नई दिल्ली, 23 मई (युआईटीवी)- हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच एक अहम घटनाक्रम सामने आया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ ) ने पाकिस्तान को करीब 8,000 करोड़ रुपये (1 अरब डॉलर) की आर्थिक मदद दी है। यह मदद उस समय दी गई है,जब भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया था। भारत ने इस आर्थिक मदद पर गंभीर आपत्ति जताई है,इसे आतंकवाद को “अप्रत्यक्ष आर्थिक सहायता” करार दिया है।
इस रिपोर्ट में हम इस पूरे घटनाक्रम को भारत के दृष्टिकोण,आईएमएफ की नीति, पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति और कूटनीतिक असर के आधार पर समझते हैं।
भारत ने साफ शब्दों में IMF से कहा है कि, “पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को दी गई सहायता वास्तव में उन आतंकवादी गतिविधियों को सहयोग कर रही है जो भारत के खिलाफ लगातार चलाई जा रही हैं।”भारत का तर्क है कि, पाकिस्तान ने बार-बार आतंकवाद को राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल किया है।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने जिन ठिकानों को निशाना बनाया,वे आईएसआई समर्थित आतंकवादी कैंप थे। ऐसे में पाकिस्तान को दिया गया आर्थिक समर्थन,सीधे तौर पर आतंक को संसाधन उपलब्ध कराने जैसा है।भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस मुद्दे को सीधे तौर पर उठाया और कहा, “आर्थिक सहायता केवल विकास में नहीं जाती,पाकिस्तान जैसे देश में यह आतंक के पोषण का माध्यम बनती है।”
आईएमएफ की संचार विभाग की निदेशक जूली कोजैक ने भारत की आपत्ति पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, पाकिस्तान ने सभी पूर्व निर्धारित आर्थिक और संरचनात्मक सुधारों को पूरा किया है।आईएमएफ की समीक्षा प्रक्रिया पूरी तरह तकनीकी और वस्तुनिष्ठ होती है,जिसमें राजनीतिक या सैन्य घटनाक्रमों का प्रभाव नहीं डाला जाता।
उनके अनुसार, “हमने देखा कि पाकिस्तान ने अपने ‘एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (ईएफएफ)’ कार्यक्रम की सभी शर्तें पूरी की हैं। इसलिए अगली किस्त स्वीकृत की गई।”
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि भारत-पाक के बीच हाल की हिंसक घटनाएँ चिंताजनक हैं, लेकिन आईएमएफ की नीति राजनीतिक तटस्थता पर आधारित है।
2024 में आईएमएफ और पाकिस्तान के बीच 7 अरब डॉलर के कार्यक्रम पर सहमति बनी थी। अब तक दो हिस्सों में 2.1 अरब डॉलर दिए जा चुके हैं। 9 मई 2025 को आईएमएफ बोर्ड ने अगली किस्त (1 अरब डॉलर) को मंजूरी दी। यह मंजूरी 25 मार्च 2025 को हुई समीक्षा पर आधारित थी,जिसमें आईएमएफ ने पाया कि पाकिस्तान ने कार्यक्रम की सभी शर्तें पूरी की हैं। आईएमएफ की प्रक्रिया के अनुसार,हर देश की प्रगति की नियमित समीक्षा होती है और आर्थिक लक्ष्यों के आधार पर किस्तें जारी की जाती हैं।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लंबे समय से राजकोषीय घाटा,बढ़ता विदेशी कर्ज और अस्थिर मुद्रास्फीति जैसी समस्याओं से जूझ रही है।
आईएमएफ की मदद पाकिस्तान के लिए आवश्यक विदेशी मुद्रा भंडार को बनाए रखने,आयातों की फंडिंग और बुनियादी आर्थिक सुधारों के लिए जरूरी थी।
हालाँकि,भारत का मानना है कि यह सहायता वास्तव में रक्षा और आतंकी नेटवर्क को पोषण देने में उपयोग हो सकती है। भारत की आपत्ति से तीन मुख्य संदेश निकलते हैं:
1) भारत अब वैश्विक मंचों पर आतंक के वित्तीय स्रोतों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाने को तैयार है।
2) आईएमएफ और अन्य संस्थानों को यह समझने की ज़रूरत है कि सहायता केवल आर्थिक नहीं,बल्कि कूटनीतिक प्रभाव भी रखती है।
3) पाकिस्तान को मिली यह मदद भारत-पाक संबंधों को और जटिल बना सकती है, खासकर तब जब भारत सर्जिकल स्ट्राइक्स और सैन्य जवाबी कार्रवाइयों के माध्यम से सख्ती से निपट रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम में एक ओर आईएमएफ की तकनीकी समीक्षा प्रणाली है,जिसमें आर्थिक लक्ष्यों को देखकर मदद दी जाती है। वहीं दूसरी ओर भारत की यथार्थवादी कूटनीति है,जो बताती है कि पाकिस्तान को दी गई हर मदद आतंकवाद की लौ को जलाए रखती है।
भारत का यह स्पष्ट रुख दर्शाता है कि आने वाले समय में वह अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आर्थिक सहायता बनाम आतंक सहयोग के मुद्दे को और तेज़ी से उठाएगा। वहीं आईएमएफ जैसी संस्थाओं के लिए यह एक परेशानी का सबब बन सकता है,जहाँ उन्हें आर्थिक सुधार और राजनीतिक नीयत के बीच संतुलन बनाना होगा।