नई दिल्ली,4 मई (युआईटीवी)- फूड इमल्सीफायर डायबिटीज के खतरे को बढ़ाने का काम करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि आइसक्रीम, कुकीज, मेयोनेज,दही इत्यादि में स्वाद को बढ़ाने वाले जैंथम गम और ग्वार गम जैसे इमल्सीफायर डायबिटीज के खतरे को बढ़ा सकते हैं।
फूड एडिटिव एक रसायन होते हैं,जिसका इस्तेमाल खाद्य पदार्थों को ताज़ा रखने,उनके रंग,स्वाद या बनावट को बढ़ाने के लिए किया जाता है। लेकिन अब यही स्तन और प्रोस्टेट के कैंसर जैसे विभिन्न स्वास्थ्य मुद्दों के लिए जोखिम कारक के रूप में उभर रहे हैं।
14 साल लंबे फ्रांसीसी अध्ययन द लांसेट डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ,जिसके अनुसार टाइप 2 डायबिटीज के विकास के जोखिम को इमल्सीफायर बढ़ा सकते हैं।
अध्ययन के मुताबिक,इमल्सीफायर जो मधुमेह के खतरे को बढ़ा सकते हैं,उसमें कैरेजेनन (प्रति दिन 100 मिलीग्राम की वृद्धि पर 3 प्रतिशत जोखिम), ट्रिपोटेशियम फॉस्फेट (प्रति दिन 500 मिलीग्राम की वृद्धि पर 15 प्रतिशत जोखिम),सोडियम साइट्रेट (प्रति दिन 500 मिलीग्राम की वृद्धि पर 4 प्रतिशत बढ़ा हुआ जोखिम), फैटी एसिड के मोनो और डाइएसिटाइल टार्टरिक एसिड एस्टर (प्रति दिन 100 मिलीग्राम पर 4 प्रतिशत जोखिम), अरबी गम (प्रति दिन 1,000 मिलीग्राम पर 3 प्रतिशत जोखिम), ग्वार गम (500 मिलीग्राम की वृद्धि पर 11 प्रतिशत जोखिम) तथा ज़ैंथन गम (प्रति दिन 500 मिलीग्राम पर 8 प्रतिशत जोखिम) शामिल हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक,आंत के माइक्रोबायोटा में ये फूड एडिटिव बदलाव ला देते हैं,जिससे सूजन और डायबिटीज हो जाती है।
सर गंगा राम अस्पताल के मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ सलाहकार एम वली ने बताया कि अध्ययन से पता चलता है कि यदि लंबे समय तक इन इमल्सीफायरों का इस्तेमाल किया जाता है,तो इससे आंत के माइक्रोबायोटा में गड़बड़ी जैसे दुष्प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं। ऐसा होने पर इंसुलिन प्रतिरोधकता में बढ़ोतरी होती है।
सीके बिड़ला अस्पताल गुरुग्राम के आंतरिक चिकित्सा सलाहकार (कंसल्टेंट्स इंटरनल मेडिसिन) तुषार तायल ने बताया कि,आम तौर पर इमल्सीफायर्स को सुरक्षित माना जाता है और कुछ परीक्षण विषयों में कुछ इमल्सीफायर्स जैसे जैंथम गम को कोलेस्ट्रॉल,फास्टिंग और पोस्ट-मील रक्त शर्करा को कम करने के लिए पाया गया है।
उन्होंने बताया कि डायबिटीज और अन्य बीमारियों के साथ उनका संबंध आंत माइक्रोफ्लोरा में बदलाव के वजह से होता है। पैकेज्ड खाद्य उत्पादों के सेवन से बचाव करके सबसे सरल तरीके से बीमारी से बचा जा सकता है।
इमल्सीफायर फूड एडिटिव हैं जो दो पदार्थों को मिलाने में सहायता करते हैं और आम तौर पर यह संयुक्त होने पर अलग हो जाते हैं। खाद्य निर्माताओं द्वारा इनका उपयोग किया जाता है। ताकि लंबे समय तक विभिन्न अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों को प्रयोग किया जा सके। विभिन्न अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों में इमल्सीफायर फूड एडिटिव का प्रयोग लंबे समय तक शेल्फ-लाइफ देने के लिए किया जाता है।
फोर्टिस हॉस्पिटल नोएडा के कंसल्टेंट डायबेटोलॉजी एंड एंडोक्राइनोलॉजी राकेश कुमार प्रसाद ने बताया कि आंतों के माइक्रोबायोटा की संरचना और कार्य को इमल्सीफायर नियंत्रित कर सकते हैं। ऐसा होने पर चयापचय संबंधी विकार उत्पन्न हो सकते हैं,माइक्रोबायोटा अतिक्रमण और आंतों की सूजन हो सकती है, डायबिटीज,मोटापा,उच्च रक्तचाप,अन्य कार्डियोमेटाबोलिक विकारों इत्यादि जैसी कई बीमारियों का खतरा हो सकता है।
भारत और दुनिया भर में उच्च डायबिटीज दर के बीच नवीनतम अध्ययन सामने आया है। आईसीएमआर के आँकड़ों के मुताबिक, भारत में 11.4 प्रतिशत तक डायबिटीज के कुल प्रसार के होने का अनुमान है, जबकि 15.3 प्रतिशत प्रीडायबिटीज के मामले हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि उन लोगों में जोखिम अधिक होने की संभावना है जो लोग प्रोसेस्ड फूड का नियमित रूप से और निरंतर सेवन करते हैं, या ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं जो इमल्सीफायर के रूप में एडिटिव होते हैं।