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भारतीय शहरी होते हैं भुगतान ऐप धोखाधड़ी और पहचान चोरी के शिकार

नई दिल्ली, 20 अप्रैल (युआईटीवी/आईएएनएस)- मंगलवार को आई एक नई रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर शहरी भारतीयों को महामारी के दौरान पहले की तुलना में भुगतान ऐप धोखाधड़ी (24 प्रतिशत), पहचान की चोरी (20 प्रतिशत) और भुगतान कार्ड धोखाधड़ी (18 प्रतिशत) का सामना करना पड़ रहा है। भुगतान से संबंधित धोखाधड़ी लोगों द्वारा उल्लिखित उल्लंघनों का सबसे आम रूप हैं, जो इंटरनेट आधारित बाजार अनुसंधान और डेटा एनालिटिक्स फर्म यूगोव के नवीनतम अध्ययन के अनुसार, यह बताते हैं कि आधे से ज्यादा शहरी भारतीयों ने पहले भी किसी न किसी रूप में डेटा चोरी का सामना किया है।

पांच में से एक ने पहचान चोरी होने (जैसे सोशल मीडिया अकाउंट हैक होने या ईमेल पासवर्ड चोरी होने) और एक समान संख्या में डेटा ‘हैकटिविज्म’ और वह जिस कंपनी में काम करते हैं उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली ऑनलाइन सेवा (जैसे ऑनलाइन ऐप का उपयोग करते हैं) के चोरी होने का सामना किया।

रिपोर्ट के मुताबिक, “डेटा उल्लंघनों में पिछले कुछ महीनों से लगातार वृद्धि देखी गई है और कुछ हालिया मीडिया रिपोटरें से पता चला है कि साइबर धोखाधड़ी की घटनाएं 2021 में और बढ़ सकती हैं। दिलचस्प बात यह है पहले से उल्लिखित रिपोर्टों के अनुसार बाकी लोगों की तुलना में मिलेनियलस इस तरीके की चोरियों से ज्यादा प्रभावित हुए हैं।

निष्कर्षों से पता चलता है, अधिकांश लोग कुछ हद तक अपनी डेटा गोपनीयता को लेकर चिंतित हैं। दस में से केवल एक (9 प्रतिशत) बिल्कुल चिंतित नहीं हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, “इसके बावजूद केवल 58 प्रतिशत ने ऐप या वेब सेवा के लिए साइन अप करने से पहले गोपनीयता के नियमों और शर्तों को पढ़ा।”

जब व्यक्तिगत रूप से पहचान योग्य जानकारी की बात आती है, तो अध्ययन में पाया गया कि कुछ लोग व्यक्तिगत जानकारी को दूसरों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं।

बैंकिंग डेटा जैसे एटीएम पिन और पासवर्ड को सबसे महत्वपूर्ण संपत्ति माना जाता है, इसके बाद सरकार द्वारा जारी किए गए दस्तावेज (76 प्रतिशत और 63 प्रतिशत) उन्हें बेहद महत्वपूर्ण लगते हैं।

आधे से ज्यादा लोग पासवर्ड (59 फीसदी) और फोन नंबर (51 फीसदी) को बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, “सात लोगों में से केवल एक का मानना है कि व्यक्तिगत डेटा ई-कॉमर्स साइटों और ऑनलाइन व्यवसायों (14 प्रतिशत) के साथ सुरक्षित है। जब लोगों के व्यक्तिगत डेटा की बात आती है तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (7 प्रतिशत) और अस्पताल या अन्य स्वास्थ्य सेवा इकाइयां (6 प्रतिशत) सबसे कम भरोसेमंद मानी जाती हैं।”

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