतिक मूल्यों पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रही है। जहाँ एक ओर प्रशासन इसे नौकरशाही कम करने और दक्षता बढ़ाने की दिशा में एक कदम बता रहा है,वहीं दूसरी ओर आलोचक इसे अमेरिका की वैश्विक साख और मानवीय मूल्यों से समझौता मान रहे हैं।