वाशिंगटन,9 जुलाई (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से रूस-यूक्रेन संघर्ष पर अपना रुख स्पष्ट किया है। व्हाइट हाउस में आयोजित एक कैबिनेट बैठक के दौरान उन्होंने ऐलान किया कि अमेरिका यूक्रेन को अतिरिक्त रक्षात्मक हथियारों की आपूर्ति करेगा। साथ ही ट्रंप ने संकेत दिया कि वे रूस पर नए और व्यापक प्रतिबंधों के लिए द्विदलीय सीनेट बिल का समर्थन करने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।
यह बयान ऐसे समय आया है,जब रूस ने यूक्रेन के नए क्षेत्रों पर कब्जे का दावा किया है और यूक्रेनी शहरों पर हमलों की तीव्रता बढ़ा दी है। ट्रंप ने कहा, “हम यूक्रेन को कुछ रक्षात्मक हथियार भेज रहे हैं और मैंने इसकी मंजूरी दे दी है। यूक्रेन को निशाना बनाया जा रहा है और हम इसका समर्थन नहीं कर सकते।”
ट्रंप ने खुलकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रति नाराजगी जताई और कहा कि वह पुतिन से संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने रूस-यूक्रेन संघर्ष में हो रहे जानमाल के नुकसान को लेकर चिंता जताई। ट्रंप ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि,“मैं पुतिन से खुश नहीं हूँ। हजारों की संख्या में यूक्रेनी और रूसी सैनिक मारे जा रहे हैं।”
उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले पुतिन से उनकी फोन पर एक लंबी बातचीत हुई थी,जिसमें दोनों नेताओं ने युद्ध के समाधान के रास्तों पर चर्चा की,लेकिन ट्रंप ने यह भी स्वीकार किया कि इस बातचीत के बावजूद कोई खास प्रगति नहीं हो सकी है।
ट्रंप ने अमेरिकी सीनेट में पेश किए गए एक द्विपक्षीय प्रस्ताव पर समर्थन देने का संकेत दिया है,जिसमें रूस पर व्यापक प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई है। यह बिल रूस की अर्थव्यवस्था,ऊर्जा क्षेत्र और उच्च अधिकारियों पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की बात करता है।
ट्रंप ने कहा, “हम यह भी देख रहे हैं कि रूस के खिलाफ क्या अतिरिक्त कार्रवाई की जा सकती है। हम सिर्फ हथियार भेजने तक सीमित नहीं रहेंगे।”
हालाँकि,यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कुछ समय पहले अमेरिका ने कीव को भेजे जाने वाले कुछ हथियारों की शिपमेंट को अचानक रोक दिया था,जिससे यूक्रेनी सरकार में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई थी। यूक्रेन ने इस फैसले को लेकर तत्काल स्पष्टीकरण माँगा था। अब ट्रंप के नए बयान से संकेत मिलता है कि अमेरिका की नीति में फिर से बदलाव हुआ है और यूक्रेन को एक बार फिर सैन्य समर्थन मिलने जा रहा है।
ट्रंप और पुतिन के बीच हुई फोन वार्ता करीब एक घंटे चली। यह वार्ता यूक्रेन संघर्ष के समाधान की संभावनाओं को तलाशने के लिए हुई थी। ट्रंप ने बातचीत में युद्ध को जल्द खत्म करने की आवश्यकता पर बल दिया,जबकि पुतिन ने रूस की रणनीतिक प्रतिबद्धताओं को दोहराया।
क्रेमलिन कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि “पुतिन ने ट्रंप को बताया कि रूस अब भी राजनीतिक और कूटनीतिक समाधान की दिशा में प्रयासरत है।” उन्होंने इस्तांबुल में रूस और यूक्रेन के बीच हुई दूसरी सीधी वार्ता का भी ज़िक्र किया,जिसमें कुछ मानवीय समझौतों पर सहमति बनी थी।
पुतिन ने यह भी स्पष्ट किया कि रूस पीछे हटने के मूड में नहीं है। उन्होंने कहा कि “रूस अपने मूल लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है,खासकर उन कारणों को समाप्त करने के लिए जिनकी वजह से यह टकराव पैदा हुआ।”
रूस और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्षों की इस बातचीत में सिर्फ यूक्रेन ही नहीं,बल्कि ईरान और पूरे मध्य पूर्व की स्थिति पर भी विस्तार से चर्चा की गई। यह क्षेत्र हाल के महीनों में कई भू-राजनीतिक संकटों का केंद्र रहा है,जिसमें इजराइल-गाजा संघर्ष, हिजबुल्ला की गतिविधियाँ और ईरान की परमाणु नीति जैसे मुद्दे प्रमुख हैं।
ट्रंप का यह रुख आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। एक ओर वह यूक्रेन का समर्थन कर रहे हैं,दूसरी ओर वे रूस के खिलाफ अपनी सख्त नीति दिखाकर घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी निर्णायक नेतृत्व क्षमता का संकेत दे रहे हैं।
ट्रंप पहले भी कई बार पुतिन के साथ अपनी ‘दोस्ती’ और ‘सीधे संवाद’ की बात करते रहे हैं,लेकिन हालिया घटनाक्रम में उनके बयान इस दिशा में एक बदलाव का संकेत दे रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव अमेरिका की आंतरिक राजनीति, सैन्य उद्योग के दबाव और अंतरराष्ट्रीय दबावों का मिश्रित परिणाम हो सकता है।
राष्ट्रपति ट्रंप के हालिया बयान यह दर्शाते हैं कि अमेरिका यूक्रेन संकट को लेकर फिर से सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है। हालाँकि,रूस की स्थिति और पुतिन की जिद से युद्धविराम की संभावनाएँ अभी भी धुँधली नजर आ रही हैं।
जहाँ एक ओर ट्रंप यूक्रेन को रक्षात्मक हथियार भेजने के लिए प्रतिबद्ध हैं,वहीं दूसरी ओर वे रूस पर कड़े प्रतिबंधों की बात कर रहे हैं। ऐसे में आने वाले सप्ताहों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या अमेरिका की यह नई पहल युद्ध को रोकने में मदद कर पाएगी या फिर यह संघर्ष और अधिक गहराएगा।
इस बीच, यूक्रेन के लोग और सैनिक लगातार संघर्ष झेल रहे हैं और वैश्विक समुदाय की निगाहें वॉशिंगटन और मास्को की अगली रणनीतिक चालों पर टिकी हुई हैं।