अंतर्राष्ट्रीय वेसाक दिवस (तस्वीर क्रेडिट@VishalVSharma7)

संयुक्त राष्ट्र में “अंतर्राष्ट्रीय वेसाक दिवस”: भारत ने की मेजबानी,बुद्ध की शिक्षाओं पर भारत की पहल और वैश्विक संदेश

न्यूयॉर्क,16 मई (युआईटीवी)- संयुक्त राष्ट्र, न्यूयॉर्क स्थित भारत के स्थायी मिशन ने शुक्रवार को एक विशेष आयोजन के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय वेसाक दिवस को एक नई वैश्विक चेतना के साथ मनाया। इस अवसर पर “गौतम बुद्ध की शिक्षाएँ – आंतरिक और वैश्विक शांति का मार्ग” विषय पर एक उच्च-स्तरीय पैनल चर्चा आयोजित की गई, जिसमें विश्व के कई बौद्ध-बहुल देशों के राजनयिकों, विद्वानों और आध्यात्मिक नेताओं ने भाग लिया। इस चर्चा का उद्देश्य बुद्ध के जीवन-दर्शन की वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता को समझना और साझा करना था।

कार्यक्रम का उद्घाटन भारत के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पार्वथानेनी हरीश ने किया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि “बुद्ध की करुणा,अहिंसा और बुद्धिमत्ता की शिक्षाएँ न केवल आंतरिक शांति की ओर मार्गदर्शन करती हैं,बल्कि आज के संकटग्रस्त और विभाजित विश्व में भी वैश्विक सौहार्द एवं शांति की राह दिखाती हैं।”

राजदूत हरीश ने यह भी बताया कि भारत न केवल बुद्ध की जन्मभूमि है,बल्कि उन मूल्यों और आदर्शों को आज भी जीवंत बनाए हुए है,जो उन्होंने दो हजार पाँच सौ वर्ष पूर्व प्रस्तुत किए थे। भारत की विदेश नीति और वैश्विक दृष्टिकोण में भी यह स्पष्ट परिलक्षित होता है—‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना,जो बुद्ध की सार्वभौमिकता को दर्शाती है।

इस आयोजन में वियतनाम,लाओ पीडीआर,थाईलैंड,भूटान,मंगोलिया,कंबोडिया, नेपाल,श्रीलंका और रूस सहित अनेक देशों के स्थायी प्रतिनिधियों और वरिष्ठ राजनयिकों ने भाग लिया। इन देशों की उपस्थिति ने यह स्पष्ट किया कि बुद्ध के आदर्श केवल एक धर्म या राष्ट्र तक सीमित नहीं हैं,बल्कि वे वैश्विक मानवता के साझा सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इस बहुपक्षीय भागीदारी ने बौद्ध मूल्यों की वैश्विक एकता और साझा विरासत को उजागर किया। यह एक ऐसा अवसर बना,जब विविध संस्कृतियों और राष्ट्रीयताओं के बीच सेतु के रूप में बुद्ध की शिक्षाएँ सामने आईं।

इस पैनल चर्चा में नालंदा विश्वविद्यालय की भी प्रभावशाली भागीदारी रही। विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रो.अभय कुमार सिंह ने बुद्ध की शिक्षाओं को भारत की ऐतिहासिक विरासत से जोड़ते हुए कहा कि बौद्ध धर्म केवल धार्मिक दर्शन नहीं,बल्कि एक जीवन शैली है,जो शांति,करुणा और समता के सिद्धांतों पर आधारित है।

एक प्रमुख बौद्ध विद्वान प्रो. संतोष कुमार राउत ने बताया कि कैसे बुद्ध का दर्शन 21वीं सदी की सामाजिक,आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि “बौद्ध विचारधारा में अंतर्निहित मध्य मार्ग,आत्मचिंतन और अहिंसा जैसे सिद्धांत आज की उपभोक्तावादी,हिंसक और तनावपूर्ण दुनिया को एक सकारात्मक दिशा दे सकते हैं।”

वेसाक दिवस बौद्ध अनुयायियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण पर्व है,जो गौतम बुद्ध के जन्म,ज्ञान प्राप्ति (बोधि) और महापरिनिर्वाण की स्मृति में मनाया जाता है। ये तीनों घटनाएँ मई माह की पूर्णिमा को हुई थीं और इन्हें बौद्ध परंपरा में अत्यंत पवित्र माना जाता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1999 में प्रस्ताव 54/115 के माध्यम से वेसाक को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मान्यता दी थी। इसका उद्देश्य बुद्ध धर्म के वैश्विक योगदान को सम्मान देना और उसे वैश्विक शांति,सह-अस्तित्व और नैतिकता के संदर्भ में समझना था।

भारत के स्थायी मिशन ने इस पैनल चर्चा की जानकारी अपने आधिकारिक एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल पर साझा करते हुए लिखा, “भारत-यूएन न्यूयॉर्क ने अंतर्राष्ट्रीय वेसाक दिवस के उपलक्ष्य में ‘गौतम बुद्ध की शिक्षाएँ – आंतरिक और वैश्विक शांति का मार्ग’ विषय पर पैनल चर्चा का आयोजन किया।”

यह संदेश न केवल औपचारिक था,बल्कि इस आयोजन की विश्वव्यापी पहुँच और प्रभाव को भी रेखांकित करता है।

आज की दुनिया विभिन्न संकटों जैसे- युद्ध,आतंकवाद,जलवायु परिवर्तन,मानसिक स्वास्थ्य संकट और सामाजिक असमानता से जूझ रही है। इन परिस्थितियों में बुद्ध की शिक्षाएँ अधिक प्रासंगिक हो जाती हैं। उनके द्वारा दिखाया गया ‘आठ गुना मार्ग’ और ‘चार आर्य सत्य’ जीवन की जटिलताओं का उत्तर आधुनिक समाधान हैं।

बुद्ध का यह मार्ग,जिसमें सही विचार,सही आचरण,सही प्रयास,सही ध्यान आदि शामिल हैं आज की पीढ़ी को आत्म-अवलोकन,संयम और सामाजिक उत्तरदायित्व की दिशा में ले जाता है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत की यह पहल एक सांस्कृतिक कूटनीति का सशक्त उदाहरण है, जिसने बुद्ध की शिक्षाओं को वैश्विक मंच पर प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। वेसाक दिवस के माध्यम से यह संदेश स्पष्ट रूप से उभरा कि गौतम बुद्ध की शिक्षाएँ केवल अतीत का हिस्सा नहीं हैं,बल्कि आज और भविष्य की मानवता के लिए एक प्रकाशस्तंभ हैं।

यह आयोजन हमें याद दिलाता है कि 2,500 वर्ष पहले उठाए गए शांतिपूर्ण कदमों की गूँज आज भी अंतरात्मा और समाज में सुनाई देती है और यही गूँज दुनिया को एक बेहतर,करुणामय और संतुलित भविष्य की ओर ले जा सकती है।