जानिए क्या है झारखंड के देवघर मंदिर की महत्ता, जहां राष्ट्रपति ने की पूजा-अर्चना

रांची, 24 मई (युआईटीवी/आईएएनएस)| राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तीन दिन के दौरे पर आज झारखंड पहुंची हैं। उन्होंने देवघर के प्रसिद्ध बाबा वैद्यनाथ मंदिर और इसी परिसर में स्थित मां पार्वती के मंदिर में पूजा-अर्चना की। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर के 12 ज्योतिलिंर्गों में से देवघर के बाबा वैद्यनाथ एक हैं। इसकी प्रसिद्धि मनोकामना ज्योतिलिर्ंग के रूप में है। द्रौपदी मुर्मू चौथी राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने इस मंदिर में पूजा-अर्चना की। इसके पहले राष्ट्रपति के तौर पर डॉ राजेंद्र प्रसाद, प्रणब मुखर्जी और रामनाथ कोविंद पूजा-अर्चना कर चुके हैं। झारखंड में राज्यपाल रहते हुए द्रौपदी मुर्मू पहले भी यहां कई बार पूजा-अर्चना के लिए आती रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले साल जुलाई में इस मंदिर में पूजा अर्चना की थी।

राष्ट्रपति ने जल, दूध, पंचामृत के साथ ज्योतिलिर्ंग का अभिषेक किया और इसके बाद मंत्रोच्चार के बीच फूल, बेलपत्र, मदार, धतूरा अर्पित किया। पूजा के बाद राष्ट्रपति ने अपने ट्विटर हैंडल पर तस्वीरें शेयर कीं और लिखा कि उन्होंने पूजा कर सभी देशवासियों के कल्याण हेतु प्रार्थना की।

देवघर का यह अतिप्राचीन मंदिर सैकड़ों वर्षों से आस्था का केंद्र रहा है। पंडा देवघर में धर्मरक्षिणी समाज के मनोज कुमार मिश्रा ने कहा कि पौराणिक मान्यताओं में देवघर को हृदयापीठ कहा जाता है क्योंकि यहां मां सती का हृदय गिरा था। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां सच्चे मन से उपासना करने से हर मनोकामना पूरी होती है।

महान आध्यात्मिक संत रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद ने भी देवघर में बाबा बैद्यनाथ की पूजा की थी। स्वामी विवेकानंद पहली बार 1887 में देवघर आए थे। बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद उन दिनों बेहद अस्वस्थ थे। उनके सहयोगियों ने स्वास्थ्य लाभ के लिए देवघर जाने की सलाह दी थी। इसके बाद भी वह दो-तीन बार यहां आये।

मंदिर के इतिहास पर शोध करनेवाले सुनील झा बताते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दो बार देवघर आये थे। पहली बार 1925 और दूसरी बार 1934 में। उन दिनों इस मंदिर में वर्ण और जाति के आधार पर विभेद की व्यवस्था बना दी गयी थी। निम्न मानी जाने वाली जातियों के लोगों को मंदिर के गर्भगृह के भीतर प्रवेश नहीं करने दिया जाता था। महात्मा गांधी को जब यह बात पता चली तो उन्होंने सत्याग्रह कर मंदिर में सभी वर्ग के लोगों का प्रवेश सुनिश्चित कराया था।

देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सर्वोच्च संवैधानिक पद की शपथ लेने के कुछ महीनों बाद यहां पहुंचकर पूजा की थी।

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