वीवीएमसी घोटाले में ईडी की बड़ी कार्रवाई

ईडी ने वीवीएमसी घोटाले में 12.71 करोड़ की संपत्ति फ्रीज की,26 लाख नकद जब्त किए,भ्रष्टाचार का बड़ा नेटवर्क बेनकाब

मुंबई,4 जुलाई (युआईटीवी)- प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने वसई-विरार नगर निगम (वीवीएमसी) घोटाले से जुड़े धनशोधन मामले में एक बड़ी कार्रवाई करते हुए मुंबई के विभिन्न हिस्सों में 16 स्थानों पर छापेमारी की। धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के अंतर्गत यह कार्रवाई की गई। ईडी ने कार्रवाई के दौरान करीब 12.71 करोड़ रुपये की बैंक डिपॉजिट,म्यूचुअल फंड और अन्य वित्तीय संपत्तियों को फ्रीज कर दिया। साथ ही, 26 लाख रुपये की नकदी और बड़ी मात्रा में आपत्तिजनक दस्तावेज एवं डिजिटल डिवाइस भी जब्त की गई हैं।

ईडी की यह कार्रवाई जयेश मेहता और अन्य बिल्डरों के खिलाफ की गई,जो वीवीएमसी क्षेत्र में अवैध निर्माण और ज़मीन घोटाले में शामिल थे। यह मामला 2009 से शुरू हुआ,जब वसई-विरार नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आने वाली सरकारी और निजी जमीनों पर 41 अवैध इमारतों का निर्माण किया गया। हैरानी की बात यह है कि इन इमारतों का निर्माण शहर की विकास योजना में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और डंपिंग ग्राउंड के लिए आरक्षित भूमि पर किया गया था।

ईडी की प्रारंभिक जाँच में खुलासा हुआ कि अवैध इमारतों के निर्माण में बिल्डर, आर्किटेक्ट,सीए,लाइजनिंग एजेंट और वीवीएमसी अधिकारी संगठित नेटवर्क बनाकर शामिल थे। इन लोगों ने मिलकर फर्जी दस्तावेज,नकली मंजूरी और भ्रमित करने वाली योजनाओं के सहारे लोगों को करोड़ों रुपये में फ्लैट बेच डाले। फ्लैट खरीदारों को यह भरोसा दिलाया गया कि ये इमारतें वैध हैं,जबकि वास्तव में उन्हें कभी भी अधिकृत मंजूरी प्राप्त नहीं हुई थी।

इस घोटाले पर सख्ती तब आई जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने 8 जुलाई 2024 को 41 अवैध इमारतों को गिराने का आदेश दिया। इन आदेशों के खिलाफ जब फ्लैट मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की,तो सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट का आदेश बरकरार रखा। इसके बाद वीवीएमसी प्रशासन ने 20 फरवरी 2025 तक सभी 41 इमारतों को ध्वस्त कर दिया।

यह कार्रवाई न सिर्फ शहरी नियोजन और भूमि उपयोग के कानूनों के उल्लंघन की गंभीरता को दर्शाती है,बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि कैसे प्रशासनिक भ्रष्टाचार और बिल्डर लॉबी के गठजोड़ से आम जनता को गुमराह कर करोड़ों की ठगी की जा सकती है।

ईडी की ताजा छापेमारी के दौरान जब्त डिजिटल डिवाइसेज़ और दस्तावेजों से यह स्पष्ट हुआ कि वीवीएमसी के अधिकारियों की इस घोटाले में सीधी संलिप्तता रही है। दस्तावेजों से यह संकेत मिला है कि भ्रष्ट अधिकारियों ने न केवल बिल्डरों को अवैध मंजूरी दिलाई,बल्कि घूसखोरी और मनी लॉन्ड्रिंग में भी उनकी भूमिका रही है। इससे पहले की गई छापेमारी में 8.68 करोड़ रुपये नकद,1.5 लाख डॉलर और 23.25 करोड़ रुपये के हीरे-जवाहरात और बुलियन भी जब्त किए जा चुके हैं।

ईडी ने अब तक 12.71 करोड़ की बैंक राशि,एफडी,म्यूचुअल फंड फ्रीज किए हैं, 26 लाख नकद,फर्जी दस्तावेज,मोबाइल, कंप्यूटर और डिजिटल उपकरण जब्त किए हैं।

पहले की रेड में 8.68 करोड़ नकद,1.5 लाख डॉलर और हीरे-जवाहरात जब्त की गई थी।

ईडी की टीम फिलहाल इस मामले की गहराई से जाँच कर रही है। अधिकारियों ने संकेत दिए हैं कि इस घोटाले में और भी बड़े नाम सामने आ सकते हैं,जिन पर आने वाले दिनों में कानूनी कार्रवाई होगी।

इस घोटाले ने उन सैकड़ों मध्यमवर्गीय परिवारों को सबसे बड़ा झटका दिया,जिन्होंने जीवन भर की पूँजी लगाकर इन फ्लैटों को खरीदा था। उन्हें यह उम्मीद थी कि उन्हें एक सुरक्षित और वैध मकान मिलेगा,लेकिन अब वे न घर के रहे और न पैसे के।

इस प्रकरण ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि शहरी विकास परियोजनाओं में प्रशासनिक निगरानी की कमी और भ्रष्टाचार कैसे आम नागरिकों को नुकसान पहुँचा सकता है।

वसई-विरार अवैध निर्माण घोटाला एक बार फिर यह साबित करता है कि जब प्रशासनिक तंत्र,बिल्डर लॉबी और वित्तीय पेशेवरों का गठजोड़ बनता है,तो उसमें सबसे अधिक नुकसान आम जनता का ही होता है। ईडी की कार्रवाई से उम्मीद जगी है कि इस तरह के संगठित घोटालों में शामिल लोगों को उनके अपराधों की सजा मिलेगी। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में इस मामले में और कौन-कौन से नाम सामने आते हैं और कानून उनके खिलाफ क्या रुख अपनाता है।